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मधेपुरा विधानसभा: मधेपुरा की जनता पर चढ़ा राजनैतिक रंग, कौन जीतेगा 2025 की चुनावी जंग?

Bihar Assembly Elections: मधेपुरा विधानसभा सीट 'यादव राजनीति' का गढ़ मानी जाती है। 1957 से लेकर अब तक के 17 विधानसभा चुनावों में केवल यादव समुदाय के उम्मीदवारों को ही जीत मिली है।

  • By अभिषेक सिंह
Updated On: Oct 16, 2025 | 11:34 AM

मधेपुरा विधानसभा सीट (डिजाइन फोटो)

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Madhepura Assembly Constituency: कोसी नदी के आंचल में बसी मधेपुरा विधानसभा सीट 2025 के चुनावी महाभारत के लिए तैयार है। सियासी दृष्टिकोण से तो हर एक विधानसभा सीट अहम होती है, लेकिन मधेपुरा सांस्कृतिक और धार्मिक महत्व के कारण भी राज्य की पहचान पहचान का हिस्सा होने की वजह से अधिक महत्वपूर्ण हो जाती है।

सहरसा का अनुमंडल मधेपुरा 1981 में जिले के तौर पर सामने आया। यह क्षेत्र कोसी नदी की गोद में बसा है, जो जितनी उपजाऊ जमीन देती है, उतनी ही विनाशकारी बाढ़ से तबाही भी मचाती है। कृषि आधारित अर्थव्यवस्था वाले इस जिले को प्राकृतिक आपदाओं से निरंतर जूझना पड़ता है।

आखिर क्यों मशहूर है मधेपुरा?

मधेपुरा का सांस्कृतिक इतिहास उतना ही समृद्ध है, जितना इसका राजनीतिक अतीत। सिंहेश्वर स्थान में स्थित शिव मंदिर, ऋषि श्रृंग की कथाओं से जुड़ा है, जहां हर साल महाशिवरात्रि पर लाखों श्रद्धालु उमड़ते हैं। बाबा विशु राउत पचरासी धाम न केवल लोक आस्था का प्रतीक है, बल्कि क्षेत्रीय पहचान का भी केंद्र बन चुका है। इस पवित्र स्थल पर हर साल विशाल मेला लगता है, जिसका उद्घाटन खुद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार तक कर चुके हैं।

यादव राजनीति का अभेद्य दुर्ग

राजनीतिक रूप से यह क्षेत्र ‘यादव राजनीति’ का गढ़ माना जाता है। 1957 से लेकर अब तक के 17 विधानसभा चुनावों में केवल यादव समुदाय के उम्मीदवारों को ही जीत मिली है। यही नहीं, लोकसभा चुनावों में भी यही ट्रेंड देखने को मिला है।

यहां के यादव मतदाता निर्णायक भूमिका में हैं, जिनकी संख्या क्षेत्र की कुल जनसंख्या में सबसे अधिक है। 2024 के आंकड़ों के अनुसार, विधानसभा क्षेत्र की अनुमानित जनसंख्या 5,74,358 है, जिनमें 3,51,561 मतदाता हैं। इसमें पुरुष मतदाताओं की संख्या 1,82,255, महिलाओं की संख्या 1,69,289 और 17 थर्ड जेंडर हैं।

लालू-शरद-पप्पू की सियासी जमीन

मधेपुरा की राजनीति में लालू प्रसाद यादव, शरद यादव और पप्पू यादव का नाम हमेशा चर्चा में रहा है। दिलचस्प बात यह है कि इनमें से किसी का मूल संबंध मधेपुरा से नहीं रहा, फिर भी इनका राजनीतिक जीवन इस जिले से जुड़ा रहा। लालू प्रसाद यादव ने ही शरद यादव को मधेपुरा की राजनीति में प्रवेश दिलाया था।

बाद में दोनों के बीच तल्खी इतनी बढ़ी कि 1999 के लोकसभा चुनाव में शरद यादव ने लालू को हराकर सियासी तूफान ला दिया। पप्पू यादव, जिनकी छवि एक समय बाहुबली नेता की रही, उन्होंने भी यहां अपनी राजनीतिक जमीन बनाई, लेकिन यादव वोटों का स्पष्ट ध्रुवीकरण कभी किसी एक नेता को स्थायी जनाधार नहीं दे सका।

लगातार तीन बार RJD को मिली जीत

वर्तमान में यह सीट राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के पास है और चंद्रशेखर यादव ने लगातार तीन बार 2015, 2020 और 2021 के उपचुनाव में जीत दर्ज की है। राजद की मजबूती का एक बड़ा कारण मधेपुरा में एल्पस्टॉम लोकोमोटिव फैक्ट्री का आना भी माना जाता है, जिसे लालू यादव ने 2007 में प्रस्तावित किया था। हालांकि, इसका उद्घाटन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2018 में किया, लेकिन राजद ने इसका श्रेय बखूबी लिया और चुनावी लाभ भी उठाया।

दिलचस्प होगी 2025 की चुनावी जंग

2025 का चुनाव बेहद दिलचस्प होगा, क्योंकि राजद के सामने कई चुनौतियां हैं। एक ओर पप्पू यादव की सक्रियता से यादव वोटों में सेंधमारी का खतरा है, तो दूसरी ओर जेडीयू और भाजपा मिलकर किसी स्थानीय और प्रभावी यादव चेहरे को उतारते हैं, तो मुकाबला त्रिकोणीय हो सकता है। हालांकि, भाजपा को इस सीट पर आज तक कोई सफलता नहीं मिली है और उसकी राजनीतिक मौजूदगी यहां बेहद सीमित रही है।

यह भी पढ़ें: बहादुरगंज विधानसभा: ओवैसी की पार्टी ने भेद दिया कांग्रेस का किला, क्या दोबारा हासिल होगा वर्चस्व?

चुनाव के मुख्य मुद्दों की बात करें तो बेरोजगारी, कोसी की बाढ़, कृषि सुधार, इंफ्रास्ट्रक्चर विकास और युवाओं का भविष्य सबसे प्रमुख हैं। जनता अब जातीय राजनीति से थोड़ा आगे बढ़कर विकास को महत्व देने लगी है, लेकिन जातीय समीकरण अब भी निर्णायक भूमिका निभाते हैं।

(एजेंसी इनपुट के साथ)

Madhepura vidhansabha seat political analysis for bihar elections 2025

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Published On: Oct 16, 2025 | 11:34 AM

Topics:  

  • Bihar Assembly Election 2025
  • Bihar News
  • Bihar Politics

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