ए आर रहमान (फोटो-सोशल मीडिया)
मुंबई: बॉलीवुड सिंगर ए आर रहमान का जन्म 6 जनवरी 1967 को चेन्नई में हुआ था। ए आर रहमान आज अपना 58वां जन्मदिन मना रहे हैं। रहमान जब मात्र 9 वर्ष के थे तब उनके पिता की मौत हो गई थी। पिता की मौत का रहमान के मन पर गहरा असर हुआ। रहमान 11 साल की उम्र में अपने मित्र शिवमणि के साथ बैंड रुट्स के लिए की-बोर्ड बजाने लगे, जहां मशहूर संगीतकार इलैयाराजा से उनकी मुलाकात हुई।
इलैयाराजा ने रहमान को तराशने में काफी अहम रोल अदा किया। 1991 में रहमान ने अपना स्टूडियो शुरू किया जिसमें वो विज्ञापनों और डॉक्यूमेंट्री फिल्मों के लिए संगीत देते थे। एक जिंगल की धुनों से प्रभावित होकर 1992 में फिल्म निर्देशक मणिरत्नम ने उन्हें अपनी फिल्म ‘रोजा’ में बतौर संगीत निर्देशक काम दिया। ‘रोजा’ के गानों ने रहमान का झंडा बुलंद कर दिया।
रोजा में रहमान ने संगीत दिया, जो जल्द ही लोगों की जुबान पर चढ़ गया। ‘रोजा’ की धुनें बॉलीवुड की पारंपरिक धुनों से बिलकुल अलग थी। ये बॉलीवुड संगीत में अपनी किस्म का एक नया प्रयोग था, जिसे लोगों ने काफी पसंद किया। खासकर ये हिंदी क्षेत्र में रहमान की कामयाबी की शुरुआत थी जिसने आगे चलकर उन्हें बुलंदी पर पहुंचा दिया।
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‘रोजा’ के बाद आई रामगोपाल वर्मा की ‘रंगीला’ और मणिरत्नम की ‘बॉम्बे’ ने खूब धूम मचाई। रहमान ने धुनों के साथ परंपरागत म्यूसिकल इंट्रूमेंट के प्रयोग में भी नया नजरिया पेश किया। तहजीब, दिल से, रंगीला, ताल, जींस, पुकार, फिजा, लगान, मंगल पांडे, स्वदेश, रंग दे बसंती, जोधा-अकबर, जाने तू या जाने ना, युवराज, स्लम डॉग मिलेनियर, गजनी जैसी फिल्मों में रहमान ने संगीत को नई ऊंचाइयों पर पहुंचाया।
सिंगर ने देश की आजादी की 50 वीं वर्षगांठ पर 1997 में ‘वंदे मातरम्’ एलबम बनाया, जो जबरदस्त सफल रहा। रहमान पेशे से संगीतकार जरूर हैं, लेकिन संगीत उनके लिए पेशे से बढ़कर एक इबादत की तरह है। संगीत उनके दिमाग से नहीं दिल से निकल कर सीधे सुनने वालों के दिल में उतर जाता है। रहमान पर सूफीवाद का गहरा असर है। फिल्मों में जहां कहीं ऐसा मौका मिलता है रहमान सूफी संगीत पर अपनी पकड़ साबित कर देते हैं। फिल्म ‘जोधा अकबर’ उनकी सूफी समझ का बेजोड़ उदहारण है।