बिहार विधानसभा चुनाव, 2025, (कॉन्सेप्ट फोटो)
Islampur Assembly Constituecny: इस्लामपुर विधानसभा सीट बिहार के नालंदा जिले में स्थित है और यह नालंदा लोकसभा क्षेत्र का हिस्सा है। यह क्षेत्र अपने राजनीतिक उतार-चढ़ाव के साथ-साथ अपनी धार्मिक पहचान के कारण भी खासा महत्व रखता है। इस्लामपुर को ‘छोटी अयोध्या’ के नाम से भी जाना जाता है। धार्मिक दृष्टिकोण से इसे विशेष महत्व प्राप्त है, क्योंकि यहीं स्वामी युगलानन्य शरण जी महाराज का जन्म हुआ था। वे रामभक्ति शाखा में रसिक सम्प्रदाय के संस्थापक थे। इस तरह, इस्लामपुर धार्मिक शांति और चुनावी सरगर्मी का अनूठा संगम प्रस्तुत करता है।
इस बार इस्लामपुर विधानसभा सीट पर मुख्य मुकाबला जदयू और राजद के बीच ही केंद्रित है, हालांकि जन सुराज पार्टी ने भी अपनी चुनौती पेश की है। जदयू ने जहाँ अपने पुराने उम्मीदवार को बदलकर नया दांव खेला है, वहीं राजद लगातार दूसरी जीत हासिल करने के लिए अपनी पूरी ताकत झोंक रही है।
1951 में विधानसभा क्षेत्र के रूप में स्थापित हुई इस्लामपुर सीट का राजनीतिक इतिहास काफी रोचक रहा है। शुरुआती दौर को देखा जाए तो यह सीट कभी कांग्रेस और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (CPI) का गढ़ थी। कांग्रेस ने यहाँ 4 बार और सीपीआई ने 3 बार जीत हासिल की। उसके बाद पिछले कुछ दशकों में जनता दल (यूनाइटेड) यानी जदयू ने यहाँ अपनी मजबूत पकड़ बनाई और अब तक कुल 5 बार चुनाव जीते हैं।
यह सीट 2020 के विधानसभा चुनाव में काफी दिलचस्प मोड़ पर थी, जब एक बड़ा उलटफेर देखने को मिला। यहां राजद की पहली जीत 2020 के चुनाव में हुयी। जब राष्ट्रीय जनता दल ने पहली बार इस सीट पर विजय हासिल की। राजद के उम्मीदवार राकेश रौशन ने जदयू के चंद्रसेन प्रसाद को हराकर अपनी पार्टी की जीत दर्ज की थी। यह जीत जदयू के लिए एक बड़ा झटका थी, क्योंकि यह सीट मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के गृह जिले नालंदा में आती है। अब राजद यहाँ लगातार दूसरी जीत दर्ज करने और हैट्रिक की ओर बढ़ने के लिए बेताब है।
इस्लामपुर विधानसभा सीट पर जातीय समीकरण चुनावी नतीजों को सीधे तौर पर प्रभावित करते हैं। यहाँ कुर्मी और यादव समुदाय के मतदाता निर्णायक भूमिका में रहते हैं। इन दोनों समुदायों का समर्थन ही अक्सर जीत और हार का फैसला करता है। अन्य महत्वपूर्ण वर्ग के वोटरों में रविदास, पासवान, मुस्लिम और कोइरी समुदाय के मतदाताओं की भी महत्वपूर्ण संख्या है।
जदयू की वापसी की रणनीति कुर्मी वोटों को अपने पाले में बनाए रखने और अन्य जातियों का समर्थन हासिल करने पर टिकी होगी, जबकि राजद यादव वोट बैंक के साथ-साथ अन्य समुदायों के समर्थन को मजबूत करने की कोशिश करेगी। जदयू ने नया चेहरा उतारकर संकेत दिया है कि वह पिछले चुनाव की हार के कारणों को दूर करना चाहती है, जबकि राजद मौजूदा विधायक के दम पर अपनी सीट बरकरार रखने की पूरी ताकत लगाएगी। इस बार यह मुकाबला पूरी तरह से समीकरणों को साधने पर निर्भर करेगा।
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नालंदा जिले की इस महत्वपूर्ण सीट पर परिणाम किसके पक्ष में आता है, यह देखना दिलचस्प होगा। क्या जदयू अपने गढ़ में वापसी कर पाएगी या राजद एक बार फिर इतिहास दोहराएगी? इस सवाल का जवाब तो मतगणना के दिन ही मिलेगा।