केसरिया विधानसभा सीट(डिजाइन फोटो)
Kesaria Assembly Seat Profile: 1951 में अस्तित्व में आई इस सीट का 2008 में परिसीमन हुआ, जिसमें केसरिया प्रखंड के साथ संग्रामपुर और कल्याणपुर प्रखंड के कुछ हिस्सों को शामिल किया गया। केसरिया का नाम विश्व प्रसिद्ध बौद्ध स्तूप से जुड़ा है, जो भगवान बुद्ध की अंतिम यात्रा का स्मरण स्थल है।
केसरिया मोतिहारी से लगभग 40 किलोमीटर दूर स्थित है, जबकि निकटतम रेलवे स्टेशन चकिया 25 किलोमीटर की दूरी पर है। यह क्षेत्र मुख्यतः ग्रामीण और कृषि-प्रधान है। यहां धान, गेहूं और मक्का जैसी फसलें प्रमुख हैं। बड़े उद्योगों की कमी के बावजूद छोटे व्यापार और प्रवासी मजदूरों की आय स्थानीय अर्थव्यवस्था को सहारा देती है। आधारभूत संरचना और सड़क संपर्क की स्थिति अब भी चुनौतीपूर्ण बनी हुई है।
2020 के विधानसभा चुनाव में केसरिया में 2,67,733 मतदाता दर्ज थे, जो 2024 में बढ़कर 2,72,436 हो गए। चुनाव आयोग के अनुसार, 1,936 मतदाता क्षेत्र से बाहर चले गए। यहां औसतन मतदान प्रतिशत 55 से 57 के बीच रहा है। सामाजिक संरचना में अनुसूचित जाति की हिस्सेदारी 11.4% (30,522 मतदाता), अनुसूचित जनजाति की 0.35% (937 मतदाता) और मुस्लिम समुदाय की 13.9% (37,215 मतदाता) है। शहरी मतदाता 5% से भी कम हैं, जिससे यह सीट पूरी तरह ग्रामीण जनभावनाओं पर आधारित रहती है।
केसरिया विधानसभा सीट पर अब तक 17 बार चुनाव हो चुके हैं। इनमें भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीआई) ने सबसे ज्यादा 6 बार जीत दर्ज की है। कांग्रेस को 4 बार, जनता दल (यू) और समता पार्टी को 3 बार, राजद को 2 बार, जबकि जनता पार्टी और भाजपा को एक-एक बार सफलता मिली है। यह विविधता दर्शाती है कि यहां मतदाता समय-समय पर बदलाव को स्वीकारते रहे हैं।
2020 के विधानसभा चुनाव में जेडीयू की शालिनी मिश्रा ने राजद के संतोष कुशवाहा को 9,227 वोटों से हराया था। लोजपा और रालोसपा ने भी उल्लेखनीय वोट हासिल किए, जिससे मुकाबला बहुकोणीय बन गया। 2024 के लोकसभा चुनाव में भाजपा नेता राधामोहन सिंह ने विपक्षी आईएनडीआई गठबंधन के राजेश कुमार (वीआईपी) को 20,892 वोटों से हराकर क्षेत्र में भाजपा की पकड़ को फिर मजबूत किया।
केसरिया विधानसभा की खासियत यह रही है कि यहां मतदाता आम तौर पर स्पष्ट जनादेश देते हैं। हालांकि 2020 का चुनाव अपेक्षाकृत करीबी रहा। 2025 के चुनाव में एनडीए गठबंधन मजबूत स्थिति में नजर आ रहा है, लेकिन राजद-कांग्रेस गठबंधन भी संघर्ष में है। उन्हें अपने पारंपरिक वोट बैंक को और सघन करना होगा। वहीं प्रशांत किशोर की जन सुराज पार्टी भी कुछ क्षेत्रों में असर डाल सकती है, हालांकि इसका प्रभाव कितना निर्णायक होगा, यह कहना अभी मुश्किल है।
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केसरिया विधानसभा सीट पर 2025 का चुनाव एक बार फिर बहुकोणीय और रोमांचक होने की संभावना है। सामाजिक समीकरण, स्थानीय मुद्दे और राजनीतिक रणनीतियां इस बार भी मतदाताओं के फैसले को प्रभावित करेंगी। देखना होगा कि इस बार किसका पलड़ा भारी पड़ता है।