क्या गुल खिलाएगा उद्धव-राज तालमेल (सौ. डिजाइन फोटो)
नवभारत डिजिटल डेस्क: यद्यपि कांग्रेस के वरिष्ठ नेता मानकर चल रहे हैं कि उद्धव और राज ठाकरे के बीच चुनावी तालमेल होने से किसी प्रकार का राजनीतिक नुकसान नहीं होगा बल्कि कांग्रेस के लिए आगे बढ़ने और तरक्की करने की गुंजाइश पहले से ज्यादा बढ़ जाएगी।शिवसेना (उद्धव) का बोझ लाद कर चलने की बजाय उसके बगैर चलना कांग्रेस के लिए सुविधाजनक रहेगा।इतने पर भी उद्धव का प्रयास यही रहेगा कि कांग्रेस और मनसे दोनों उनका साथ दें।उनकी यह सोच स्थानीय निकाय चुनावों को लेकर है।
राज्य में पहले जिला पंचायत समिति फिर नगरपालिका और बाद में महानगरपालिका चुनाव होंगे।इस महाआघाड़ी में शरद पवार की राकांपा भी साथ होगी।महापालिका चुनाव जनवरी 2026 में होने की संभावना व्यक्त की जाती है।अब मुद्दा यह है कि क्या उद्धव सेना व मनसे के तालमेल में क्या कांग्रेस और राकांपा (शरद) शामिल होना चाहेंगे या अलग से अपनी ताकत आजमाना पसंद करेंगे? एक समय वह भी था जब उद्धव और राज एक दूसरे की शक्ल देखने को तैयार नहीं थे।जब शिवसेना के वरिष्ठ नेता, पूर्व मुख्यमंत्री व लोकसभा अध्यक्ष रह चुके स्व।मनोहर जोशी ने उद्धव ठाकरे को राज से तालमेल करने की बिनमांगी सलाह दी थी तो उद्धव उन पर बेहद खफा हो गए थे।
अब वही उद्धव सांसद संजय राऊत को साथ लेकर शिवतीर्थ गए और राज ठाकरे से चर्चा की।वह गणेशोत्सव के दौरान भी गए थे लेकिन उस समय की भीड़भाड़ में राज ठाकरे से राजनीतिक चर्चा संभव नहीं थी।उद्धव ठाकरे को उनकी चाची कुंदाताई ने फिर से एक बार आने का अनुरोध किया था।अब उद्धव और राज के बीच लंबी चर्चा से अनुमान लग रहा है कि निकाय चुनाव में उद्धव की मशाल को लेकर राज ठाकरे की मनसे का इंजन आगे बढ़ेगा।उद्धव का सारा ध्यान बृहन्मुंबई मनपा चुनाव पर है..।
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इस महापालिका का बजट पूर्वोत्तर के राज्यों से भी अधिक है।उद्धव मानते हैं कि यदि मुंबई महापालिका पर उनकी पार्टी का कब्जा नहीं हुआ तो उसका अस्तित्व संकट में पड़ जाएगा।उद्धव के मराठी वोट बैंक में पहले ही एकनाथ शिंदे ने सेंध लगा दी है।मुंबई महापालिका में सत्ता मिली तो उसके भरोसे राज्य में 5 वर्षों तक राजनीति की जा सकती है।राज ठाकरे की मनसे का साथ मिलने से और सीटों का फायदा हो सकता है।दूसरी ओर राज ठाकरे के सामने भी कोई विकल्प नहीं है।दोनों चचेरे भाई राजनीतिक गरज से एक साथ आ रहे हैं।राज ठाकरे को बीजेपी में कोई सहयोग नहीं मिल पाया था।विधानसभा चुनाव में उनके बेटे अमित ठाकरे को हार का सामना करना पड़ा था।मुंबई पर वर्चस्व के इरादे से उद्धव और राज ठाकरे के बीच तालमेल हो रहा है।
लेख-चंद्रमोहन द्विवेदी के द्वारा