धुंडीराज गोविंद फाल्के कैसे बने भारतीय सिनेमा के जनक, दादा साहेब फाल्के के अनसुने किस्से
Dada Saheb Phalke: धुंडीराज गोविंद फाल्के ने 21 साल की उम्र में मुंबई के एक थिएटर में अपने जीवन की पहली फिल्म देखी। यह फिल्म यीशु मसीह पर आधारित थी फिल्म देखते वक्त उन्हें यीशु मसीह के स्थान पर भगवान राम, कृष्ण और संत तुकाराम जैसी महान विभूतियां दिखाई दे रही थी। उस फिल्म को देखते हुए उनके मन में विचार आया कि उन्हें भी फिल्म मेकर बनना चाहिए ताकि वह भारत की महान विभूतियों के चरित्र पर आधारित फिल्म का निर्माण कर सकते हैं और यहीं पर उन्होंने फिल्मकार बनने का फैसला लिया। उस समय फिल्म का निर्माण आसान नहीं था जिसके लिए उन्हें सामाजिक बहिष्कार झेलना पड़ा। फिल्म निर्माण के लिए उन्होंने अपना सब कुछ दांव पर लगा दिया। बीवी के गहने गिरवी रखे। एक आंख चली गई। उनका सब कुछ लुट गया, लेकिन 20 साल की कड़ी मेहनत के बाद 1913 में उन्होंने राजा हरिश्चंद्र फिल्म मुंबई के कोरोनेशन थियेटर में प्रदर्शित की।
दादा साहेब फाल्के का जन्म महाराष्ट्र के नासिक से लगभग 20 किलोमीटर दूरी पर स्थित त्रंबकेश्वर में 30 अप्रैल 1870 को हुआ था। उनके पिता मुंबई के एल्फिंस्टन कॉलेज में प्रोफेसर थे। ऐसे में उनकी शुरुआती पढ़ाई मुंबई में ही हुई। 25 दिसंबर 1891 को उन्होंने ‘लाइफ ऑफ क्राइस्ट’ मूक फिल्म देखी। इस फिल्म में यीशु मसीह के जीवन को दिखाया गया। फिल्म देखते हुए उन्हें वीडियो में भगवान राम और कृष्ण की छवि नजर आ रही थी। इसके बाद उन्होंने फिल्म मेकर बनने का फैसला किया। 1913 में उन्होंने भारत की पहली फिल्म राजा हरिश्चंद्र प्रदर्शित कर दी। लेकिन फिल्म को बनाने के लिए उन्हें जर्मनी जाकर फिल्म तकनीक सीखनी पड़ी, इंग्लैंड जाकर उन्होंने फिल्म बनाने के लिए उपयोग में आने वाले उपकरण खरीदे थे। फिल्म निर्माण उस समय अच्छा काम नहीं माना जाता था। ऐसे में उन्हें सामाजिक बहिष्कार भी झेलना पड़ा। फिल्म बनाते वक्त आर्थिक तंगी के लिए उनकी पत्नी के जेवर गिरवी रखे गए थे। 20-20 घंटे कैमरे पर लगातार काम करने की वजह से उनकी एक आंख चली गई थी। फिल्म निर्माण के संघर्ष में उन्हें पत्नी का भरपूर योगदान मिला और वह भारत की पहली फिल्म राजा हरिश्चंद्र बनाने में कामयाब हुए।
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दादा साहेब फाल्के ने अपने 19 साल के फिल्मी करियर में कुल 95 फिल्में और 27 लघु फिल्में बनाई। उनकी अधिकतर फिल्में मूक फिल्म थी, पहली फिल्म राजा हरिश्चंद्र 1913 में प्रदर्शित हुई थी। उसके बाद उन्होंने मोहिनी, भस्मासुर, सत्यवान सावित्री, लंका दहन, श्री कृष्ण जन्म, कलिया मर्दन, बुद्धदेव, बालाजी निंबालकर, भक्त प्रहलाद, भक्त सुदामा, रुक्मिणी हरण, द्रौपदी वस्त्रहरण और हनुमान जन्म जैसी फिल्मों का निर्माण किया। 1937 में आई गंगावतरण दादा साहेब द्वारा बनाई गई आखिरी फिल्म साबित हुई और यह उनके द्वारा बनाई गई पहली बोलती फिल्म यानी टॉकीज थी। हालांकि भारत की पहली बोलती फिल्म का नाम आलम आरा था जो 1931 में रिलीज हुई थी। भारतीय सिनेमा में दादा साहेब फाल्के के बहुमूल्य योगदान की वजह से उन्हें भारतीय सिनेमा का जनक कहा जाता है। 16 फरवरी 1944 को 73 वर्ष की उम्र में उनका निधन हुआ। 1969 में भारत सरकार ने उनके नाम पर पुरस्कार देने की शुरुआत की। भारतीय सिनेमा में बहुमूल्य योगदान देने वाले कलाकारों को दादा साहेब फाल्के अवार्ड से सम्मानित किया जाता है।