कल्याणपुर विधानसभा सीट(डिजाइन फोटो)
Kalyanpur Assembly Seat: 2008 में परिसीमन के बाद अस्तित्व में आई इस सीट पर अब तक तीन विधानसभा चुनाव हो चुके हैं, लेकिन किसी भी विधायक को लगातार दूसरी बार जीतने का मौका नहीं मिला है। यह प्रवृत्ति इसे चुनावी विश्लेषकों के लिए एक दिलचस्प केस स्टडी बनाती है।
2010 में हुए पहले चुनाव में जदयू की रजिया खातून ने राजद के मनोज कुमार यादव को हराया। 2015 में जदयू महागठबंधन का हिस्सा बनी और भाजपा के सचिन्द्र प्रसाद सिंह ने रजिया खातून को पराजित कर सीट पर कब्जा किया। 2020 में मुकाबला बेहद कड़ा रहा और राजद के मनोज कुमार यादव ने भाजपा के सचिन्द्र प्रसाद सिंह को मात्र 1,193 वोटों से हराकर जीत दर्ज की। यह लगातार बदलते जनादेश का प्रमाण है।
विधानसभा चुनावों में भले ही भाजपा को हार का सामना करना पड़ा हो, लेकिन लोकसभा स्तर पर पार्टी का वर्चस्व बना रहा। 2014 और 2019 के आम चुनावों में भाजपा को यहां भारी बढ़त मिली थी। 2024 के लोकसभा चुनाव में भी पार्टी को 14,014 वोटों की बढ़त हासिल हुई, हालांकि यह पिछली बढ़तों की तुलना में कम रही।
2020 में कल्याणपुर में 2.56 लाख से अधिक मतदाता पंजीकृत थे, जिनमें करीब 16% अनुसूचित जाति और 14% मुस्लिम वोटर शामिल थे। यह इलाका पूरी तरह ग्रामीण है और मतदाता संख्या में वृद्धि धीमी रही है। 2024 तक यह संख्या बढ़कर 2.63 लाख हो गई, जो दर्शाता है कि यहां पलायन अपेक्षाकृत कम है और स्थानीय जनसंख्या स्थिर बनी हुई है।
कल्याणपुर का ऐतिहासिक महत्व भी कम नहीं है। यही वह क्षेत्र है जहां महात्मा गांधी ने 1917 में नील आंदोलन की शुरुआत की थी, जिसने स्वतंत्रता संग्राम को नई दिशा दी। भौगोलिक रूप से यह क्षेत्र उपजाऊ है और गंडक नदी यहां की कृषि के लिए वरदान है। हालांकि, बाढ़ का खतरा भी बना रहता है। मुख्य फसलें धान, गेहूं और दलहन हैं, लेकिन सिंचाई की कमी और कमजोर शिक्षा व स्वास्थ्य सेवाएं यहां की प्रमुख समस्याएं हैं।
रोजगार के सीमित अवसरों के कारण बड़ी संख्या में लोग दिल्ली, सूरत और कोलकाता जैसे शहरों की ओर पलायन करते हैं। स्थानीय स्तर पर शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं की स्थिति सुधार की मांग करती है। इन मुद्दों को लेकर जनता का रुख चुनाव में निर्णायक हो सकता है।
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राजनीतिक रूप से कल्याणपुर हर बार नया समीकरण गढ़ता है। लोकसभा में भाजपा का दबदबा है, लेकिन विधानसभा में मतदाता अक्सर अलग रुख अपनाते हैं। 2025 का चुनाव इसलिए खास होगा क्योंकि अब तक कोई भी उम्मीदवार इस सीट से दोबारा नहीं जीत पाया है। ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा कि इस बार कल्याणपुर की जनता किसे मौका देती है और क्या कोई दल इस बदलते जनादेश को स्थायित्व में बदल पाता है।