संघर्ष से सुपरस्टार तक का सफर, 'ही-मैन' धर्मेंद्र ने जीते अनगिनत पुरस्कार, 2012 में मिला पद्म भूषण
Dharmendra Padma Bhushan Award: हिंदी सिनेमा के दिग्गज अभिनेता धर्मेंद्र अब हमारे बीच नहीं रहे। पर्दे पर अपनी दमदार मौजूदगी और सादगी के लिए पहचाने जाने वाले धर्मेंद्र ने अपने छह दशकों से अधिक लंबे करियर में न सिर्फ अभिनय किया, बल्कि संघर्ष, मेहनत और अटूट समर्पण की एक मिसाल कायम की। उनके निधन से पूरे देश में शोक की लहर दौड़ गई है, और हर कोई उनके शानदार फिल्मी सफर को याद कर रहा है।
8 दिसंबर 1935 को पंजाब के छोटे से गाँव नसराली में जन्मे धर्म सिंह देओल का शुरुआती जीवन बेहद सरल रहा। पिता के स्कूल प्रिंसिपल होने के बावजूद, सिनेमा के जुनून ने उन्हें मुंबई खींच लिया। शुरुआती दिनों में गैरेज के बाहर सोने और 200 रुपए की नौकरी करने के बाद, 1960 में उन्हें ‘दिल भी तेरा हम भी तेरे’ फिल्म का ऑफर मिला, जिससे उन्होंने बॉलीवुड में डेब्यू किया।
डेब्यू के बाद, धर्मेंद्र ‘फूल और पत्थर’, ‘बंदिनी’, और ‘आंखें’ जैसी फिल्मों से घर-घर में पहचाने जाने लगे। 1970 का दशक उनके करियर का स्वर्णिम काल था। ‘मेरा गाँव मेरा देश’, ‘सीता और गीता’, ‘शोले’, और ‘धरम वीर’ जैसी फिल्मों ने उन्हें सुपरस्टार बना दिया। उनकी फिल्मोग्राफी में 300 से ज्यादा फिल्में शामिल हैं, जिनमें 93 हिट और 49 सुपरहिट रहीं। ‘शोले’ का उनका डायलॉग ‘बसंती, इन कुत्तों के सामने मत नाचना’ आज भी दर्शकों के कानों में गूंजता है।
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धर्मेंद्र के पुरस्कारों की शुरुआत 1965 में ‘आई मिलन की बेला’ के लिए सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेता के फिल्मफेयर नामांकन से हुई।
सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का नामांकन: 1966 में ‘फूल और पत्थर’ के लिए उन्हें सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का पहला फिल्मफेयर नामांकन मिला।
राष्ट्रीय पुरस्कार सम्मान: 1967 में ‘अनुपमा’ के लिए 14वें राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार में स्मृति सम्मान और 1969 में ‘सत्यकाम’ को राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार मिला।
निर्माता के रूप में सफलता: 1990 में उनके प्रोडक्शन में बनी सनी देओल की फिल्म ‘घायल’ को राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार और 7 फिल्मफेयर अवॉर्ड मिले।
धर्मेंद्र ने अपने करियर के उत्तरार्ध में कई प्रतिष्ठित लाइफटाइम अचीवमेंट अवॉर्ड्स हासिल किए, जो हिंदी सिनेमा में उनके अपार योगदान का प्रमाण हैं।
लाइफटाइम अचीवमेंट: उन्हें 2003 में सैंसुई व्यूअर्स चॉइस मूवी अवॉर्ड्स, 2005 में जी सिने अवॉर्ड और 2007 में आईआईएफए लाइफटाइम अचीवमेंट जैसे कई प्रतिष्ठित सम्मान मिले।
पद्म भूषण: साल 2012 में उन्हें भारत सरकार का तीसरा सर्वोच्च नागरिक सम्मान पद्म भूषण मिला, जो उनके गौरवशाली करियर की सबसे बड़ी उपलब्धि थी।
अंतर्राष्ट्रीय सम्मान: 2020 में उन्हें न्यू जर्सी राज्य द्वारा लाइफटाइम अचीवमेंट का अवॉर्ड भी मिला।
धर्मेंद्र ने 2004-2009 तक बीकानेर से सांसद के रूप में राजनीति में भी अपनी किस्मत आजमाई थी, लेकिन उनका प्राथमिक प्रेम हमेशा सिनेमा ही रहा, जिसके वह हमेशा ‘बादशाह’ बने रहे।