परसा विधानसभा सीट (डिजाइन फोटो)
Parsa Vidhansabha Seat Profile: सारण जिले में स्थित परसा विधानसभा क्षेत्र बिहार की राजनीति में एक विशिष्ट स्थान रखता है। यह क्षेत्र न केवल चुनावी परिणामों के लिए, बल्कि अपने सामाजिक और सांस्कृतिक प्रभाव के लिए भी जाना जाता है। गंगा नदी के किनारे बसे परसा का बाजार स्थानीय व्यापार का केंद्र है, जबकि गंगा घाट धार्मिक अनुष्ठानों और स्नान के लिए प्रसिद्ध है। प्रशासनिक रूप से यह एक सामुदायिक विकास खंड है, जो गंडक नदी से मात्र 7 किलोमीटर दूर स्थित है।
परसा क्षेत्र मुख्यतः कृषि पर आधारित है। यहां धान, गेहूं, मक्का, दाल और केले की खेती प्रमुख है। इसके साथ ही डेयरी और पोल्ट्री जैसे सहायक व्यवसाय ग्रामीणों को अतिरिक्त आय प्रदान करते हैं। एकमा सबडिवीजन मुख्यालय यहां से 7 किलोमीटर, छपरा जिला मुख्यालय 42 किलोमीटर और पटना 60 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है, जिससे क्षेत्रीय संपर्क बना रहता है।
परसा विधानसभा सीट पर अब तक 18 बार चुनाव हो चुके हैं, लेकिन एक बात हमेशा स्थिर रही- यहां से कभी भी गैर-यादव उम्मीदवार विजयी नहीं हुआ। यहां की जनता की जातीय निष्ठा इतनी गहरी है कि नेता चाहे दल बदलें, जनता का समर्थन उन्हें मिलता रहता है। भाजपा का इस सीट पर कभी खाता नहीं खुला और कांग्रेस भी 1985 के बाद से जीत दर्ज नहीं कर सकी।
1952 में हुए पहले चुनाव में कांग्रेस के टिकट पर दरोगा प्रसाद राय को जनता ने चुना। इसके बाद लगातार सात चुनावों तक उन्होंने जनता का विश्वास बनाए रखा। 1977 में जनता पार्टी के रामानंद प्रसाद यादव ने पहली बार बदलाव लाया, लेकिन यादव समुदाय से ही होने के कारण जातीय समीकरण नहीं बदले।
1985 में जनता ने फिर से दरोगा प्रसाद राय के परिवार को समर्थन दिया। उनके बेटे चंद्रिका राय ने पिता की राजनीतिक विरासत को आगे बढ़ाया और लगातार पांच विधानसभा चुनावों में जीत हासिल की। उन्होंने समय के साथ राजनीतिक दल बदले, लेकिन जनता का समर्थन बना रहा। 2015 में उन्हें छठी बार जीत मिली थी।
चंद्रिका राय की बेटी ऐश्वर्या राय की शादी लालू प्रसाद यादव के बेटे तेज प्रताप यादव से हुई थी, लेकिन यह रिश्ता ज्यादा समय तक नहीं चला। इसके बाद चंद्रिका राय ने राजद से इस्तीफा दे दिया और अगले चुनाव में उन्हें हार का सामना करना पड़ा। यह घटना परसा की राजनीति में एक भावनात्मक मोड़ साबित हुई।
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परसा विधानसभा क्षेत्र की सबसे अहम विशेषता यह है कि यहां से आज तक कोई भी गैर-यादव उम्मीदवार जीत नहीं सका है। चाहे दल कोई भी हो, जनता का समर्थन यादव समुदाय के उम्मीदवारों को ही मिलता रहा है। यह जातीय निष्ठा परसा की राजनीति की दिशा तय करती है।
बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में परसा सीट पर फिर से यादव उम्मीदवारों के बीच मुकाबला तय माना जा रहा है। सवाल यह है कि क्या इस बार कोई नया चेहरा राय परिवार की विरासत को चुनौती देगा या फिर जातीय निष्ठा एक बार फिर अपना असर दिखाएगी। परसा की जनता का फैसला पूरे राज्य की राजनीति के लिए संकेत बन सकता है।