अमेरिकी मक्का (सौ. डिजाइन फोटो)
नवभारत डिजिटल डेस्क: पड़ोसी ने हम से कहा, ‘निशानेबाज, लोग बरसात के मौसम में स्वीट कॉर्न या भुट्टा शौक से खाते हैं।भुट्टे वाला भुट्टे को सेंककर उस पर नमक और नींबू का रस लगाकर ग्राहक को देता है।पुरानी फिल्म श्री 420 में नरगिस ने ‘इचक दाना बीचक दाना’ गीत गाया था।पहेलियों वाले उस गाने की लाइन थी- हरी थी मनभरी थी, लाख मोती जड़ी थी, राजाजी के बाग में दुशाला ओढ़े खड़ी थी- बोलो-बोलो क्या ! भुट्टा !’ हमने कहा, ‘छोटे-मोटे उठाईगीर को लोग भुट्टाचोर कहते हैं।
पंजाब में मक्के की रोटी और सरसों का साग खाया जाता है।मक्के का आटा कॉर्नफ्लोर कहलाता है।आप भी चाहें तो स्वीटकॉर्न उबालकर खा सकते हैं।वैसे यह बताइए कि आज आप मक्के की बात क्यों कर रहे हैं?’ पड़ोसी ने कहा, ” निशानेबाज, अमेरिका के वाणिज्य मंत्री हावर्ड लुटनिक आवाज लगाकर भारत से कह रहे हैं- भुट्टे ले लो! उन्होंने कहा अमेरिका से 1 बुशेल मक्का क्यों नहीं खरीदता? अमेरिका में विश्व का 30 प्रतिशत से ज्यादा मक्का पैदा होता है.’
हमने कहा, ‘हमारी सरकार का दृष्टिकोण है कि हमारे यहां भरपूर भुट्टे हैं।अमेरिका से मक्का, सोयाबीन और दुग्ध पदार्थ आने पर हमारे किसानों की स्थिति और खराब हो जाएगी।इनके आयात की कोई जरूरत नहीं है।इन चीजों के दाम कम रहने से भारतीय किसानों का नुकसान होगा।इसके अलावा जेनेटिकली मॉडिफाइड बीज आने से भारत की स्वदेशी फसलों पर बुरा असर पड़ सकता है.’ पड़ोसी ने कहा, ‘निशानेबाज पुरानी पीढ़ी के लोग वह समय भूले नहीं हैं जब भारत में अनाज का संकट था।
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1965 में अमेरिका से आने वाला लाल गेहूं इतना निकृष्ट था कि रोटी गले से नीचे नहीं उतरती थी।ऐसी ही माइलो नामक लाल ज्वार थी।अमेरिका में जो अनाज जानवरों को खिलाया जाता था उसे भारत भेजा था।अपने साथ आए पार्थेनियम या गाजर घास के बीज ने हमारी जमीन को बंजर कर दिया था।इसलिए विदेशी अनाज हमें नहीं चाहिए।हमारे किसान सक्षम हैं।यहां पर्याप्त अन्न भंडार है तभी तो सरकार 80 करोड़ गरीबों को मुफ्त अनाज दे रही है.’
लेख- चंद्रमोहन द्विवेदी के द्वारा