प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ब्राजील यात्रा (फोटो- सोशल मीडिया)
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पांच जुलाई को ब्राजील की ऐतिहासिक राजकीय यात्रा पर रवाना होंगे। यह यात्रा खास इसलिए है क्योंकि 57 वर्षों बाद कोई भारतीय प्रधानमंत्री ब्राजील की राजकीय यात्रा पर जा रहा है। भारत के ब्राजील में राजदूत दिनेश भाटिया ने इस यात्रा को बेहद महत्वपूर्ण बताया है और कहा कि इसके दौरान भारत और ब्राजील के बीच आतंकवाद रोधी समझौते पर हस्ताक्षर की संभावना है, जो दोनों देशों के लिए सुरक्षा सहयोग की दिशा में बड़ा कदम होगा।
भारत और ब्राजील के संबंध दशकों पुराने हैं। साल 1948 में भारत ने लैटिन अमेरिका में पहला दूतावास ब्राजील में ही खोला था। उसके बाद से द्विपक्षीय संबंध लगातार प्रगाढ़ होते गए। 2006 में दोनों देशों ने इन रिश्तों को ‘रणनीतिक साझेदारी’ में बदल दिया और अब यह सहयोग राजनीति, रक्षा, व्यापार और संस्कृति जैसे क्षेत्रों में भी फैल चुका है। यह प्रधानमंत्री मोदी की चौथी ब्राजील यात्रा होगी, लेकिन पहली बार वह एक औपचारिक राजकीय दौरे पर जा रहे हैं।
दो दिन रियो और फिर ब्रासीलिया में रहेंगे पीएम मोदी
राजदूत दिनेश भाटिया के अनुसार, पीएम मोदी पांच जुलाई को ब्राजील के रियो डी जेनेरियो पहुंचेंगे और वहां दो दिन बिताएंगे। इसके बाद वे ब्रासीलिया जाएंगे, जहां राजकीय यात्रा से संबंधित कार्यक्रम होंगे। यह दौरा केवल प्रतीकात्मक नहीं है, बल्कि इससे भारत-ब्राजील द्विपक्षीय संबंधों को नई दिशा देने की उम्मीद है।
भाटिया ने बताया कि भारत और ब्राजील के बीच सुरक्षा, ऊर्जा, जलवायु, कृषि और डिजिटल क्षेत्रों में भी सहयोग को लेकर बातचीत होगी। साथ ही व्यापार और निवेश बढ़ाने की संभावनाओं पर भी चर्चा की जाएगी। यह यात्रा दोनों देशों के बीच रणनीतिक साझेदारी को मजबूती देने का अवसर साबित हो सकती है।
ब्रिक्स सम्मेलन भी रहेगा प्रमुख एजेंडे में
इस दौरान ब्राजील ब्रिक्स (BRICS) शिखर सम्मेलन की भी मेजबानी करेगा। इस बार सम्मेलन में नए साझेदार देश भी हिस्सा लेंगे, जो इसे और व्यापक बनाएगा। वैश्विक शासन में सुधार, वित्तीय संस्थाओं में संतुलन और विकासशील देशों की आवाज़ को बढ़ाना BRICS के मूल एजेंडे में शामिल है। ब्राजील इन विषयों के साथ-साथ जलवायु परिवर्तन, खाद्य सुरक्षा और डिजिटल सहयोग को भी संयुक्त घोषणा पत्र में शामिल करने की तैयारी में है।
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भारत और ब्राजील दोनों G20 देशों के सदस्य हैं और वैश्विक दक्षिण (Global South) की आवाज़ को मजबूती देने में अहम भूमिका निभा रहे हैं। ऐसे में यह दौरा केवल द्विपक्षीय नहीं, बल्कि वैश्विक संतुलन में भारत की भूमिका को और प्रभावी बनाने की दिशा में महत्वपूर्ण साबित हो सकता है।