बिहार चुनाव में दल बदलू नेता (डिजाइन फोटो)
बिहार की राजनीति में दल-बदल और पाला बदलने का चलन कोई नई बात नहीं है, लेकिन आगामी 2025 के विधानसभा चुनाव में इसके कई ऐसे उदाहरण सामने आए हैं जो राजनीतिक वफादारी पर गंभीर सवाल खड़ा करते हैं। राज्य में ऐसे आठ वर्तमान विधायक हैं, जो वर्ष 2020 के विधानसभा चुनाव में जिस पार्टी के टिकट पर जीत हासिल कर विधायक बने थे, आज उन्हीं के खिलाफ मैदान में ताल ठोक रहे हैं।
यह स्थिति बताती है कि नेता अपने राजनीतिक भविष्य और अवसर के लिए किस तरह से पार्टी और विचारधारा को किनारे रख देते हैं। ये सभी बागी विधायक अब चुनाव प्रचार में उस दल के खिलाफ ‘आग उगलेंगे’, जिसके समर्थन में पिछले चुनाव में वे घूम-घूम कर वोट मांग रहे थे।
8 विधायकों ने बदला पाला, वफादारी पर सवालराज्य में ऐसे आठ विधायकों को दोनों प्रमुख गठबंधनों ने टिकट दिया है, जिन्होंने 2020 में जीते गए दल को छोड़कर दूसरे खेमे का दामन थाम लिया है।
इन पाला बदलने वाले नेताओं में से कुछ प्रमुख नाम इस प्रकार हैं:–
1. मोकामा का हाई-प्रोफाइल मुकाबला
संगीता कुमारी : इन्होंने 2020 के चुनाव में राजद (RJD) के टिकट पर जीत हासिल की थी। इस बार मोकामा में वह भाजपा की उम्मीदवार बनकर खड़ी हैं। उनकी लड़ाई उस राजद से होगी, जिससे उन्होंने पिछला चुनाव जीता था। दिलचस्प यह है कि राजद उम्मीदवार श्वेता सुमन को नामित किया गया है, लेकिन अब वह एक निर्दलीय उम्मीदवार को समर्थन दे रही हैं।
2. बख्तियारपुर का उलटफेर
केदारनाथ सिंह : यह 2020 में राजद के टिकट पर विजयी हुए थे। लेकिन 2025 के चुनाव में यह भाजपा के उम्मीदवार बनकर मैदान में हैं और उनकी सीधी टक्कर राजद प्रत्याशी से होगी।
3. प्रभात भारती और डॉ. संजीव कुमार
प्रभात भारती भी इस बार भाजपा के टिकट पर चुनाव मैदान में हैं, जबकि उन्होंने पिछले चुनाव में किसी और दल का प्रतिनिधित्व किया होगा। उनकी लड़ाई भी इस बार राजद प्रत्याशी से ही है।
डॉ. संजीव कुमार: यह जदयू (JDU) के टिकट पर परवत्ता से विधायक थे, लेकिन इस बार वह राजद के टिकट पर चुनाव मैदान में हैं।
4. विक्रम और पेनागरी की बदली सीट
सिद्धार्थ: यह पिछले दो चुनाव में कांग्रेस के टिकट पर विक्रम सीट से विजयी हुए थे। लेकिन 2025 में वह कांग्रेस के खिलाफ ही भाजपा उम्मीदवार के तौर पर चुनाव लड़ रहे हैं।
मुरारी: कांग्रेस के पेनागरी से विधायक मुरारी को इस बार लोजपा (आर) के टिकट पर मैदान में उतारा गया है।
5. छोटे लाल राय का दल-बदल
छोटे लाल राय: परसा के राजद विधायक छोटे लाल राय ने भी पाला बदला है और इस बार वह जदयू के टिकट पर चुनाव लड़ रहे हैं।
जनता का फैसला होगा अंतिम
इन सभी पाला बदलने वाले विधायकों के लिए यह चुनाव किसी बड़ी परीक्षा से कम नहीं होगा। जनता किस रूप में इन नेताओं को लेती है, और क्या उन्हें दल-बदल के बावजूद समर्थन देती है, यह चुनाव परिणाम आने पर ही साफ हो पाएगा। पिछली बार जिन नेताओं के नाम पर इन्होंने जनता से वोट मांगा था, अब उन्हीं के खिलाफ जनता का समर्थन मांगना इन विधायकों के लिए नैतिक और राजनीतिक रूप से एक बड़ी चुनौती है।
एक और अटपटा सच यह भी है कि पाला बदलने वालों में कुछ ऐसे नेता भी शामिल हैं, जो पिछली बार चुनाव हार गए थे, लेकिन इस बार पार्टी बदलकर मैदान में हैं और उन्हें दोनों गठबंधनों ने टिकट भी दिया है। यह दिखाता है कि बिहार की चुनावी राजनीति में ‘जिताऊ उम्मीदवार’ का महत्व विचारधारा और वफादारी से कहीं ऊपर है।