बांग्लादेश में हिंसा कि एक तस्वीर, फोटो ( सो. सोशल मीडिया )
नवभारत इंटरनेशनल डेस्क: संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयोग की एक हालिया रिपोर्ट में बांग्लादेश में 2024 में हुए छात्र आंदोलन और इसके बाद हुई हिंसा को लेकर गंभीर तथ्य उजागर किए गए हैं। रिपोर्ट में शेख हसीना सरकार और मोहम्मद यूनुस के नेतृत्व वाली अंतरिम सरकार के कार्यकाल में मानवाधिकार उल्लंघनों का विस्तार से उल्लेख किया गया है।
रिपोर्ट के मुताबिक, आंदोलन के दौरान सुरक्षा बलों द्वारा किए गए हमलों में करीब 1,400 लोगों की जान गई, जिनमें 12-13% बच्चे भी शामिल थे। विरोध प्रदर्शन को दबाने के लिए सुरक्षा बलों ने बड़ी संख्या में प्रदर्शनकारियों पर गोलियां चलाईं। शेख हसीना की अवामी लीग सरकार ने प्रारंभ में केवल 150 मौतों की पुष्टि की थी, लेकिन रिपोर्ट में दावा किया गया है कि गैर-कानूनी हत्याएं, मनमाने ढंग से की गई गिरफ्तारियां और नजरबंदियां सैकड़ों की संख्या में हुईं, जिनकी जानकारी सरकार और सुरक्षा अधिकारियों को थी।
संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयोग ने मोहम्मद यूनुस की अंतरिम सरकार पर धार्मिक अल्पसंख्यकों के खिलाफ हिंसा को बढ़ावा देने का आरोप लगाया है। रिपोर्ट में हिंदू, अहमदिया मुसलमान और आदिवासी समुदायों पर हुए हमलों का विवरण दिया गया है। इसमें कहा गया है कि अवामी लीग के नेताओं, अल्पसंख्यकों और चटगांव पहाड़ी क्षेत्र के आदिवासियों पर हो रही हिंसा को दबाने की कोशिश की गई।
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एक रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि महिलाओं को आंदोलनों में शामिल होने से रोकने के लिए उन्हें शारीरिक हिंसा और बलात्कार की धमकियों का सामना करना पड़ा। रिपोर्ट में यह भी सामने आया है कि इन हमलों में पुलिस की भूमिका रही है। संयुक्त राष्ट्र के मानवाधिकार प्रमुख वोल्कर तुर्क ने कहा कि राजनीतिक नेतृत्व और सुरक्षा बलों ने विरोध प्रदर्शनों को कुचलने के उद्देश्य से जानबूझकर गैर-कानूनी हत्याओं और यातनाओं को अंजाम दिया।
संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट में मोहम्मद यूनुस की अंतरिम सरकार पर गंभीर सवाल उठाए गए हैं। रिपोर्ट के अनुसार, यूनुस सरकार ने अल्पसंख्यकों के खिलाफ हुई हिंसा की घटनाओं को कम महत्व देने का प्रयास किया, लेकिन रिपोर्ट ने वास्तविक स्थिति को उजागर कर दिया। इसके अलावा, रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि छात्र नेता और विद्रोह के शहीद अबू सईद की हत्या एक सोची-समझी साजिश के तहत की गई थी।