
पीएम नरेन्द्र मोदी, फोटो (सो. सोशल मीडिया)
Year Ender 2025: साल 2025 विश्व कूटनीति के लिहाज से भारत सरकार और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए बेहद अहम रहा। इस वर्ष भारत ने न केवल अपने पुराने मित्र देशों के साथ संबंधों को और मजबूत किया, बल्कि उन क्षेत्रों और देशों में भी प्रभावशाली उपस्थिति दर्ज कराई, जहां पहले भारत की भूमिका सीमित मानी जाती थी। यह वर्ष भारत के ‘ग्लोबल साउथ आउटरिच’ और बहुपक्षीय कूटनीति का प्रतीक बनकर उभरा।
जुलाई 2025 में प्रधानमंत्री मोदी ने घाना, Trinidad & Tobago, अर्जेंटीना, ब्राजील और नामीबिया की ऐतिहासिक पांच देशों की यात्रा की। इस दौरे को भारत की वैश्विक दक्षिण नीति का बड़ा कदम माना गया। घाना के साथ भारत ने ‘कम्प्रिहेंसिव पार्टनरशिप’ की नींव रखी, जिसमें खनिज, ऊर्जा, रक्षा, समुद्री सुरक्षा और स्वास्थ्य जैसे अहम क्षेत्र शामिल हैं। घाना की संसद को संबोधित करने के साथ ही पीएम मोदी को वहां का सर्वोच्च नागरिक सम्मान भी दिया गया।
पीएम को मिला घाना का सर्वोच्च नागरिक सम्मान
Trinidad & Tobago में भारतीय प्रवासी समुदाय से गहरा संवाद हुआ। संसद में दिए गए भाषण के जरिए सांस्कृतिक और जनस्तरीय संबंधों को नई दिशा मिली। वहीं अर्जेंटीना के साथ कृषि, ऊर्जा, खनिज और निवेश पर रणनीतिक बातचीत हुई। लिथियम ट्रायंगल देश होने के कारण अर्जेंटीना भारत के ऊर्जा संक्रमण और भविष्य की बैटरी तकनीक के लिए अहम साझेदार बना।
ब्राजील में हुए 17वें BRICS शिखर सम्मेलन में भारत ने विकासशील देशों की आवाज को मजबूती से उठाया। रक्षा, ऊर्जा, कृषि, स्वास्थ्य और तकनीक जैसे क्षेत्रों में दोनों देशों के बीच सहयोग को विस्तार मिला। नामीबिया के साथ लगभग तीन दशक बाद किसी भारतीय प्रधानमंत्री की यात्रा ने भारत-अफ्रीका संबंधों को नया आयाम दिया।
दिसंबर में पीएम मोदी जॉर्डन, इथियोपिया और ओमान की महत्वपूर्ण यात्रा कर रहे हैं। जॉर्डन दौरा भारत-जॉर्डन संबंधों के 75 वर्ष पूरे होने का प्रतीक है। वहीं, इथियोपिया की पहली यात्रा में व्यापार, कृषि, रक्षा और तकनीकी सहयोग पर जोर दिया गया। इधर ओमान के साथ 70 साल पुराने रिश्तों को ऊर्जा, निवेश और सुरक्षा सहयोग के जरिए और मजबूत करने का संभावना है।
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इसके अलावा 2025 में पीएम मोदी ने सऊदी अरब, जापान, फ्रांस और श्रीलंका का दौरा कर मध्य-पूर्व, एशिया और यूरोप में भारत की रणनीतिक मौजूदगी को और सुदृढ़ किया। इन प्रयासों से साफ हुआ कि भारत अब सिर्फ क्षेत्रीय शक्ति नहीं, बल्कि वैश्विक अर्थव्यवस्था और ऊर्जा संक्रमण में एक केंद्रीय भूमिका निभा रहा है।






