तेजस्वी यादव (सोशल साइट फेसबुक)
बिहार विधानसभा चुनाव में आरजेडी को मिली करारी हार के कारणों की जांच के लिए गठित टीम ने अपनी रिपोर्ट सौंप दी है। पार्टी सूत्रों के अनुसार, रिपोर्ट में कई चौंकाने वाले तथ्य सामने आए हैं। इसमें संजय यादव की पेड टीम पर सवाल उठाए गए हैं, जिसने बिहार की बजाय हरियाणा से यूट्यूबरों को बुलाकर पार्टी का प्रचार कराया। साथ ही, पार्टी के प्रदेश‑स्तर से लेकर जिला, प्रखंड और पंचायत स्तर के नेताओं को दरकिनार किया गया तथा संगठन और प्रत्याशियों के बीच समन्वय की कमी रही। इसके अतिरिक्त, पार्टी नेताओं का जमीनी स्तर पर सक्रिय न होना भी हार का प्रमुख कारण बताया गया है।
पेड टीम का पार्टी से समन्वय नहीं
संजय यादव की पेड टीम पर भी हार के कारणों की समीक्षा करने वाली टीम ने सवाल उठाए हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि एक विशेष पेड टीम का प्रत्याशियों से कोई संबंध नहीं रहा; वह अपनी मनमर्जी से काम करती रही। इस टीम की कमान सांसद और तेजस्वी प्रसाद यादव के सलाहकार कहे जाने वाले संजय यादव के हाथों में थी। पार्टी की अंदरूनी समीक्षा बैठक में यह राय सामने आई कि प्रत्याशियों के चयन से लेकर चुनावी रणनीति बनाने तक इस विशेष टीम के सदस्य ही काम कर रहे थे, जबकि सीनियर नेताओं को इससे दूर रखा गया। जमीनी कार्यकर्ताओं से कोई फीडबैक नहीं लिया गया, जिससे नेता और कार्यकर्ता निष्क्रिय हो गए। चुनाव में इनकी भागीदारी कहीं नहीं दिखी और परिणाम में इसका असर स्पष्ट हुआ।
फर्जी सर्वे
टीम ने पार्टी की सर्वे टीम पर भी सवाल उठाए हैं। सर्वे रिपोर्ट पर तीखी टिप्पणी करते हुए टीम ने कहा कि खुद ही सर्वे कर नेतृत्व को रिपोर्ट सौंपी गई। इसके बाद 33 विधायकों को टिकट नहीं दिया गया, जिससे पार्टी में बागियों की संख्या बढ़ गई। टिकट न मिलने के कारण बागी हुए विधायकों ने दूसरे दल या निर्दलीय रूप में चुनावी मैदान में उतर कर पार्टी को करारी हार का सामना करना पड़ा।
बैनर पोस्टर से लालू गायब
तेज प्रताप यादव के निष्कासन और चुनावी घोषणा से पहले रोहिणी आचार्य के बागी होने से यह संदेश गया कि लालू परिवार एकजुट नहीं है। पार्टी प्रमुख लालू प्रसाद को बैनर‑पोस्टर से हटाया गया, जिससे लालूवाद के समर्थक निराश हो गए। बिहार की जगह हरियाणा और दिल्ली से यू‑ट्यूबर बुलाकर प्रचार‑प्रसार का आडंबर रचा गया, जबकि उन्हें बिहार की कोई जानकारी नहीं थी। उन्हें पार्टी की पूरी कमान दे दी गई।
माई-बहिन योजना का फॉर्म के लिए पैसा लेना
माई‑बहिन योजना का फॉर्म भरवाने के बदले ग्रामीण महिलाओं से पैसा लिया गया, जबकि इसे मुफ्त में भरवाना था और पार्टी के नेताओं को यह काम करना चाहिए था। लेकिन इसकी जिम्मेदारी दिल्ली‑हरियाणा से आई टीम के सदस्यों को दे दी गई। चुनाव में “हर घर नौकरी” जैसी अव्यवहारिक घोषणाएँ किसी के गले नहीं उतरीं। सामाजिक सुरक्षा पेंशन की राशि बढ़ाने और दो‑सौ यूनिट मुफ्त बिजली के वादे को सरकार ने आंशिक रूप से लागू किया।