बांग्लादेश-पाकिस्तान और तुर्की, फोटो (सो. सोशल मीडिया)
Pakistan Bangladesh Relations: शेख हसीना की सरकार के पतन के बाद बांग्लादेश लगातार अराजकता और अस्थिरता से जूझ रहा है। इस उथल-पुथल के माहौल में अंतरिम सरकार के मुखिया मुहम्मद यूनुस तुर्किए के साथ रिश्ते मजबूत करने की कोशिश में हैं। बताया जा रहा है कि पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई और पाकिस्तानी दबाव के तहत तुर्किए दक्षिण एशियाई मुस्लिम समुदाय को साधने के लिए बांग्लादेश को अपने पाले में लाना चाहता है।
इसी रणनीति के तहत जमात-ए-इस्लामी, आईएसआई के इशारे पर, यूनुस सरकार को तुर्किए के और करीब जाने के लिए प्रेरित कर रही है। दरअसल, तुर्किए और बांग्लादेश की नजदीकियों के पीछे आईएसआई का असली मकसद छिपा है। आईएसआई चाहती है कि तुर्किए के जरिए बांग्लादेश तक धन, हथियार और गोला-बारूद की आपूर्ति आसानी से हो सके।
भारतीय एजेंसियों का कहना है कि बांग्लादेश अब तुर्की से हथियार खरीदने वालों में चौथे स्थान पर आ गया है। उन्हें आशंका है कि तुर्की से मिलने वाले ये हथियार भारत के खिलाफ उपयोग किए जा सकते हैं जिसे गंभीर चिंता माना जा रहा है। एजेंसियों के अनुसार आईएसआई का मकसद बांग्लादेश और तुर्की के बीच नजदीकी बढ़ाना ही हो सकता है। हालांकि भारत के पास ऐसे किसी हमले को नाकाम करने की ताकत मौजूद है, मगर इससे सशस्त्र बलों को एक अनचाही समस्या का सामना करना पड़ सकता है।
गौरतलब है कि शेख हसीना के कार्यकाल में भारत और बांग्लादेश के रिश्ते काफी मजबूत बने रहे। उस दौरान सीमा अपेक्षाकृत सुरक्षित थी और दोनों देशों की सेनाएं बिना किसी बड़ी अड़चन के काम कर रही थीं। लेकिन तख्तापलट के बाद जब मोहम्मद यूनुस की सरकार सत्ता में आई, तो दोनों देशों के बीच रिश्तों में खटास आनी शुरू हो गई। यूनुस सरकार इस दूरी का कारण शेख हसीना को भारत में शरण दिए जाने को बता रही है।
इसी बीच, आईएसआई बांग्लादेश में अपना असर बढ़ा रही है ताकि यूनुस सरकार पर नियंत्रण बना सके। भारतीय खुफिया एजेंसियां इस गतिविधि को लेकर सतर्क हैं, मगर तुर्किये के साथ बांग्लादेश की बढ़ती नजदीकी ने नई चिंता खड़ी कर दी है। तुर्किये लंबे समय से पाकिस्तान का करीबी रहा है और रोहिंग्या शरणार्थियों के मुद्दे पर भी उसने बांग्लादेश का समर्थन किया है।
हाल ही में, तुर्किये रक्षा उद्योग एजेंसी के प्रमुख हलुक गोरगुन के नेतृत्व में एक प्रतिनिधिमंडल ने यूनुस और बांग्लादेशी सैन्य अधिकारियों से मुलाकात की। इस दौरान रक्षा सहयोग और हथियारों की खरीद पर चर्चा हुई, जिसमें बेराकटार टीबी-2 ड्रोन, टीआरजी-300 रॉकेट सिस्टम, तोपखाने के गोले, राइफलें और मशीन गन शामिल थीं। इसके साथ ही तुर्किये ने नारायणगंज और चटगांव में रक्षा परिसर स्थापित करने का वादा भी किया।
यह भी पढ़े:- इंडोनेशिया में भयानक हादसा, नमाज पढ़ने के दौरान इस्लामिक स्कूल की इमारत ढही; मलबे में फंसे 65 छात्र
इन घटनाओं से बांग्लादेश में आतंकी संगठनों का हौसला बढ़ा है। पाकिस्तान द्वारा पहलगाम हमले के बावजूद तुर्किये ने हमेशा इस्लामाबाद का साथ दिया। यहां तक कि जब भारत ने उस हमले के जवाब में “ऑपरेशन सिंदूर” चलाया, तब भी तुर्किये खुलकर पाकिस्तान के समर्थन में खड़ा रहा।
खुफिया एजेंसियों के अधिकारियों का मानना है कि बांग्लादेश, तुर्किए और पाकिस्तान का बन रहा यह नया गठबंधन भारत के लिए खतरे का संकेत है। इन रक्षा समझौतों को केवल सामान्य सहयोग नहीं, बल्कि बड़े रणनीतिक संदर्भ में देखा जाना चाहिए, क्योंकि इनके गलत हाथों में जाने की पूरी आशंका है। बांग्लादेशी सेना भली-भांति जानती है कि भारतीय सशस्त्र बलों से सीधी टक्कर लेना उसके बस की बात नहीं है, लेकिन असली समस्या यह है कि फैसले पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई लेती है। जमात के सहारे आईएसआई कट्टरपंथी संगठनों को भारत पर हमले के लिए उकसाती है। उनका मानना है कि यदि भारत ऐसे किसी हमले का जवाब देगा, तो तुर्किए पाकिस्तान के पक्ष में खड़ा होगा।