पेशावर में एक और सिनेमा हॉल ढहा
Pakistan Film Culture: पाकिस्तान के खैबर पख्तूनख्वा की राजधानी पेशावर, जिसे कभी सांस्कृतिक और सिनेमाई गतिविधियों का गढ़ माना जाता था, अब सिनेमा संस्कृति के अंतिम दौर से गुजर रहा है। हाल ही में अरशद सिनेमा हॉल को गिराने की प्रक्रिया शुरू कर दी गई है। यह सिनेमाघर 1984 में बनाया गया था और अब आर्थिक नुकसान झेलने के बाद मालिक ने इसे गिराने का फैसला किया है।
अरशद खान द्वारा स्थापित इस सिनेमा हॉल ने पेशावर में एक दौर में स्थानीय और मुख्यधारा की फिल्मों को देखने वाले हजारों दर्शकों को आकर्षित किया था। लेकिन अब, 41 वर्षों बाद, यह हॉल भी इतिहास का हिस्सा बन रहा है। मालिक अरशद खान ने पीटीआई से कहा कि अब और घाटा बर्दाश्त नहीं कर सकता। आखिरी फिल्म ईद-उल-अजहा के मौके पर दिखाई गई थी, उसके बाद दर्शकों की संख्या लगभग शून्य हो गई।
इस सिनेमा में सालों से प्रोजेक्टर ऑपरेटर रहे मोहम्मद यूसुफ का कहना है कि 80 लाख रुपये की लागत से बने इस सिनेमाघर की कमाई मुश्किल से 20 लाख तक पहुंच पाई। मैं 40 सालों से यहां काम कर रहा हूं। अब प्रोजेक्टर निकालते वक्त जो खालीपन महसूस हो रहा है, वह शब्दों में नहीं बताया जा सकता। अब पेशावर में सिर्फ तीन सिनेमाघर बचे हैं और वो भी केवल त्योहारों जैसे ईद तक ही संचालन में रहते हैं। इससे पहले मार्च और जून में दो अन्य सिनेमाघर नाज सिनेमा और पिक्चर हाउस भी गिरा दिए गए। ये सभी कभी विभाजन से पहले दो सिख व्यापारियों द्वारा बनाए गए थे।
पेशावर में सिनेमाघरों की गिरावट केवल व्यावसायिक असफलता का मामला नहीं है। यह सांस्कृतिक क्षरण का भी प्रतीक है। सिनेमा हॉल्स की जगह अब हॉस्पिटल और मॉल्स बनते जा रहे हैं। अरशद सिनेमा के मैनेजर तैय्यब खान कहते हैं कि आज सोशल मीडिया और OTT जैसे विकल्पों के कारण युवाओं की प्राथमिकता बदल गई है। सिनेमाघर उनके मनोरंजन का जरिया नहीं रहे।
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लेकिन यह बदलाव सिर्फ तकनीक या रुचियों के कारण नहीं हुआ। आतंकवाद और असुरक्षा ने भी सिनेमा संस्कृति को भारी चोट पहुंचाई। कुछ वर्षों पहले, सिनेमाघरों पर बम हमले किए गए, जिससे दर्शकों में भय बैठ गया। पश्तो लेखक अबासीन यूसुफजई और लेखक हाजी असलम खान दोनों का मानना है कि सिनेमा हॉल का बंद होना पश्तो भाषा और उसकी लोकसंस्कृति के लिए भी एक बड़ा नुकसान है। कभी खैबर पख्तूनख्वा के शहरों और आदिवासी इलाकों में 40 से ज्यादा सिनेमाघर हुआ करते थे, लेकिन अब उनमें से अधिकांश खत्म हो चुके हैं।