डिजाइन फोटो (नवभारत)
Jokihat Assembly Constituency: बिहार विधानसभा चुनाव 2025 की सरगर्मी के बीच अररिया जिले की जोकीहाट विधानसभा सीट एक बार फिर सियासी चर्चा का केंद्र बन गई है। यह सीट न केवल अपने सामाजिक-राजनीतिक समीकरणों के लिए जानी जाती है, बल्कि यहां मुस्लिम मतदाताओं की निर्णायक भूमिका इसे राज्य की सबसे दिलचस्प सीटों में शामिल करती है। इस बार सवाल यह है कि क्या तस्लीमुद्दीन परिवार का दशकों पुराना दबदबा टूटेगा या फिर एक बार फिर उनकी विरासत कायम रहेगी।
1967 में अस्तित्व में आई जोकीहाट विधानसभा सीट पर अब तक 16 चुनाव हो चुके हैं, जिनमें दो उपचुनाव (1996 और 2018) शामिल हैं। खास बात यह है कि इस सीट से अब तक जितने भी विधायक चुने गए हैं, वे सभी मुस्लिम समुदाय से रहे हैं। इसका मुख्य कारण यहां मुस्लिम मतदाताओं की भारी संख्या है — 2020 के आंकड़ों के अनुसार, कुल 2,93,347 मतदाताओं में से 1,92,728 यानी 65.70% मुस्लिम वोटर थे। अनुसूचित जाति के मतदाता 7.5% यानी 22,001 थे। 2024 के लोकसभा चुनाव तक मतदाताओं की संख्या बढ़कर 3,05,595 हो चुकी है, जिससे इस बार मुकाबला और भी व्यापक हो सकता है।
जोकीहाट की राजनीति लंबे समय तक वरिष्ठ नेता मोहम्मद तस्लीमुद्दीन और उनके परिवार के इर्द-गिर्द घूमती रही है। तस्लीमुद्दीन ने कांग्रेस (1969), निर्दलीय (1972), जनता पार्टी (1977, 1985) और समाजवादी पार्टी (1995) से जीत दर्ज की। 1996 में राष्ट्रीय राजनीति में प्रवेश के बाद उनके बेटे सरफराज आलम ने विरासत संभाली और 1996 के उपचुनाव में जनता दल, फिर 2000 में राजद से जीत हासिल की। हालांकि, 2005 में जदयू के मंजर आलम ने उन्हें हराया। इसके बाद 2010 और 2015 में सरफराज आलम ने जदयू के टिकट पर वापसी की और जीत दर्ज की। 2020 में राजद ने फिर से सरफराज को टिकट दिया, लेकिन इस बार मुकाबला पारिवारिक हो गया।
2020 के विधानसभा चुनाव में जोकीहाट सीट पर सियासी ड्रामा चरम पर था। राजद ने सरफराज आलम को टिकट दिया, जबकि उनके भाई शाहनवाज आलम को एआईएमआईएम ने मैदान में उतारा। दोनों भाइयों के बीच हुए इस मुकाबले ने चुनाव को बेहद रोमांचक बना दिया। अंततः शाहनवाज आलम ने एआईएमआईएम के टिकट पर जीत हासिल की। हालांकि, कुछ समय बाद उन्होंने राजद का दामन थाम लिया, जिससे यह सीट फिर से तस्लीमुद्दीन परिवार के प्रभाव में आ गई।
जोकीहाट की भौगोलिक स्थिति और आर्थिक गतिविधियां इसे एक विशिष्ट पहचान देती हैं। कोसी नदी के उपजाऊ जलोढ़ मैदानों में बसे इस क्षेत्र में धान, मक्का और जूट की खेती प्रमुख है। स्थानीय अर्थव्यवस्था मुख्य रूप से कृषि पर आधारित है, जिसे प्रवासी श्रमिकों से प्राप्त धनराशि से बल मिलता है। हालांकि, रोजगार की कमी यहां की सबसे बड़ी सामाजिक-आर्थिक चुनौती है। युवाओं को काम की तलाश में दिल्ली, पंजाब और महाराष्ट्र जैसे राज्यों में पलायन करना पड़ता है। शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं की स्थिति भी संतोषजनक नहीं है। बुनियादी ढांचे की कमी, सड़क और बिजली की समस्याएं, और स्कूलों में शिक्षकों की अनुपलब्धता जैसे मुद्दे यहां के मतदाताओं के लिए अहम हैं।
2025 के चुनाव में जोकीहाट सीट पर मुकाबला फिर से दिलचस्प होने वाला है। तस्लीमुद्दीन परिवार के प्रभाव को चुनौती देने के लिए अन्य दलों की रणनीति पर नजरें टिकी हैं। एआईएमआईएम, जदयू, कांग्रेस और भाजपा — सभी दल इस सीट पर अपनी पकड़ मजबूत करने की कोशिश में हैं। मुस्लिम मतदाताओं की निर्णायक भूमिका के चलते उम्मीदवार चयन और गठबंधन की रणनीति इस बार भी बेहद महत्वपूर्ण होगी। साथ ही, युवाओं की बढ़ती राजनीतिक जागरूकता और विकास की मांग इस बार चुनावी मुद्दों को नया रूप दे सकती है।
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जोकीहाट विधानसभा सीट पर इस बार मुकाबला विरासत बनाम बदलाव का होगा। तस्लीमुद्दीन परिवार की पकड़ को चुनौती देने के लिए विपक्षी दलों को न केवल मजबूत उम्मीदवार उतारने होंगे, बल्कि स्थानीय मुद्दों पर ठोस एजेंडा भी पेश करना होगा। अब देखना यह है कि क्या जोकीहाट में तस्लीमुद्दीन परिवार का दबदबा खत्म होगा या फिर एक बार फिर उनकी विरासत को मतदाता समर्थन देंगे। फैसला जनता के हाथ में है, जिसका परिणाम 14 नवंबर को आएगा तो पता चलेगा कि लोगों ने किस तरह की राजनीति को चुना है।