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संपादकीय: माशेलकर रिपोर्ट की थी मंजूर, हिंदी अनिवार्यता का फैसला उद्धव का था

उद्धव द्वारा स्वीकार की गई रिपोर्ट को यदि फड़णवीस सरकार लागू करना चाहे तो उसमें गलत क्या है ?जहां उद्धव ने हिंदी अनिवार्य करने का निर्णय लिया था वहीं फड़णवीस सरकार ने हिंदी को अनिवार्य किया गया है।

  • By दीपिका पाल
Updated On: Jun 30, 2025 | 12:46 PM

उद्ध्व ठाकरे (सौ.डिजाइन फोटो)

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नवभारत डिजिटल डेस्क: राष्ट्रीय शिक्षा नीति- 2020 के संबंध में व्यापक विस्तार करने के लिए रघुनाथ माशेलकर की अध्यक्षता में एक्शन कमेटी स्थापित की गई थी जिसने अपनी रिपोर्ट 2022 में तत्कालीन मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे के नेतृत्ववाली महाराष्ट्र विकास आघाड़ी सरकार को दी थी। इसे उद्धव की अध्यक्षता में हुई मंत्रिमंडल की बैठक में स्वीकार किया गया था। माशेलकर समिति की रिपोर्ट के 8.1 परिच्छेद में त्रिभाषा सूत्र की अनिवार्यता का उल्लेख किया गया है इसमें सिफारिश की गई है कि पहली से 12वीं तक मराठी, अंग्रेजी और हिंदी तीन भाषाएं अनिवार्य होनी चाहिए।

जब यह सिफारिश सरकार को मंजूर थी तो इसका अर्थ है कि सरकार उसे लागू करने को तैयार थी। यदि उद्धव के मन में मराठी प्रेम था तो उन्हें माशेलकर रिपोर्ट तत्काल ठुकरा देनी चाहिए थी। एक बार गलती करने और फिर उसी निर्णय के विरोध में मोर्चा निकालने की तैयारी दर्शाना कितना बड़ा विरोधाभास है। दूसरी ओर उद्धव ठाकरे के पुत्र आदित्य ने महापालिका की मराठी शालाओं में अंग्रेजी अनिवार्य करने की मांग की थी। इसका अर्थ यही हुआ कि अंग्रेजी से परहेज नहीं लेकिन हिंदी के प्रति विरोध है।

यह कैसी दोहरी भूमिका है ? उद्धव द्वारा स्वीकार की गई रिपोर्ट को यदि फड़णवीस सरकार लागू करना चाहे तो उसमें गलत क्या है ? खास बात तो यह है कि जहां उद्धव ने हिंदी अनिवार्य करने का निर्णय लिया था वहीं फड़णवीस सरकार ने हिंदी को अनिवार्य न करते हुए ऐच्छिक करने का निर्णय लिया है। उनके निर्णय में स्पष्ट रूप से मराठी अनिवार्य है तथा तीसरी भाषा ऐच्छिक रखी गई है। ऐसा होने पर मोर्चे निकालने की बात क्यों की जानी चाहिए? हिंदी अनिवार्यता के खिलाफ मोर्चे के निमित्त से ठाकरे बंधु एक साथ आ रहे हैं वरना राज ठाकरे और उद्धव ठाकरे के बच्चे जिस स्कूल में पढ़े हैं वह बॉम्बे क्वारिश स्कूल उनके निवास के निकट है। वहां मराठी तीसरी भाषा के रूप में पढ़ाई जाती है।

बॉम्बे शहर का नाम 1995 में बदलकर मुंबई कर दिया गया लेकिन इस स्कूल के नाम में आज भी बॉम्बे लगा है। इसके खिलाफ आंदोलन क्यों नहीं किया गया? उस स्कूल में अंग्रेजी प्रथम भाषा, हिंदी या फ्रेंच दूसरी भाषा व मराठी तीसरी भाषा के रूप में पढ़ाई जाती है। फिर वहां मराठी का अभिमान कहां रहा? जाहिर है मुंबई मनपा चुनाव के लिए राजनीति करने के लिए भाषा का मुद्दा उछाला जा रहा है। यदि हिंदी की बात करें तो महाराष्ट्र की सीमा मध्यप्रदेश, और छत्तीसगढ़ से लगी हुई है।

13 जिलों का विदर्भ पहले मध्यप्रदेश का भाग था जिसकी नागपुर में राजधानी थी इसलिए यहां हिंदी प्रचलित है और उसका कोई विरोध नहीं हो रहा है। इसी तरह मुंबई बहुभाषी शहर रहा है। मराठवाडा, में निजाम का शासन रहने से वहां उर्दू मिश्रित हिंदी प्रचलित है। शंकरराव चव्हाण, अशोक चव्हाण, विलासराव देशमुख सभी हिंदी में भाषण देते थे।

Will the maharashtra government accept uddhav thackerays view on the mashelkar committee report

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Published On: Jun 30, 2025 | 12:46 PM

Topics:  

  • Maharashtra News
  • New Education Policy
  • Uddhav Thackeray

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