बिहार विधानसभा चुनाव 2025, (कॉन्सेप्ट फोटो)
Amarpur Assembly Constituency: बिहार के बांका जिले की अमरपुर विधानसभा सीट, अपनी ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और धार्मिक विरासत के लिए जानी जाती है। मुगल शासक शाहजहां के समय के मुख्यालय और प्राचीन बौद्ध मठों के अवशेषों वाली यह धरती, इस बार चुनावी रणभूमि का हॉटस्पॉट बनी हुई है। यहां मुख्य मुकाबला कांग्रेस और जनता दल यूनाइटेड (जदयू) के बीच है, लेकिन जन सुराज की एंट्री ने समीकरण को जटिल बनाते हुए इसे त्रिकोणीय बना दिया है।
अमरपुर विधानसभा क्षेत्र में हमेशा से ही मुकाबला कड़ा रहा है और कोई भी दल यहां लंबे समय तक अपना वर्चस्व कायम नहीं रख पाया है।साल 1957 में स्थापित इस सीट पर शुरुआती दौर में कांग्रेस का दबदबा था, जिसने चार बार जीत दर्ज की थी, लेकिन 1985 के बाद से पार्टी यहां जीत नहीं पाई है। 1985 के बाद से यह सीट राजद और जदयू के बीच घूमती रही है, जिन्होंने तीन-तीन बार जीत हासिल की है। पिछले चुनाव (2020) में जदयू के जयंत राज कुशवाहा ने कांग्रेस के जितेंद्र सिंह को कड़ी टक्कर देते हुए हराया था, जिससे यह स्पष्ट होता है कि दोनों दलों के बीच अंतर बहुत कम है।
इस बार कांग्रेस ने फिर से जितेंद्र सिंह को मैदान में उतारा है, वहीं जदयू ने निवर्तमान विधायक जयंत राज कुशवाहा पर भरोसा जताया है। जन सुराज पार्टी से सुजाता वैद्य भी उम्मीदवार हैं, जो दोनों मुख्य दलों के वोटों में सेंध लगाकर मुकाबला अप्रत्याशित बना सकती हैं।
अमरपुर की पहचान इसकी समृद्ध सांस्कृतिक विरासत से जुड़ी है। बनहारा गांव को मुगल शासक शाहजहां के गवर्नर शाह सुजा ने अपना मुख्यालय बनाया था, जो इसके ऐतिहासिक महत्व को दर्शाता है। डुमरामा गांव में पाए गए स्तूपों के अवशेष इस क्षेत्र में प्राचीन बौद्ध मठों के होने के प्रमाण देते हैं। वहीं, चांदन नदी के तट पर स्थित ज्येष्ठगौरनाथ शिव मंदिर एक महत्वपूर्ण हिंदू तीर्थ स्थल है। शिवरात्रि के अवसर पर यहां भव्य मेला लगता है। शंभूगंज प्रखंड के गौरीपुर में खड़गपुर की महारानी चन्द्रज्योति द्वारा निर्मित शिव मंदिर और चुटिया गांव की पहाड़ी पर स्थित चुटेश्वरनाथ मंदिर भी स्थानीय आस्था के केंद्र हैं।
अमरपुर में जीत-हार का फैसला जातीय समीकरणों पर निर्भर करता है। चूंकि जदयू ने जयंत राज कुशवाहा को टिकट दिया है, इसलिए कुशवाहा समुदाय के वोटों का रुझान निर्णायक होगा। वहीं, राजद, जदयू और कांग्रेस ने यहां विभिन्न समुदायों के वोटों को साधने के लिए जटिल रणनीति अपनाई है। यादव, मुस्लिम, दलित और सवर्ण मतदाताओं का मत विभाजन ही अंतिम परिणाम तय करेगा।
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2025 का चुनाव यह तय करेगा कि क्या कांग्रेस अपना खोया हुआ आधार वापस पाने में सफल होती है, या जदयू का मौजूदा विधायक अपनी सीट बरकरार रखता है, जबकि जन सुराज की उपस्थिति मुकाबला त्रिकोणीय बनाती है।