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नवभारत विशेष: महिला आरक्षित सीटों पर ‘प्रधानपति ‘ क्यों, आखिर कब खत्म होगी ये कुप्रथा

सरपंच और पार्षद के पदों पर महिलाओं की स्थिति 'पति सरपंच' और 'पति पार्षद' की होकर रह गई है. कागजों में तो इन पदों पर महिलाएं हैं, लेकिन हकीकत में इन पर पति ही काबिज हैं।

  • By दीपिका पाल
Updated On: Mar 12, 2025 | 11:52 AM

आज का नवभारत विशेष (सौ.डिजाइन फोटो)

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नवभारत डिजिटल डेस्क: पंचायती राज व्यवस्था के तहत 35 फीसदी से 50 फीसदी तक सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित की गई हैं, ताकि महिलाएं ग्रामीण विकास में सक्रिय भूमिका निभाते हुए अपने समुदाय का नेतृत्व करें, लेकिन यह लोकतांत्रिक उद्देश्य ज्यादातर जगहों में ‘प्रॉक्सी सरपंच’ या ‘सरपंच पति’ के चक्रव्यूह में फंसकर रह गया है। हमने 15 अगस्त 2023 को आजादी का अमृत महोत्सव मनाया था, लेकिन देश की लोकतांत्रिक संस्थाओं में अपने क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करने वाली महिलाएं, आज भी अपने पतियों की छाया से मुक्ति के लिए छटपटा रही हैं। सरपंच और पार्षद के पदों पर महिलाओं की स्थिति ‘पति सरपंच’ और ‘पति पार्षद’ की होकर रह गई है. कागजों में तो इन पदों पर महिलाएं हैं, लेकिन हकीकत में इन पर पति ही काबिज हैं।

देश के लोकतंत्र में महिला नेतृत्व को शक्ति देने के लिए हाल में केन्द्र सरकार द्वारा गठित एक समिति ने जो रिपोर्ट दी है, वह बताती है कि यह स्थिति कितनी जटिल है. यह स्थिति महज नकली जनप्रतिनिधित्व की ही नहीं है, बल्कि स्त्री सशक्तिकरण में भी बाधा बन रही है. महिला जनप्रतिनिधियों के कार्यों में हस्तक्षेप करने तथा उनके नाम पर पतियों व परिजनों द्वारा रिश्वत, राजनीति करने जैसे आरोपों के बाद इस बात पर बहस हो रही है कि महिलाओं को स्वतंत्र होकर कब काम करने दिया जाएगा ? वह भी आज की स्थिति में जब हर क्षेत्र में महिला आरक्षण मौजूद है. सुप्रीम कोर्ट के कहने पर पंचायती राज मंत्रालय ने 2023 के सिंतबर माह में एक समिति बनाई, इसका काम था कि यह प्रधानपति जैसी कुप्रथा की जांच करेगी।

एक वर्ष से अधिक समय तक जांच के बाद समिति ने अपनी रिपोर्ट पेश कर दी है. इसमें कहा गया है कि महिला जनप्रतिनिधियों को सशक्त बनाने के लिए लगातार प्रशिक्षण दिये जाने की जरूरत है. प्रशिक्षण के लिए मैनेजमेंट, आईआईटी जैसे संस्थानों के साथ ही महिला विधायकों-सांसदों की भागीदारी भी सुनिश्चित की जाए. समिति ने सरकार के पूर्व सचिव सुशील कुमार की अध्यक्षता में देश के 14 राज्यों में जाकर अपनी रिपोर्ट तैयार की है. इसमें महत्वपूर्ण उपाय सुझाया है कि महिला जनप्रतिनिधि के काम में हस्तक्षेप करने वाले उनके पति या दूसरे रिश्तेदार-संबंधियों को दंडित किया जाए।

हिंदी भाषी राज्यों में ज्यादा हस्तक्षेप

समिति ने जो अनेक सुझाव दिए हैं, उनमें प्रॉक्सी नेतृत्व के विषय में गोपनीय शिकायतों के लिए एक हेल्पलाइन, महिला निगरानी समिति बनाने, सत्यापित मामलों में अनुकरणीय दंड, महिला लोकपाल की नियुक्ति, कानूनी सलाह, सहायता नेटवर्क के अतिरिक्त रीयल टाइम कानूनी और शासन का मार्गदर्शन दिलवाने की बात हैं. देश की 2.63 लाख पंचायतों में, 15.03 लाख महिला जनप्रतिनिधि हैं. राजस्थान, उत्तर प्रदेश, बिहार, हरियाणा, झारखंड, छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश, ये सब वे प्रदेश हैं, जहां पर महिलाओं के कामकाज में हस्तक्षेप के सर्वाधिक मामले सामने आए हैं।

पत्नी के कामकाज में दखल के बाद सरकारी काम में भ्रष्टाचार होने पर सजा पति को कम, महिला प्रतिनिधि को अधिक मिलती है. महिला प्रधानों की दशा- दिशा पर इसी मार्च में फिल्म ‘असली प्रधान कौन ?’ का प्रीमियर हुआ है. इसमें प्रधानपति सरीखी कुप्रथा पर जमकर चोट की गई है और अभिनेत्री नीना गुप्ता ने इसमें मजबूती के साथ मुख्य किरदार निभाकर वास्तविकता पेश की है. देश की राजनीति से ही सबक लिया जाए, तो आज हमारी वित्तमंत्री, दिल्ली की मुख्यमंत्री, उत्तर प्रदेश की राज्यपाल, देश की राष्ट्रपति जैसे पदों पर महिलाएं पूरी क्षमता के साथ काम कर रही हैं तथा उनके निर्णय समाज को एक दिशा दे रहे हैं. आजादी के बाद कितनी महिलाएं एवरेस्ट जैसी चोटी को फतह कर चुकी हैं।

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एक अध्ययन में पाया गया है कि उत्तर प्रदेश, बिहार और असम जैसे राज्यों में महिला प्रधान पंचायत से संबंधित गतिविधियों में ज्यादा रुचि नहीं लेती थीं, जबकि अरुणाचल प्रदेश और केरल जैसे कुछ राज्यों में महिला प्रधान अपनी जिम्मेदारियों का निर्वहन गंभीरता से करती थीं।

लेख- मनोज वार्ष्णेय के द्वारा

Why pradhanpati on women reserved seats

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Published On: Mar 12, 2025 | 11:52 AM

Topics:  

  • International Women's Day
  • Nagar Panchayat

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