स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद, फोटो- सोशल मीडिया
Rambhadracharya vs Premanand Maharaj: ज्योतिष पीठ के शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने इस पूरे विवाद पर कड़ी आपत्ति जताते हुए रामभद्राचार्य को आड़े हाथों लिया है। उन्होंने कहा कि प्रेमानंद महाराज दिन-रात भगवान का नाम लेते हैं, और वह नाम संस्कृत का ही है। ऐसे में यह कहना कि उन्हें संस्कृत नहीं आती, सरासर गलत और अपमानजनक है।
स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ने अपनी बात रखते हुए कहा, “वो एक पीले वस्त्रधारी महात्मा हैं, वृंदावन के प्रेमानंद जी। लोग कह रहे हैं कि उन्हें एक अक्षर भी संस्कृत नहीं आती। लेकिन उन्हें संस्कृत जानने की ज़रूरत ही क्या है? वो तो दिन भर भगवान के नाम का प्रचार कर रहे हैं।”
उन्होंने आगे कहा, “भगवान के नाम राधे-राधे, कृष्ण-कृष्ण, गोविंद, गोपाल क्या ये शब्द संस्कृत के नहीं हैं? क्या ये संबोधन संस्कृत की विभक्ति से नहीं बने हैं? जब कोई व्यक्ति दिन भर ‘हे गोविंद, हे गोपाल’ कह रहा है, तो वह असल में संस्कृत ही तो बोल रहा है। अगर आपको ये दिखाई नहीं देता, तो क्या सुनाई भी नहीं देता?”
स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ने रामभद्राचार्य के दावे पर भी सवाल उठाते हुए कहा कि भाषा ज्ञान के नाम पर भक्ति का अपमान नहीं किया जा सकता। “जिसे लोग भगवान का दूत मानते हैं, वह संत समाज के लिए प्रेरणा है। ऐसे में किसी की श्रद्धा और सेवा को भाषा के तराजू में तौलना अनुचित है,” उन्होंने जोड़ा।
दरअसल, विवाद की शुरुआत तब हुई जब जगद्गुरु रामभद्राचार्य ने एक पॉडकास्ट में प्रेमानंद महाराज की विद्वता पर सवाल उठाते हुए कहा, “मैं चैलेंज करता हूं कि प्रेमानंद संस्कृत का एक भी अक्षर बोलकर दिखा दें, या मेरे श्लोकों का अर्थ समझा दें, तो मैं उन्हें चमत्कारी मान लूंगा।” इस टिप्पणी के सामने आने के बाद संत समाज में नाराजगी फैल गई। कई संतों ने रामभद्राचार्य के इस बयान को प्रेमानंद महाराज के प्रति अनादर बताया। सोशल मीडिया पर भी इस पर बहस तेज हो गई।
विवाद बढ़ने के बाद रामभद्राचार्य ने सफाई देते हुए कहा कि उन्होंने प्रेमानंद जी के प्रति कोई अपमानजनक शब्द नहीं कहे हैं। उन्होंने कहा, “प्रेमानंद जी मेरे पुत्र समान हैं। जब भी वे मुझसे मिलने आएंगे मैं उन्हें गले लगाऊंगा।” उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि उनकी टिप्पणी किसी प्रकार के व्यक्तिगत आक्षेप के रूप में नहीं थी।
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इस पूरे मामले ने संत समाज में एक नई बहस को जन्म दिया है- क्या भक्ति को भाषा ज्ञान से मापा जा सकता है? प्रेमानंद महाराज जैसे संत, जो लाखों लोगों को भगवान नाम की साधना की प्रेरणा दे रहे हैं, उनके ऊपर ऐसे प्रश्न उठाना कई लोगों को अस्वीकार्य लग रहा है। अब देखना होगा कि आने वाले समय में यह विवाद और किस दिशा में बढ़ता है।