टीटीपी के बढ़ते हमलों के पाकिस्तानी सेना परेशान (सोर्स- सोशल मीडिया)
Pakistan Army on Khyber Pakhtunkhwa: खैबर पख्तूनख्वा में तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (TTP) के बढ़ते हमलों से पाकिस्तानी सेना की हालत खराब हो गई है। हालात इतने बिगड़ गए हैं कि सेना ने राजनीतिक दलों को फरमान जारी किया है कि वो अपने भाषणों में खैबर पख्तूनख्वा को पाकिस्तान का हिस्सा बताएं। कुछ दलों ने यह आदेश मान लिया है, लेकिन पश्तून तहफ़्फ़ुज आंदोलन (PTM) ने इसे मानने से इनकार कर दिया है।
जेल में बंद जेल में बंद नेताओं ने भारी दबाव और रिहाई के लालच के बावजूद ऐसा करने से मना कर दिया। पीटीएम नेताओं के इनकार के बाद पाकिस्तानी सेना ने सख्त कार्रवाई शुरू कर दी। कई सदस्यों के बैंक खाते जब्त कर लिए गए और उनके खिलाफ मुकदमे दर्ज किए गए।
सेना को डर है कि कहीं खैबर पख्तूनख्वा उनके हाथ से निकल न जाए, क्योंकि तालिबान लंबे समय से इस इलाके पर अपना दावा करता आ रहा है। इस समय टीटीपी इस सूबे के कई इलाकों पर कब्जा किए हुए है, जहां पाकिस्तानी सेना के लिए जाना मुश्किल हो गया है।
दरअसल, तालिबान अफगानिस्तान और पाकिस्तान के बीच की डूरंड रेखा को नहीं मानता। पाकिस्तान के कई बड़े नेता, जैसे इमरान खान, भी इस रेखा को काल्पनिक सीमा बता चुके हैं और इसे दोनों देशों के बीच की आधिकारिक सीमा नहीं मानते। खैबर पख्तूनख्वा इसी विवादित डूरंड लाइन पर स्थित है, जिसे 1893 में अफगानिस्तान के राजा अमीर अब्दुर रहमान खान और ब्रिटिश राजदूत सर मोर्टिमर डूरंड के बीच हुए समझौते से तय किया गया था
हाल ही में, अफगानिस्तान में तालिबानी सरकार के रक्षा मंत्री ने कतर में कहा कि डूरंड रेखा का भविष्य सीमा के दोनों तरफ रहने वाले लोगों को तय करना चाहिए। यह रेखा लगभग 2,640 किलोमीटर लंबी है, जो चित्राल के पास बदख्शां और वाखान से शुरू होकर बलूचिस्तान तक जाती है।
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यह रेखा अफगानिस्तान के कुनार, नूरिस्तान, नंगरहार, पक्तिया और पक्तिका को पाकिस्तान के खैबर पख्तूनख्वा और वजीरिस्तान से अलग करती है। साथ ही, यह कुर्रम, बन्नू और क्वेटा को अफगानिस्तान के जाबुल और कंधार से अलग करती है। लेकिन, दोनों तरफ के लोग इस विभाजन को आज तक पूरी तरह स्वीकार नहीं कर पाए हैं।