दिल्ली CM का शीशमहल (डिजाइन फोटो)
नवभारत डेस्क: भाजपा ने चुनाव प्रचार के इस उत्तरार्द्ध में दिल्ली के सीएम हाउस का, जिसे वह इन दिनों शीशमहल कह रही है। फिर से एक नया वीडियो जारी किया है, इस उम्मीद से कि मतदान के पहले इन अंतिम घड़यों में यह वीडियो दिल्ली के मिडिल क्लास मतदाताओं को झकझोर देगा और वे भाजपा को भारी तादाद में मत देकर जीता देंगे, मगर क्या सचमुच ऐसा होगा? वीडियो को कमेंट्री के जरिये सनसनीखेज बनाया गया है।
शीशमहल में 4 से 5.6 करोड़ के तो महज बॉडी सेंसरयुक्त 80 पर्दें ही लगाये गए हैं। ये पर्दे रिमोट वाले हैं और इनके नजदीक जाते ही ये स्वतः एक तरफ होकर आने वाले को रास्ता देते हैं। यही नहीं वीडियों में सीएम हाउस उर्फ शीशमहल के भीतर 64 लाख रुपये के 16 टीवी सेट, 10 से 12 लाख रूपये की टॉयलेट शीट, 36 लाख रुपये के सजावटी खंभे आदि भी लगाये गए हैं।
अगर भारतीय मतदाताओं के लिए भ्रष्टाचार उतना ही संवेदनशील मुद्दा होता तो क्या लोकसभा चुनावो के दौरान इलेक्टोरल बांड का मुद्दा उन्हें परेशान न करता? शीशमहल वीडियो तो 34-35 करोड़ से लेकर 60 करोड़ तक की फिजूलखर्ची का ही मुद्दा है, जबकि 17वीं लोकसभा चुनाव के दौरान सत्तारूढ़ भाजपा पर लगा इलेक्टोरल बांड का 8 हजार करोड़ रूपये से ज्यादा के भ्रष्टाचार का मुद्दा था।
विपक्ष ने खुलेआम भाजपा को मिले इलेक्टोरल बांड को फिरौती करार दिया था। इसके बावजूद अगर कहा जाए कि भाजपा की लोकसभा चुनाव में जो सीटें अनुमान से कम आयी थीं, उसका कारण यह इलेक्टोरल बांड का भ्रष्टाचार था, तो इस बात को कोई नहीं मानेगा। भारत में मध्य और उच्च मध्यवर्ग के लिए भ्रष्टाचार का मुदद्दा अब कोई मुद्दा ही नहीं है, जो उन्हें झकझोर सके। हर भारतीय ने अब इस बात को बहुत सहजता से स्वीकार कर लिया है कि भ्रष्टाचार हमारी जिंदगी का अभिन्न हिस्सा है।
दिल्ली में करीब 37 फीसदी मतदाता मध्य या उच्च मध्यवर्ग से नाता रखते हैं। भाजपा इन्हें अपना पक्का मतदाता मान रही है, क्योंकि आम आदमी पार्टी पर गरीब समर्थक होने का ठप्पा लगा है। भाजपा को लगता है कि दिल्ली का मिडिल क्लास मतदाता आप से चिढ़ा हुआ है, क्योंकि उसे लगता है कि उसके टैक्स से आम आदमी पार्टी गरीबों का वोट खरीद रही है।
निकाले गए अपने इसी निष्कर्ष के कारण विधानसभा चुनाव के इस आखिरी चरण में पूर्व मुख्यमंत्री केजरीवाल को महाभ्रष्ट साबित करने में तुली है। लेकिन साफ पता चलता है कि दिल्ली के मध्य या उच्च मध्यवर्ग के मतदाताओं को पूर्व मुख्यमंत्री के भ्रष्टाचार की कहानी प्रभावित नहीं कर रही।
केजरीवाल ने मुख्यमंत्री आवास पर कितना ही पैसा खर्च करके उसे अभिजात्य महल बना दिया हो, लेकिन कहीं न कहीं इसमें यह सच्चाई तो है ही कि मुख्यमंत्री आवास केजरीवाल की निजी प्रॉपर्टी नहीं है, आज नहीं तो कल उन्हें किसी और के लिए इसे छोड़ना ही पड़ेगा, क्या तब भी यह लोगों को केजरीवाल के निजी भ्रष्टाचार की तरह महसूस होगा?
राजनीति भ्रष्टाचार रहित होगी, इसकी तो आम मतदाता अब कल्पना ही नहीं कर पाते। क्योंकि रोजमर्रा की जिंदगी में कदम कदम पर मतदाताओं को इस सच्चाई से दोचार होना पड़ता है। मतदाता अब मानकर चलते हैं कि हर पार्टी भ्रष्ट है, हर राजनेता भ्रष्ट है, अब तो सारी समझदारी कम भ्रष्ट या कम बुरा विकल्प चुनने की तरफ बढ़ गई है।
पिछले कुछ वर्षों से सत्तारूढ़ पार्टियों को एंटी इनकम्बेंसी जैसी स्थिति भी प्रभावित नहीं करती भ्रष्टाचार की तो बात ही क्या की जाए। मतदाताओं की मनःस्थिति यहां तक पहुंचने के लिए इस वजह से बाध्य हुई है क्योंकि अपवाद के तौर पर भी कोई ऐसी पार्टी नहीं बची, जिस पर प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष भ्रष्टाचार के आरोप न लगे हों।
माना कि भाजपा के नेता कुछ दूसरे नेताओं की तरह रंगे हाथ नहीं पकड़े गए, लेकिन भ्रष्टाचार भाजपा के शासनकाल में भी घटने की बजाय बढ़ा ही है, इसे तो भाजपा के समर्थक भी मानते हैं। यही वजह है कि आज भ्रष्टाचार को लेकर कोई भी राजनीतिक पार्टी मतदाताओं को आकर्षित नहीं करती। मतदाता अब इस बात को भलीभांति जान गए हैं कि भ्रष्टाचार को लेकर भाषण देना या चुनावी नैरेटिव गढ़ना तो सिर्फ पाखंड है।
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सच्चाई यह है कि चाहे केंद्र में सत्तारूढ़ पार्टी हो या राज्यों में सत्तारूढ़ पार्टियां, सब पर कोई न कोई भ्रष्टाचार का आरोप लगा है। अगर 2012-13 में कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए पर जबर्दस्त भ्रष्टाचार के आरोप लगे थे, तो पिछले आम चुनाव में भाजपा पर इलेक्टोरल बांड के जरिये कई गुना ज्यादा भ्रष्टाचार करने का आरोप लगा था। क्षेत्रीय पार्टियों के ऊपर भी भ्रष्टाचार का यह मुद्दा उतने ही जोर से लगा हुआ है।
लेख- वीना गौतम द्वारा