बिहार की सीएम नीतीश कुमार (डिजाइन फोटो)
Siyasat-E-Bihar: पिछले बीस साल से नीतीश कुमार बिहार की सत्ता पर काबिज हैं। नीतीश जैसे ही बिहार में सियासी मौसम का मिजाज बदलता हुआ देखते हैं तो अपने और अपनी कुर्सी के लिए सुरक्षित ठिकाना खोज लेते हैं। कुछ लोग इसे लेकर उनकी आलोचना करते हुए ‘पलटीकुमार’ कहते हैं, तो कुछ लोग इस बात को उनकी काबिलियत समझते हैं।
एक वक्त ऐसा भी था जब नीतीश कुमार बुरी तरह हताश हो चुके थे। इसके बावजूद उन्होंने एक दिन पटना में ऐसा प्रण लिया जिसके पूरे होने का किसी को अंदेशा नहीं था। सियासत-ए-बिहार की इस कड़ी में वहीं दिलचस्प कहानी…
1977 के बाद बिहार का राजनीतिक माहौल काफी बदल गया था। पहली बार जनता पार्टी इतनी मजबूत दिख रही थी, कांग्रेस को चुनौती मिल रही थी और कई अन्य पार्टिया उभर रही थीं। हालांकि, नीतीश कुमार अपना चुनाव हार गए थे और उनके सहयोगी लालू प्रसाद यादव जीत गए थे, जिससे नीतीश खाली हाथ रह गए थे।
उन दिनों पटना का इंडिया कॉफी हाउस एक अनोखा राजनीतिक जमावड़ा हुआ करता था। पत्रकार, राजनेता और विचारक सभी एक ही छत के नीचे इकट्ठा होते थे और खुलकर चर्चाएं होती थीं। यह लोकतंत्र का एक सुंदर उदाहरण था। नीतीश कुमार भी वहां जाते थे। वे ज्यादा बोलते नहीं थे, लेकिन सब सुनते थे।
एक दिन नीतीश इंडिया कॉफी हाउस में पत्रकार सुरेंद्र किशोर के साथ बैठे थे। उन दिनों दोनों की अच्छी बनती थी। सुरेंद्र बिहार की राजनीति की हर बारीकी से वाकिफ रहते थे। उन्हें नीतीश कुमार के बारे में वो सब कुछ पता था जो शायद किसी और को नहीं पता था। उस दिन दोनों इंडिया कॉफी हाउस में साथ बैठे थे। वहां कर्पूरी ठाकुर को लेकर बहस छिड़ गई थी।
नीतीश कुमार की पुरानी तस्वीर (सोर्स- सोशल मीडिया)
बस सवाल यह था कि कर्पूरी ठाकुर को मुख्यमंत्री बनाना सही था या गलत? यह सवाल इसलिए उठा क्योंकि कर्पूरी ठाकुर की सरकार पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे थे। उनकी राजनीतिक सोच और उनकी नीतियों ने पिछड़े वर्गों पर ज्यादा ध्यान दिया। इससे वह वर्ग तो खुश हुआ, लेकिन कई अन्य लोग खुद को हाशिए पर महसूस करने लगे।
नीतीश कुमार खुद दूर बैठे यह सब सुन रहे थे। सुरेंद्र किशोर के शब्दों में वे खुद कर्पूरी ठाकुर की राजनीति से नाखुश थे और उन्हें लग रहा था कि वे जेपी आंदोलन के उद्देश्यों को पूरा नहीं कर रहे हैं। अचानक इससे नाराज होकर नीतीश कुमार ने इंडिया कॉफी हाउस में एक महत्वपूर्ण बयान दिया।
नीतीश कुमार तेज क्रोध से भर चुके थे। उन्होंने मेज पर हाथ पटक दिया, कुर्सी से उठे और साफ शब्दों में कहा, “मैं सत्ता हासिल करूंगा, फिर उसके लिए साम-दाम, दंड-भेद कोई भी तरीका क्यों न अपनाना पड़े। लेकिन सत्ता मिलने के बाद मैं अच्छे काम करूंगा।” किसी ने सोचा भी नहीं था कि ये सारी बातें आखिरकार सच हो जाएंगी। भविष्य में नीतीश कुमार के लिए बहुत कुछ छिपा था।
शायद उन्हें पता नहीं था और इसीलिए उस दौर का कोई भी नेता यह मानने को तैयार नहीं था कि नीतीश कुमार आगे चलकर बिहार के मुख्यमंत्री बनेंगे। बिहार के पूर्व डिप्टी सीएम और दिवंगत राजनेता सुशील मोदी इस बारे में कहा था कि मुझे उनके बारे में ऐसा कुछ याद नहीं है। छात्र राजनीति के दौरान भी, वे कोई बड़े नेता नहीं थे, ज्यादा सक्रिय भी नहीं थे।
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एक घटना याद करते हुए सुशील ने बताया था कि एक बार नीतीश कुमार को विश्वविद्यालय की उन लोगों की सूची में शामिल किया गया था जिन्हें एहतियातन हिरासत में लिया जाना था। जब पुलिस आई तो नीतीश हमारे साथ थे। लेकिन हम सब हिरासत में चले गए, और नीतीश भाग निकले। उस समय नीतीश ज़्यादा लोकप्रिय नहीं थे, और उन्हें कोई जानता भी नहीं था।
सुशील मोदी ने यह बात तब कही थी जब नीतीश कुछ खास नहीं थे, लेकिन यह बिहार की राजनीति है, जहां नीतीश बाद में मुख्यमंत्री बने, और सुशील मोदी दो बार उपमुख्यमंत्री बने और उनकी सरकार में मंत्री भी रहे। राजनीति में संभावनाओं से कभी इनकार नहीं किया जा सकता, और बात जब बिहार की हो तब तो बिल्कुल नहीं। नीतीश इसका सबसे बड़ा और सटीक उदाहरण हैं।