फिर पनपा महाराष्ट्र और कर्नाटक विवाद (सौ.सोशल मीडिया)
नवभारत डिजिटल डेस्क: कर्नाटक सड़क परिवहन निगम के बस कंडक्टर से 2 मराठी भाषी छात्रों के झगड़े की वजह से फिर एक बार बेलगावी को लेकर महाराष्ट्र व कर्नाटक के बीच दशकों से चले आ रहे विवाद की चिनगारी भड़क उठी है. उत्तरी कर्नाटक सीमा पर स्थित बेलगावी को पहले बेलगाम कहा जाता था. मराठी छात्रों ने कंडक्टर को इसलिए पीटा क्योंकि वह मराठी नहीं बोल रहा था।
ऐसी ही एक घटना चित्रदुर्ग में भी घटी. इस कारण क्षेत्र की बस सेवाएं ठप हो गईं. यह मुद्दा दिल्ली के अ.भा. मराठी साहित्य सम्मेलन में भी गूंजा. भाषावार प्रांतरचना के समय से महाराष्ट्र और कर्नाटक दोनों ही राज्यों का बेलगावी पर दावा चला आ रहा है. महाराष्ट्र की मांग है कि कर्नाटक की मराठी भाषी इलाके उसके हवाले किए जाएं. महाराष्ट्र राज्य एकीकरण समिति ने बेलगावी में चुनाव भी जीता था. ब्रिटिश राज के दौरान बेलगावी बॉम्बे प्रेसीडेंसी का एक हिस्सा था. 1881 की जनगणना के अनुसार बेलगावी में 64.39 प्रतिशत लोग कन्नड़ भाषी थे जबकि 26.09 प्रतिशत लोग मराठी बोलते थे।
1956 के राज्य पुनर्गठन आयोग ने बेलगाम तथा 10 अन्य मराठी भाषी तहसीलों को तत्कालीन मैसूर राज्य में शामिल कर दिया था. महाराष्ट्र सरकार ने इसका विरोध करते हुए केंद्रीय गृह मंत्रालय को प्रतिवेदन देकर मांग की कि बेलगाम, करवाड और निपानी के शहरी इलाकों सहित 814 गांव महाराष्ट्र को वापस सौंपे जाएं. इस पर केंद्र सरकार ने 1966 में महाजन आयोग का गठन किया. इस आयोग ने इन क्षेत्रों पर कर्नाटक के दावे को मान्य किया. कर्नाटक के मराठी भाषी क्षेत्रों में असंतोष पनप रहा था. 2004 में महाराष्ट्र सरकार ने संविधान के अनुच्छेद 131 (बी) के तहत सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर मांग की कि कर्नाटक में मराठी भाषी लोग असुरक्षित महसूस कर रहे हैं. उन पर कन्नड थोपी जा रही है और सौतेला बर्ताव किया जा रहा है।
इस मामले का अभी तक फैसला नहीं हो पाया. 2021 में महाराष्ट्र के तत्कालीन मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने महाराष्ट्र का पक्ष रखते हुए पुस्तक जारी की जिसका शीर्षक था- ‘महाराष्ट्र कर्नाटक सीमा वाद : संघर्ष आणि संकल्प’. इसके बाद 2022 में कर्नाटक विधानसभा ने प्रस्ताव पास किया कि राज्य की कोई भी भूमि महाराष्ट्र को नहीं दी जाएगी. इसके जवाब में एकनाथ शिंदे की सरकार ने भी प्रस्ताव पारित किया कि कर्नाटक से मराठी भाषी इलाके वापस लेकर रहेंगे. शिंदे सरकार ने ज्योतिबा फुले जन आरोग्य योजना में कर्नाटक के मराठी भाषी क्षेत्रों तथा बेलगावी के स्वाधीनता सेनानियों के परिवारजनों को शामिल करने का एलान किया. इससे विवाद और गरमा गया।
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केंद्र सरकार ने 1990 में अंतर-राज्य परिषद की स्थापना की जिसे केंद्र और राज्य के बीच विवाद तथा राज्यों के आपसी विवाद निपटान व समन्वय करने को कहा गया. इस समिति की अब तक 11 बैठकें हो चुकी हैं लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला. कावेरी नदी पानी विवाद में तो 3 राज्य शामिल हैं. तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम के स्टालिन ने मांग की है कि समिति की प्रतिवर्ष 3 बैठकें होनी चाहिए ताकि सहयोगी भावना बढ़े।
लेख- चंद्रमोहन द्विवेदी के द्वारा