राजापाकर विधानसभा सीट (सोर्स- डिजाइन)
Rajapakar Assembly Constituency: बिहार के वैशाली जिले की राजापाकर विधानसभा सीट 2025 के चुनावी समर में एक बार फिर से राजनीतिक विश्लेषण का केंद्र बन गई है। हाजीपुर (एससी) लोकसभा क्षेत्र के अंतर्गत आने वाली यह सीट अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है और अपने सामाजिक-सांस्कृतिक महत्व के साथ-साथ जातीय समीकरणों के कारण हमेशा से चुनावी हलचल में बनी रहती है।
राजापाकर गंडक और गंगा जैसी प्रमुख नदियों के निकट स्थित है। यहां का भूभाग समतल और अत्यंत उपजाऊ है, जिससे कृषि इस क्षेत्र की प्रमुख आर्थिक गतिविधि बन गई है। धान, गेहूं और मक्का जैसी फसलें यहां की अर्थव्यवस्था की रीढ़ हैं। ग्रामीण जीवन की सादगी और खेतों की हरियाली इस क्षेत्र की पहचान है।
राजापाकर क्षेत्र धार्मिक दृष्टि से भी खासा प्रसिद्ध है। सहदेई बुजुर्ग पंचायत के वार्ड नंबर 14 में स्थित बुद्धेश्वर नाथ मंदिर स्थानीय आस्था का केंद्र है। वहीं, अभिषेक पुष्करणी नामक पुरातात्विक स्थल ऐतिहासिक मान्यताओं से जुड़ा है, जहां लिच्छवि शासकों का अभिषेक होता था। यह स्थान धार्मिक और ऐतिहासिक दृष्टिकोण से अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है।
यह विधानसभा क्षेत्र महुआ अनुमंडल का हिस्सा है और राजापाकर सामुदायिक विकास खंड का मुख्यालय भी है। इसके अंतर्गत देसरी और सहदेई बुजुर्ग जैसे प्रमुख विकास खंड शामिल हैं। यह क्षेत्र वैशाली, सारण और पटना जैसे जिलों के समीपवर्ती इलाकों से जुड़ा है, जिससे इसका राजनीतिक और सामाजिक प्रभाव व्यापक है।
राजापाकर विधानसभा क्षेत्र का गठन 2008 में परिसीमन आयोग की सिफारिशों के बाद हुआ। 2010 में जदयू के संजय कुमार पहले विधायक बने। 2015 में राजद के शिवचंद्र राम ने जीत दर्ज की, जबकि 2020 में यह सीट महागठबंधन के हिस्से के रूप में कांग्रेस के खाते में गई और प्रतिमा दास ने जदयू के महेंद्र राम को हराया। यह बदलाव दर्शाता है कि यहां का जनमत समय-समय पर दलों के बीच झूलता रहा है।
इस क्षेत्र में पासवान और रविदास समुदायों की निर्णायक भूमिका रही है। इन वर्गों की संख्या और मतदान रुझान चुनावी परिणामों को सीधे प्रभावित करते हैं। इसके अलावा, अन्य दलित उपजातियां और पिछड़े वर्ग भी चुनावी समीकरणों में अहम भूमिका निभाते हैं। उम्मीदवारों की जातीय पहचान और सामाजिक जुड़ाव इस सीट पर जीत-हार का निर्धारण करते हैं।
आगामी चुनाव में राजापाकर सीट पर फिर से कड़ा मुकाबला देखने को मिल सकता है। महागठबंधन और एनडीए दोनों ही इस सीट को अपने पक्ष में करने की रणनीति में जुटे हैं। कांग्रेस, राजद और जदयू के संभावित उम्मीदवारों के बीच मुकाबला जातीय संतुलन, स्थानीय मुद्दों और संगठनात्मक ताकत पर आधारित होगा।
राजापाकर में बाढ़, सड़क संपर्क, शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं की स्थिति जैसे मुद्दे लंबे समय से चर्चा में हैं। कृषि आधारित जीवनशैली के बावजूद आधुनिक सुविधाओं की कमी यहां की जनता की प्रमुख चिंता है। इन मुद्दों को लेकर मतदाता इस बार अधिक सजग नजर आ रहे हैं।
यह भी पढ़ें: बिहार विधानसभा चुनाव 2025: राजगीर में प्राचीन विरासत के बीच सियासी संग्राम, क्या जदयू लगाएगी जीत की
राजापाकर विधानसभा सीट पर 2025 का चुनाव केवल राजनीतिक दलों की परीक्षा नहीं, बल्कि सामाजिक संतुलन, विकास की मांग और जनविश्वास की कसौटी भी है। यह देखना दिलचस्प होगा कि पासवान और रविदास वोटर किस ओर रुख करते हैं और कौन-सा दल इस निर्णायक जनमत को अपने पक्ष में करने में सफल होता है।