Delhi highcourt on naxalites
नई दिल्ली: देश से नक्सलवाद को जड़ से खत्म करने के लिए सरकार की ओर से लगातार अभियान चलाए जा रहे हैं। इसके साथ ही नक्सल प्रभावित लोगों को समाज की मुख्य धारा से जोड़ने का काम भी लगातार किया जा रहा है। इस बीच दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा है कि नक्सल प्रभावित लोगों का पुनर्वास करना और उन क्षेत्रों में शांति स्थापित करने सरकार का कर्तव्य है।
दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि नक्सली हिंसा से प्रभावित छत्तीसगढ़ के निवासियों के पुनर्वास और शांति स्थापित करने के लिए पर्याप्त कदम उठाना राज्य और केंद्र सरकार का कर्तव्य है। हाईकोर्ट ने राज्य में सुरक्षा बलों और सलवा जुडूम कार्यकर्ताओं की ओर से मानवाधिकार उल्लंघन के आरोप वाले 18 वर्ष पुराने मामलों को बंद कर दिया। न्यायमूर्ति बीवी नागरत्ना और न्यायमूर्ति सतीश चंद्र शर्मा की पीठ ने कार्यकर्ता नंदिनी सुंदर की ओर से दायर मानवाधिकार उल्लंघन के मामलों और अवमानना सहित अन्य याचिकाओं को बंद कर दिया।
हाईकोर्ट ने मामले में 2011 के आदेश का पालन न करने का दावा किया गया था जिसमें राज्य में नक्सल विरोधी अभियानों में प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से विशेष पुलिस अधिकारियों (एसपीओ) के इस्तेमाल पर प्रतिबंध लगाया गया था। पीठ ने कहा कि हम देखते हैं कि छत्तीसगढ़ राज्य में दशकों से उत्पन्न स्थिति को देखते हुए यह आवश्यक है कि क्षेत्रों में शांति और पुनर्वास के लिए विशेष कदम उठाए जाएं, जिन पर राज्य के साथ-साथ केंद्र सरकार को भी ध्यान देने की जरूरत है। दोनों को समन्वित तरीके से कार्य करना होगा।
कोर्ट ने कहा कि भारतीय संविधान के अनुच्छेद 315 को ध्यान में रखते हुए छत्तीसगढ़ राज्य और भारत संघ दोनों का कर्तव्य है कि वे राज्य के ऐसे निवासियों के लिए शांति और पुनर्वास सुनिश्चित करने के वास्ते उपयुक्त कदम उठाएं जो किसी भी पक्ष से उत्पन्न हिंसा से प्रभावित हुए हैं। छत्तीसगढ़ सहायक सशस्त्र पुलिस बल अधिनियम, 2011 के अधिनियमन का जिक्र करते हुए पीठ ने 15 मई के आदेश में कहा कि उसके विचार में इसे इस न्यायालय द्वारा पारित 2011 के आदेश की अवमानना नहीं कहा जा सकता। इस कानून के तहत राज्य में कानून और व्यवस्था बनाए रखने में सुरक्षा बलों की सहायता के लिए एक प्रशिक्षित बल का गठन किया गया था।
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पीठ ने कहा कि संसद या राज्य विधानमंडल द्वारा बनाए गए किसी भी कानून को केवल कानून बनाने के आधार पर अदालत की अवमानना नहीं माना जा सकता। नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में मानवाधिकारों के उल्लंघन का आरोप लगाने वाली रिट याचिकाओं के संबंध में पीठ ने कहा कि इन प्रार्थनाओं पर इस न्यायालय द्वारा विचार किया गया है तथा इन्हें 2011 के आदेश के रूप में स्पष्ट किया गया है।