तुर्कीए के राष्ट्रपति रेचेप तैयप एर्दोगन (फोटो- सोशल मीडिया)
UNGA Controversy: अमेरिका के न्यूयॉर्क में हो रही संयुक्त राष्ट्र महासभा की बैठक में अचानक इजरायल की खुफिया एजेंसी मोसाद के नाम की चर्चा तेज हो गई। दरअसल, संयुक्त राष्ट्र महासभा में फिलिस्तीन के पक्ष में बोलने वाले नेताओं के माइक अचानक बंद हो गए। ऐसा एक-दो बार नहीं, बल्कि पाँच बार हुआ। जिसके चलते इसमें मोसाद का हाथ होने की आशंका जताई गई।
सबसे पहले, जब इंडोनेशिया के राष्ट्रपति महासभा में गाजा में शांति सेना तैनात करने की बात कर रहे थे, तब उनका माइक अचानक बंद हो गया। इसके बाद ठीक ऐसा ही तुर्किए के राष्ट्रपति रेचेप तैयप एर्दोगन के भाषण के दौरान हुआ। एर्दोगन अपने भाषण के दौरान जैसे ही हमास को आतंकी संगठन न मानने और फिलिस्तीन को एक स्वतंत्र राष्ट्र बनाने की मांग करने लगे, उनका माइक बंद हो गया। इसके बाद ट्रांसलेटर को कहना पड़ा, “इनकी आवाज़ चली गई है।”
इंडोनेशिया और तुर्किए के अलावा, जब कनाडा के प्रधानमंत्री मार्क कार्नी ने अपना भाषण देना शुरू किया, तो उन्होंने शुरुआत में ही फिलिस्तीन और दो-राष्ट्र समाधान पर बात की। पहले उनका भाषण सामान्य रूप से चल रहा था, पर जैसे ही कार्नी ने फिलिस्तीन को मान्यता देने के मुद्दे पर बात करना शुरू किया, उनका भी माइक ऑफ हो गया।
🎙❌ Reform: When They Said The UN is Losing Its Voice on Global Stage… Mic failure strikes the UNGA TWICE as leaders gave speeches during the 80th General Assembly. Equipment fails for 🇹🇷 & 🇮🇩 leaders – cutting out on Erdoğan and Prabowo Subianto. pic.twitter.com/DLkPtWrn1G — RT_India (@RT_India_news) September 23, 2025
माइक अचानक बंद होने के चलते बैठक में कुछ समय तक सन्नाटा छा गया। यही घटना दक्षिण अफ्रीका के राष्ट्रपति सिरिल रामाफोसा के साथ भी घटी। उन्होंने भी जैसे ही बैठक में फिलिस्तीन का मुद्दा उठाया, माइक अचानक बंद हो गए। इसके बाद तमाम देशों के नेता एक-दूसरे का चेहरा देखने लगे।
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ऐसे में सवाल यह उठता है कि आखिर हर बार फिलिस्तीन के समर्थन में आवाज उठाते ही माइक क्यों बंद हो जाता है? क्या यह सच में सिर्फ एक तकनीकी खामी थी, जैसा कि संयुक्त राष्ट्र दावा कर रहा है, या इसके पीछे कोई साजिश है? कई वैश्विक नेताओं का मानना है कि यह महज संयोग नहीं हो सकता।
हालांकि, अंदरखाने कई नेता इस बात से भी इनकार नहीं कर रहे कि इसमें इजरायल की खुफिया एजेंसी मोसाद का हाथ हो सकता है। और अगर मोसाद के इतिहास को देखा जाए, तो उसके लिए ऐसा करना मुश्किल नहीं नजर आता।