(डिजाइन फोटो)
पड़ोसी ने हमसे कहा, “निशानेबाज, लोग मंत्री बनने के लिए तरसते हैं लेकिन यह सचमुच अजीबोगरीब अभिनेता से नेता बने केंद्रीय पेट्रोलियम, प्राकृतिक गैस व पर्यटन राज्यमंत्री सुरेश से अपील की है कि मेरा मंत्री पद वापस ले लिया जाए क्योंकि फिल्म मेरा पैशन है, अभिनव मेरा जुनून है। एक्टिंग के बिना में मर जाऊंगा।”
हमने कहा, “नीम के कीड़े को नीम ही मीठी लगती है। केरल की मलयालम फिल्मों में एंग्रीयंगमैन की भूमिका निभानेवाले सुरेश गोपी को राजधानी दिल्ली की हवा रास नहीं आ रही है। उनकी दलील है कि अभी उनके पास 25 सक्रिप्ट और 22 फिल्में हैं, मंत्री पद की जिम्मेदारी की वजह से वह त्रिशूर में अपने मतदाताओं को समय नहीं दे पा रहे हैं।”
पड़ोसी ने कहा, “निशानेबाज, सुरेश गोपी को समझना चाहिए कि राजनेता रहकर भी एक्टिंग कर सकते हैं। कभी जनता की तकलीफ देखकर मगर के आंसू बहाएं, कभी जोरदार डायलॉगबाजी करते हुए विपक्ष पर बरस पड़ें। कभी एक्शन फिल्मों के समान उछलकूद कर अपनी फुर्ती दिखाएं, मंत्रिमंडल की बैठक में माहौल हल्का फुल्का करने के लिए गाना गाए।
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हमने कहा, “राजनीति की फील्ड में कितने ही अभिनेता फेल हो जाते हैं। अमिताभ बच्चन भी समझ गए थे कि राजनीति उनके बस की बात नहीं है। गोविंदा सांसद चुने गए तो है राजनीति में हीरो से जीरो बन गए, उधर फिल्मों से भी उखड़ गए। धर्मेद्र और सनी देओल दोनों ही चुने जाने के बाद संसद में जाने से कतराते रहे। अगर सुरेश गोपी का मन राजनीति में नहीं लगता तो सीधे मंत्री पद से इस्तीफा देकर वापस केरल बले जाएं, व्यक्ति को स्पष्ट निर्णय लेना चाहिए कि उसके लिए क्या अच्छा है।”
पड़ोसी ने कहा, “निशानेबाज, सुरेश गोपी को एमजी रामचंद्रन, जयललिता, एनटी रामाराव से प्रेरणा लेनी चाहिए जो राजनीति में बेहद सफल हुए थे। हेमा मालिनी और जया बच्चन भी पड़ोसी कुशल सांसद साबित हुई।”
हमने कहा, “फिल्मों में डायरेक्टर मनचाही एक्टिंग करवा लेता है। रटे हुए डायलॉग बोलकर हीरो तालियां पिटवा लेता है। शूटिंग में कई बार रिटेक होने पर शॉट ओके होता है। राजनीति में बगैर तैयारी के लुभावने अंदाज में भाषणबाजी करनी होती है और जनता से झूठे वादे करने पड़ते हैं। अभिनेता बनना आसान है, नेता बनना कठिन !”
लेख चंद्रमोहन द्विवेदी द्वारा