AI और Terrorism का हो रहा है संगम। (सौ. Freepik)
US Intelligence Warning: आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस जहां दुनिया को तेज़ी से तकनीकी प्रगति की ओर ले जा रहा है, वहीं इसका दुरुपयोग अब अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा के लिए गंभीर चुनौती बनता जा रहा है। अमेरिकी खुफिया एजेंसियों ने चेतावनी दी है कि आतंकवादी संगठन भी AI की ताकत को समझने और उसका इस्तेमाल करने लगे हैं। भले ही इन संगठनों को तकनीक की गहराई की पूरी समझ न हो, लेकिन इसके जरिए वे अपने नापाक इरादों को नई रफ्तार दे रहे हैं।
यूएस न्यूज की रिपोर्ट के मुताबिक अमेरिकी राष्ट्रीय सुरक्षा विशेषज्ञों और खुफिया एजेंसियों का कहना है कि AI अब आतंकवादी संगठनों के लिए एक प्रभावी हथियार बन चुका है। इसकी मदद से ये संगठन नए लोगों की भर्ती, डीपफेक इमेज और वीडियो का प्रसार और साइबर हमलों को अंजाम दे रहे हैं। रिपोर्ट में बताया गया है कि इस्लामिक स्टेट ऑफ इराक एंड सीरिया (ISIS) जैसे संगठन AI टूल्स का सक्रिय रूप से इस्तेमाल कर रहे हैं।
जानकारों के अनुसार, कभी इराक और सीरिया के बड़े हिस्से पर कब्जा जमाने वाला ISIS अब बिखरे हुए नेटवर्क की तरह काम कर रहा है। उसने समय रहते यह समझ लिया था कि इंटरनेट और सोशल मीडिया प्रोपेगेंडा फैलाने और भर्ती का सबसे ताकतवर माध्यम हैं। इसी रणनीति को आगे बढ़ाते हुए अब संगठन AI जैसी उभरती तकनीकों का सहारा ले रहा है।
आज AI के इस्तेमाल के लिए भारी संसाधनों की जरूरत नहीं रह गई है। ऐसे में सीमित साधनों वाले छोटे आतंकी समूह या यहां तक कि अकेला व्यक्ति भी इंटरनेट के जरिए बड़े पैमाने पर प्रोपेगेंडा फैला सकता है। इससे उनकी पहुंच और प्रभाव कई गुना बढ़ जाता है।
साइबर सिक्योरिटी एक्सपर्ट जान लालिबर्टे के अनुसार AI ने विरोधी ताकतों के लिए काम करना बेहद आसान बना दिया है। कम खर्च और कम लोगों के साथ ये समूह लोगों के विचारों को प्रभावित कर सकते हैं। इजरायल-हमास युद्ध के दौरान डीपफेक इमेज और वीडियो के जरिए गुस्सा, भय और ध्रुवीकरण को बढ़ावा दिया गया। AI से तैयार की गई सामग्री में युद्ध की भयावहता को बढ़ा-चढ़ाकर दिखाया गया, जिससे नफरत फैलाने और नई भर्ती में मदद मिली।
AI से बने वीडियो न केवल भर्ती में बल्कि दुश्मनों को डराने में भी कारगर साबित हुए। दो साल पहले इजरायल-हमास युद्ध से जुड़ी ऐसी तस्वीरें और वीडियो शेयर किए गए, जिनमें बमबारी से ध्वस्त इमारतें और खून से लथपथ, बेघर बच्चे दिखाए गए। इन दृश्यों ने आक्रोश और ध्रुवीकरण को तेज़ किया, जिसका इस्तेमाल पश्चिम एशिया में हिंसक संगठनों ने भर्ती के लिए किया।
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पिछले साल रूस में हुए एक आतंकी हमले के बाद भी AI से बने वीडियो के जरिए प्रचार किया गया, जिनमें नए लोगों को संगठन से जुड़ने का संदेश था। साइट इंटेलिजेंस ग्रुप के रिसर्चर्स के मुताबिक ISIS ने AI की मदद से धार्मिक भाषणों की नकली ऑडियो तैयार की और संदेशों का कई भाषाओं में अनुवाद किया। पूर्व CIA एजेंट मार्कस फाउलर का मानना है कि यह खतरा छोटा नहीं है। जैसे-जैसे AI सस्ता और अधिक शक्तिशाली होगा, आतंकवादी गतिविधियों से जुड़े जोखिम भी बढ़ते जाएंगे।