आयनी एयरबेस, (कॉन्सेप्ट फोटो)
India Tajikistan Military Base: भारत ने मध्य एशिया में अपनी सैन्य उपस्थिति का एक महत्वपूर्ण अध्याय समाप्त कर दिया है। लगभग 25 वर्षों तक ताजिकिस्तान में सक्रिय रहने के बाद भारतीय वायुसेना ने आयनी एयरबेस (Ayni Airbase) से अपनी तैनाती पूरी तरह समाप्त कर दी है। यह भारत का पहला और एकमात्र विदेशी एयरबेस था।
हालांकि यह प्रक्रिया वर्ष 2022 में पूरी हो गई थी लेकिन अब इसकी आधिकारिक जानकारी सार्वजनिक की गई है जिसकी पुष्टि विदेश मंत्रालय ने भी की है। इस आदेश के बाद भारतीय वायुसेना और सेना के अधिकारी तथा सैन्य उपकरण पूरी तरह वहां से हटा लिए गए।
आयनी एयरबेस जिसे गिस्सार मिलिट्री एयरोड्रोम ( GMA) के नाम से भी जाना जाता है, ताजिकिस्तान की राजधानी दुशांबे से करीब 10 किलोमीटर पश्चिम में स्थित है। यह बेस सोवियत काल में बनाया गया था, लेकिन सोवियत संघ के विघटन के बाद यह जर्जर हो गया। 2001 में अफगानिस्तान में तालिबान की बढ़त के दौरान भारत ने इस बेस को अपग्रेड करने और संयुक्त रूप से संचालित करने का प्रस्ताव दिया था। तत्कालीन रक्षा मंत्री जॉर्ज फर्नांडीस, NSA अजीत डोभाल और पूर्व एयर चीफ मार्शल बी.एस. धनोआ ने इसके विकास में प्रमुख भूमिका निभाई थी।
रिपोर्ट्स के मुताबिक, भारत ने आयनी एयरबेस को आधुनिक बनाने पर करीब 100 मिलियन अमेरिकी डॉलर (लगभग ₹830 करोड़) खर्च किए। बॉर्डर रोड्स ऑर्गनाइजेशन (BRO) और अन्य भारतीय इंजीनियरिंग एजेंसियों ने यहां 3,200 मीटर लंबा रनवे, हैंगर, ईंधन भंडारण और मरम्मत सुविधाएं तैयार कीं। यहां कई मौकों पर SU-30 MKI लड़ाकू विमान और हेलिकॉप्टर भी तैनात किए गए थे। करीब 200 भारतीय सैनिक और तकनीकी विशेषज्ञ लंबे समय तक वहां मौजूद रहे।
2021 में जब तालिबान ने अफगानिस्तान पर कब्जा किया तो भारत ने इसी एयरबेस का इस्तेमाल अपने नागरिकों और राजनयिकों की निकासी के लिए किया था। हालांकि, 2022 में जब समझौते की लीज अवधि खत्म हुई तो ताजिकिस्तान ने इसे आगे न बढ़ाने का फैसला किया। सूत्रों का कहना है कि इस निर्णय के पीछे रूस और चीन का दबाव था। दोनों देशों ने ताजिकिस्तान से ‘गैर-क्षेत्रीय सैन्य उपस्थिति’ घटाने का आग्रह किया था। अब रिपोर्ट्स के अनुसार, रूसी सेनाओं ने इस बेस का नियंत्रण अपने हाथ में ले लिया है।
आयनी एयरबेस भारत की सुरक्षा नीति के लिए अत्यंत रणनीतिक महत्व रखता था। यह अफगानिस्तान की वखान कॉरिडोर से महज 20 किलोमीटर और पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर (PoK) के करीब स्थित है। यहां से भारत पेशावर और पश्चिमी पाकिस्तान के इलाकों तक निगरानी रख सकता था। युद्ध की स्थिति में यह ठिकाना पाकिस्तान पर दो मोर्चों का दबाव बना सकता था।
यह भी पढ़ें:- मेक्सिको से आ रही फ्लाइट की फ्लोरिडा में इमरजेंसी लैंडिंग, कई यात्री घायल; मचा हड़कंप
इसके अलावा, आयनी एयरबेस भारत की सेंट्रल एशिया में बढ़ती रणनीतिक पकड़ का प्रतीक था जहां रूस और चीन पहले से ही प्रभावशाली हैं। लेकिन 2021 में तालिबान के अफगानिस्तान पर कब्जे के बाद इस बेस की उपयोगिता घट गई। भारत की अफगान नीति नॉर्दर्न एलायंस के सहयोग पर आधारित थी इसलिए तालिबान की सत्ता वापसी के साथ समाप्त हो गई। विशेषज्ञों के अनुसार, भारत का ताजिकिस्तान से पीछे हटना किसी रणनीतिक कमजोरी का संकेत नहीं है, बल्कि दिशा में बदलाव का प्रतीक है। अब भारत का फोकस चाबहार से लेकर कजाकस्तान तक अपने प्रभाव को सैन्य ठिकानों के बजाय कनेक्टिविटी और क्षेत्रीय साझेदारी के माध्यम से मजबूत करने पर हो सकता है।