
Bihar Elections 2025: तरैया में BJP-RJD के बीच कड़ा मुकाबला, बाहुबल वाले सीट कौन करेगा कब्जा?
Taraiya Assembly Constituency: बिहार के सारण जिले के उत्तरी क्षेत्र में स्थित तरैया विधानसभा क्षेत्र राज्य की राजनीति में अपनी खास पहचान रखता है। यह सीट हमेशा से बाहुबल, राजनीतिक संवेदनशीलता और प्रमुख दलों – भारतीय जनता पार्टी (भा.ज.पा.) और राष्ट्रीय जनता दल (राजद)—के बीच कड़े मुकाबले के कारण चर्चा में रही है। 1967 में अस्तित्व में आई इस सीट का राजनीतिक इतिहास बेहद उतार-चढ़ाव से भरा रहा है, जो इसे 2025 के बिहार विधानसभा चुनाव के लिए महत्वपूर्ण बनाता है।
तरैया की राजनीति 1970 के दशक में उस वक्त चर्चा में आई, जब बाहुबली नेता प्रभुनाथ सिंह ने कांग्रेस के टिकट पर 1972 और 1980 के विधानसभा चुनावों में जीत हासिल की। उनका उदय क्षेत्र में बाहुबल की राजनीति के रूप में हुआ, जिसने बाद में कई चुनावों पर असर डाला। हालांकि, 1980 के बाद से कांग्रेस यहाँ कभी पुनः सत्ता में नहीं आ सकी, और यह सीट मुख्य रूप से भाजपा, राजद और जनता दल के बीच बँट गई।
अब तक के 13 विधानसभा चुनावों में राजद ने इस सीट पर तीन बार जीत हासिल की है, जबकि भाजपा, जनता दल और कांग्रेस ने दो-दो बार इस पर अपनी पकड़ बनाई। 2015 में राजद के मुद्रिका प्रसाद राय ने चुनाव जीतकर इस सीट पर अपनी पार्टी की पकड़ मजबूत की थी। इसके बाद, 2020 के विधानसभा चुनाव में भाजपा के जनक सिंह ने राजद के उम्मीदवार सिपाही लाल महतो को हराकर यह सीट जीत ली।
जनक सिंह की राजनीतिक यात्रा विशेष रूप से महत्वपूर्ण है, क्योंकि वे पहले 2005 (लोजपा के टिकट पर) और फिर 2010 में भी तरैया के विधायक रह चुके हैं। इसका मतलब यह है कि वे इस क्षेत्र में एक मजबूत और पहचान वाले नेता के रूप में स्थापित हो चुके हैं।
अब, आगामी 2025 विधानसभा चुनाव में भाजपा के लिए इस सीट पर अपनी पकड़ बनाए रखना चुनौतीपूर्ण हो सकता है, जबकि राजद फिर से इस सीट पर अपना दावा मजबूत करने के लिए सिपाही लाल महतो या किसी अन्य प्रभावशाली उम्मीदवार को मैदान में उतार सकती है।
यह भी पढ़ें:- बिहार चुनाव 2025: मखाना उद्योग की पहचान वाली सीट पर JDU का कब्जा, क्या RJD रोक पाएगी हैट्रिक?
अर्थव्यवस्था: तरैया क्षेत्र गंगा के मैदानी इलाके में स्थित है, जहां की ज़मीन उपजाऊ और समतल है। यहाँ की अर्थव्यवस्था मुख्य रूप से कृषि पर निर्भर है। गंडक नहर प्रणाली और मौसमी धाराएँ यहाँ के कृषि उत्पादन को बढ़ावा देती हैं, जिससे धान, गेहूं, मक्का, दालें, गन्ना और सब्जियां यहाँ की प्रमुख फसलें हैं।
रोजगार: इस क्षेत्र में रोजगार के अवसर सीमित हैं। मुख्यतः कृषि आधारित रोजगार मौजूद है, लेकिन स्थानीय चावल मिलों, ईंट भट्टों और कृषि-व्यापार केंद्रों के माध्यम से कुछ हद तक रोजगार सृजन होता है।
संस्कृति: तरैया की सांस्कृतिक विरासत भोजपुरी संस्कृति से गहरी जुड़ी हुई है, जो यहाँ के लोकगीतों, त्योहारों और दैनिक जीवन में स्पष्ट रूप से झलकती है। धार्मिक दृष्टि से भी इस क्षेत्र की विशेष पहचान है। यहाँ स्थित शिव मंदिर बिहार के सबसे ऊंचे मंदिरों में से एक माना जाता है, जो हर साल बड़ी संख्या में भक्तों को आकर्षित करता है।
अगले विधानसभा चुनाव में, बाहुबल के प्रभाव के बावजूद, तरैया के मतदाता कृषि संकट, सिंचाई की समस्याओं, और रोजगार सृजन जैसे स्थानीय मुद्दों पर ज्यादा ध्यान दे सकते हैं। भाजपा और राजद दोनों को इन मुद्दों पर ठोस नीतियाँ और योजनाएं पेश करनी होंगी, ताकि वे मतदाताओं का विश्वास हासिल कर सकें।
बहरहाल, बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में तरैया सीट पर कांटे की टक्कर की संभावना है, जहाँ भाजपा और राजद दोनों ही अपने-अपने वोट बैंक को मजबूत करने के लिए पूरी ताकत लगा सकते हैं।






