कैरोली टकास (फोटो- सोशल मीडिया)
आज हम आपके सामने कैरोली टकास की ऐसी कहानी आपके सामने ला रहे हैं, जिसे पढ़कर यकीनन आपके अंदर जिंदगी के सबसे बुरे दौर में भी कुछ कर गुजरने का हौसल बढ़ेगा। करोली टकास दुनिया की नजर में उस वक्त आए, जब उन्होंने साल 1948 और 1952 के समर ओलिंपिक्स में सोना जीतकर इतिहास रच दिया। उनका ये गोल्ड मेडल अन्य खिलाड़ियों की तुलना में कुछ अलग था। ऐसा क्यों है आइए इस बारे में चर्चा कर लेते हैं।
ओलंपिक में गोल्ड मेडल तो कई खिलाड़ी जीतते हैं, लेकिन कैरोली टकास का गोल्ड मेडल कुछ खास क्यों था? इसका कारण ये है कि इस महान एथलीट ने अपना दायां हाथ गवांकर भी हार नहीं मानी और बाएं हाथ से पिल्टल शूटिंग का अभ्यास कर इस खेल में महारथ हासिल की। जिसके बाद दो बार ओलंपिक में गोल्ड मेडल जीतकर इतिहास रच दिया।
कैरोली टकास का जन्म 21 जनवरी 1910 को बुडापेस्ट में हुआ था। ये हंगरी देश की राजधानी है। वो हंगरी की सेना में कार्यरत थे। जिसके बाद महज 26 साल की उम्र में दुनिया उन्हें बेहतरीन शूटर के रूप में जानने लगी थी। इस वक्त तक उन्होंने देश और विदेश के कई मुकाबले में जीत दर्ज कर ली थी। यही कारण था कि कैरोली साल 1936 के ओलपिंक्स में अपने देश के लिए गोल्ड मेडल जीतने का सपना देखने लगे।
उन्होंने 1936 ओपंपिक के लिए शूटिंग में दिनरात मेहनत की। लेकिन कैरोली को इस आयोजन में हिस्सा लेने से मना कर दिया गया। इसके पीछे का कारण उनका सर्जन होना था। इसमें केवनल कमिशन्ड ऑफिसर ही हिस्सा ले सकते थे। इस हिसाब से उनकी जिन्दगी के सबसे बड़े सपने में ये पहला रोड़ा था। इस बात को जानकर उन्होंने 1936 ओलंपिक से अपना नाम वापस ले लिया।
1936 के ओलपिंक से नाम हटने के बाद कैरोली टकास इससे अगले 1940 ओलपिंक्स में अपने देश के लिए गोल्ड मेडल जीतने का सपना देखने लगे। वहीं, हंगरी के लोगों को भी भरोसा हो गया था कि उनका लाल देश के लिए गोल्ड मेडल जरूर जीतेगा। देशवासियों व खुद के इसी सपने को लेकर कैरोली फिर से नई उम्मीद के साथ जीने लगे, लेकिन अचानक ही हुए एक हादसे ने उनके शरीर का ढाचा बदल कर रख दिया।
कैरोली के साथ आर्मी कैंप में एख दुखद घटना हो गई। यहां पर शूटिंग का अभ्यास करने के दौरान उनके शूटिंग वाले दाहिने हाथ में ग्रेनेड ब्लास्ट होने के कारण उनका ये हाथ शरीर से अलग हो गया। इस घटना के बाद पूरे हंगरीवासी परेशान हो गए। उनके साथ-साथ देशवाशियों का सपना मिट्टी में मिल गया, लेकिन ऐसे कठिन वक्त में भी हंगरी के हीरो ने हार नहीं मानी।
आर्मी कैंप ने घटी इस दुखद घटना के कुछ ही महीनों के बाद कैरोली ने ठाना कि अब वो बांए हाथ से शूटिंग का अभ्यास करेंगे, जिससे उनके देशवासियों के द्वारा देखा गया सपना पूरा हो सके। उन्होंने दिनरात एक कर बाएं हाथ से शूटिंग की प्रैक्टिस करना शुरु कर दिया। फिर एक दिन ऐसा आया जब उनका लेफ्ट हेंड शूटिंग में निपुण हो गया। जिसके बाद साल 1939 में उन्होंने राष्ट्रिय चैंपियनशिप में भाग लिया। यहां पर कैरोली ने कई खिलाड़ियों को हराकर मुकाबले में जीत दर्ज कर ली।
1939 की इस जीत से फिर कैरोली हंगरी के लोगों के बीच एक हीरो बनकर सामने आ गए। अब सभी को साल 1940 ओलपिंक्स का इंतजार था, लेकिन इस साल होने वाला ओलंपिक वर्ल्ड वाप (विश्व युद्ध) की वजह से रद्द हो गया। ऐसे में तीसरी बार कैरोली का गोल्ड मेडल वाला सपना चकनाचूर हो गया था, लेकिन वो कहां रुकने वाले थे।
1940 के बाद कैरोली ने 1944 में होने वाले ओलंपिक में भाग लेने का मन बना लिया। लेकिन भगवान ने एक बार फिर से इस महान एथलीट की परिक्षा ली। 1944 का ओलंपिक दूसरे विश्वयुद्द के कारण रद्द हो गया। अब उनके देशवासियों को लग रहा था कि कैरोली वक्त के साथ बूढे भी हो रहे हैं। ऐसे में उब वो गोल्ड मेडल नहीं जीत पाएंगे। लेकिन कैरोली फिर भी हार मानने वाले कहां थे।
आखिरकार कई सालों के लंबे इंतजार के बाद 1948 के ओलंपिक में कैरोली टकास को इस आयोजन में भाग लेने का मौका मिला फिर वो ही हुआ जिसका उन्होंने सालों से सपना देखा था। 1948 के ओलंपिक में कैरोली ने देशवासियों का सपना पूरा करते हुए गोल्ड मेडल अपने नाम किया। वो यहीं पर नहीं रुके। इसके अगले ओलंपिक में उन्होंने सोना जीता। साल 1952 में दूसरी बार कैरोली ने कभी हा न मानने वाली सोच के साथ ओलंपिक में दूसरा गोल्ड मेडल देश के नाम किया।