
भारत गोल्डीलॉक्स आर्थिक दौर में है, GDP ग्रोथ 8% से ऊपर, महंगाई न्यूनतम स्तर पर (सोर्स- सोशल मीडिया)
India low inflation high growth: भारत वर्तमान में एक दुर्लभ ‘गोल्डीलॉक्स’ आर्थिक दौर से गुजर रहा है, जहां सकल घरेलू उत्पाद (GDP) की वृद्धि दर 8% से अधिक है, जबकि उपभोक्ता महंगाई दर (CPI) ऐतिहासिक रूप से निचले स्तर पर है। भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) द्वारा ब्याज दरों में कटौती ने इस स्थिति को और मजबूत किया है। यह संतुलन पहली नजर में पूरी तरह से सकारात्मक लगता है, लेकिन इस आर्थिक आराम का असर देश के हर वर्ग पर एक जैसा नहीं है। आइए समझते हैं कि इस दौर का असली फायदा किसे हो रहा है और किसे नहीं।
अर्थशास्त्र में गोल्डीलॉक्स पीरियड उस स्थिति को कहते हैं जब अर्थव्यवस्था तेज ग्रोथ करती है, लेकिन साथ ही महंगाई नियंत्रण में रहती है। भारत इस समय इसी स्थिति में है, जहां ताजा तिमाही में GDP ग्रोथ लगभग 8.2% रहने का अनुमान है।
वहीं, खाद्य पदार्थों की कीमतों में भारी गिरावट के कारण उपभोक्ता महंगाई दर गिरकर केवल 0.25% पर आ गई है, जो अब तक का सबसे निचला स्तर है। थोक महंगाई दर भी नकारात्मक हो चुकी है। पीडब्ल्यूसी इंडिया के पार्टनर राणेन बनर्जी के अनुसार, यह दौर ब्याज दरों को नरम बनाए रखता है, जिससे आर्थिक गतिविधियां बढ़ती हैं।
RBI ने इस वर्ष रेपो रेट में कुल 1 प्रतिशत पॉइंट की कटौती की है। इस कटौती का सीधा फायदा उन लोगों और कंपनियों को होगा जिन्होंने फ्लोटिंग रेट पर लोन लिए हैं। जब बैंक ब्याज दरों की समीक्षा करेंगे, तो होम लोन और कार लोन की EMI कम हो सकती है, जिससे कर्जदारों को राहत मिलेगी।
कंपनियों के लिए यह माहौल आदर्श है क्योंकि मांग बढ़ रही है, ब्याज दरें कम हैं और मुद्रास्फीति अनुमानित है। सस्ती पूंजी और मजबूत मांग से कंपनियों को विस्तार योजनाओं, विलय और अधिग्रहण (M&A) तथा नई भर्तियों को प्रोत्साहित करने का मौका मिलता है। इसके अलावा, कम ब्याज दरों से सरकार का कर्ज चुकाने का बोझ भी हल्का होता है, जिससे वह इंफ्रास्ट्रक्चर और जनकल्याण योजनाओं पर ज्यादा खर्च कर सकती है।
गोल्डीलॉक्स दौर में भी कुछ वर्ग नुकसान उठा रहे हैं। कम महंगाई का सबसे गहरा असर किसानों की आय पर दिख रहा है। सब्जियों (जैसे प्याज, आलू) और दालों के दाम थोक बाजार में तेजी से गिरे हैं, जिससे किसानों को लागत से भी कम दाम मिल रहे हैं। कई मंडियों में उपज न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) से नीचे बिक रही है, जिससे उनकी आय प्रभावित हो रही है। यदि खाद्य अपस्फीति (Food Deflation) बनी रही, तो ग्रामीण मांग कमजोर होगी, जिसका असर गैर-जरूरी खर्चों पर पड़ेगा।
दूसरी ओर, सेवानिवृत्त लोगों के लिए, ब्याज दरों में यह कटौती चिंता का कारण है। वे अपनी आय के लिए ब्याज आय पर निर्भर होते हैं और कम ब्याज दरें उनकी पहले से कम होती आय को और प्रभावित कर सकती हैं।
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वर्तमान स्थिति निवेश और रोजगार को सहारा देती है, लेकिन यह संतुलन तब तक टिकाऊ नहीं है जब तक किसानों की आय का संकट हल नहीं होता। वैश्विक निवेशकों और रेटिंग एजेंसियों ने भारत के विकास के पूर्वानुमान को ऊपर किया है, लेकिन सरकार को ग्रामीण मांग को सहारा देने के लिए नीतिगत समाधानों पर ध्यान देना होगा ताकि यह गोल्डीलॉक्स पीरियड सभी के लिए फायदेमंद हो सके।






