कदवा विधानसभा सीट, डिजाइन फोटो (नवभारत)
Kadwa Assembly Seat Profile: कदवा की राजनीति हमेशा बदलाव के साथ आगे बढ़ी है। वर्ष 2000 में राजद, 2005 में जदयू और 2010 में भाजपा ने जीत दर्ज की थी। इसके बाद कांग्रेस के शकील अहमद खान ने 2015 और 2020 में लगातार दो बार जीत हासिल कर पार्टी को मजबूत स्थिति में पहुंचाया। अब तीसरी बार उनके सामने एंटी इनकंबेंसी की चुनौती है, जिसे पार करना आसान नहीं होगा।
कदवा विधानसभा की स्थापना 1951 में हुई थी, लेकिन 1962 में परिसीमन के चलते इसे समाप्त कर दिया गया। 1977 में यह सीट फिर से अस्तित्व में आई। महानंदा और बरंडी नदियों के जलोढ़ मैदानों में बसे इस क्षेत्र की भौगोलिक स्थिति चुनावी रुख तय करने में अहम भूमिका निभाती है। हर साल आने वाली बाढ़ यहां की कृषि और आजीविका को प्रभावित करती है।
कदवा की अर्थव्यवस्था मुख्यतः कृषि पर आधारित है। धान, मक्का, जूट और केले की खेती यहां प्रमुख है। मखाना और मछली उत्पादन भी इस क्षेत्र की पहचान हैं। लेकिन बार-बार की बाढ़ ने किसानों की कमर तोड़ दी है। रोजगार के सीमित अवसरों के कारण बड़ी संख्या में लोग पलायन को मजबूर हैं।
यह क्षेत्र जातीय रूप से बेहद विविध है। अति पिछड़ा वर्ग की आबादी लगभग 30 फीसदी है, जबकि मुस्लिम मतदाता 32 फीसदी के करीब हैं। ओबीसी, अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और सामान्य वर्ग की भी उल्लेखनीय हिस्सेदारी है। यह विविधता चुनावी रणनीति को जटिल बनाती है और किसी एक वर्ग पर निर्भर रहना जोखिम भरा हो सकता है।
2020 के चुनाव में कुल 2.81 लाख मतदाताओं में से केवल 60.31 प्रतिशत ने मतदान किया, जो हाल के वर्षों में सबसे कम रहा। मुस्लिम बहुलता के बावजूद धार्मिक आधार पर मतदान का सीधा असर नहीं दिखा। अब तक यहां से 6 हिंदू और 8 मुस्लिम विधायक चुने जा चुके हैं। 2020 में कांग्रेस को 71 हजार, जदयू को 38 हजार और एलजेपी को 31 हजार वोट मिले थे। एलजेपी की मौजूदगी ने जदयू के वोट काटे, जिससे कांग्रेस को फायदा हुआ।
इस बार यह देखना रोचक होगा कि जदयू फिर से उम्मीदवार उतारेगी या भाजपा सीट पर दावा करेगी। एलजेपी की भूमिका भी अहम रहेगी- क्या वह फिर से तीसरा कोण बनेगी या गठबंधन की राजनीति में कोई बड़ा फेरबदल होगा। कांग्रेस के लिए यह चुनाव अपनी पकड़ बनाए रखने की परीक्षा है, जबकि एनडीए के लिए यह सीट जीतने का अवसर।
जनता का रुख इस बार किस ओर होगा, यह कहना अभी मुश्किल है। कांग्रेस के शकील अहमद खान ने पिछले दो कार्यकाल में क्या ऐसा किया है जिससे जनता उन्हें फिर मौका देगी, यह सवाल चर्चा में है। अगर एनडीए किसी लोकप्रिय और स्थानीय मुद्दों से जुड़े चेहरे को मैदान में उतारता है, तो मुकाबला बेहद कड़ा हो सकता है।
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कदवा विधानसभा चुनाव 2025 में जातीय संतुलन, बाढ़ की मार, रोजगार की कमी और राजनीतिक रणनीति के बीच जनता का फैसला तय करेगा कि किस दल पर भरोसा जताया जाएगा। यह सीट सीमांचल की सियासी दिशा को भी प्रभावित करने वाली साबित हो सकती है।