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बगदाद : इराक जमीन में डूब रहा है या सटीक रूप से कहें तो देश के उत्तर में आग्रोस पर्वत के आसपास का इलाका धरती में धंस रहा है, शोधकर्ताओं की एक टीम ने पाया है कि धरती की सतह के नीचे डूबता हुआ समुद्री स्लैब इराक के उत्तरी क्षेत्र को अपने साथ नीचे खींच रहा है। यहां किसी सिंकहोल की बात नाहीं हो रही, जहां आप अपनी आंखों के सामने पहाड़ियों, पेड़ों और जमीन के पूरे हिस्से को गायब होते हुए देख सकते हैं।
मैसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (एमआईटी) में वर्तमान में कार्यरत भूविज्ञानी रेनास कोशनाव के मुताबिक इस मामले में भूवैज्ञानिक प्रक्रियाएं बहुत धीमी हैं, जो मानव समय के पैमाने से परे हैं। कोशनाय के मुताबिक, ‘इन प्रक्रियाओं का प्रभाव तुरंत महसूस नहीं किया जा सकता है। हम लाखों वर्षों की बात कर रहे हैं। यह टेक्टोनिक्स प्लेट के खिसकने से हो रहा है। अरब और यूरेशियन महाद्वीपीय प्लेटों के साथ एक क्षेत्र दरार बन रही है, जिसे नियोटेथिस महासागरीय स्लैब के रूप में जाना जाता है। यह स्लैब 66 मिलियन साल से अधिक पहले एक प्राचीन महासागर का तल हुआ करती थी।
अब यह स्लैब दक्षिण-पूर्व तुर्की से उत्तर-पश्चिम ईरान की ओर बंट रही है। भूविज्ञान की भाषा में कहें तो अब स्लैब पृथ्वी के मेंटल में डूब रही है। कोशनाव ने कहा, ‘यह प्रक्रिया जटिल है और इसमें लाखों साल लगते हैं।’ जाग्रोस जैसी आज की पर्वत श्रृंखलाएं इन टेक्टोनिक टकरावों का परिणाम हैं। गहरी पृथ्वी इमेजिंग समर्थित रॉक रिकॉर्ड और तलछट को देखकर शोधकर्ताओं ने पाया कि नियोटेथिस स्लैब डूब रही है और इराक के जाग्रोस क्षेत्र को अपने साथ ले जा रही है।
इन निष्कों के कई व्यावहारिक निहितार्थ हैं क्योंकि वे उन मैकेनिज्म को प्रकट सामने लाते हैं जिनके द्वारा हमारा यह संचालित होता है। इस अध्ययन ने इस बात पर प्रकाश डाला कि हमारा यह कितना गतिशील है और इसका आंतरिक और बाहरी भाग कितना जुड़ा हुआ है। इसके परिणामों का उपयोग अधिक सटीक भूवैज्ञानिक मॉडल बनाने के लिए किया जा सकता है, जो पृथ्वी की सतह के नीचे गहरी गतिविधि को दर्शाते हैं। ये मॉडल भूकंप की भविष्यवाणी में मदद कर सकते हैं।
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कोशनाव ने कहा, ‘भूकंप चट्टानों की परतों के फ्रैक्चर या उनके खिसकने के साथ हुए स्थान परिवर्तन से उत्पन्न होते हैं। यह प्रक्रिया किसी भी गहराई या पैमाने पर हो सकती है। यह समझाने के लिए कि कहां, किस गहराई पर और किस पैमाने पर दोष हो सकता है वैज्ञानिकों को बड़े पैमाने पर भूवैज्ञानिक विन्यास और चट्टान की ज्यामिति को समझने की आवश्यकता है।’