राहुल गांधी (डिजाइन फोटो)
पड़ोसी ने हमसे कहा, ‘‘निशानेबाज, एक शिवसेना विधायक ने एलान किया कि जो कोई राहुल गांधी की जीभ काटकर लाएगा उसे वह 11 लाख रुपए इनाम देंगे। एक अन्य नेता ने कहा कि राहुल की जीभ को गर्म लोहे से दाग देना चाहिए। क्या कुछ सिरफिरों की ऐसी बातें सुनकर राहुल गांधी को अपनी जीभ का बीमा करा लेना चाहिए?’’
हमने कहा, ‘‘शिवसेना (शिंदे गुट) और बीजेपी राहुल से नफरत करते हैं। इसलिए इस तरह की बातें की जाती हैं। बीजेपी के लोग पहले राहुल को नासमझ और पप्पू कहा करते थे लेकिन अब राहुल की जुबान निशाने पर आ गई है क्योंकि वह विदेश जाकर मोदी सरकार व बीजेपी की आलोचना करते हैं। इसे बीजेपी नेता देशद्रोह मानते हैं। मोदी के भक्तों को लगता है कि बीजेपी और मोदी ही राष्ट्र है। उनके खिलाफ जुबानदराजी करना राष्ट्रद्रोह है।’’
पड़ोसी ने कहा, ‘‘निशानेबाज, जीभ या जुबान का बड़ा महत्व है। जीभ साफ रहे इसके लिए टंग क्लीनर का इस्तेमाल किया जाता है। पुराने डाक्टर मरीज से जीभ दिखाने को कहते थे। महाराष्ट्र में जीभकाटे सरनेम भी होता है। कवि रहीम ने कहा था- रहिमन जिव्हा बावरी, कह गई ताल-पताल, आपन तो भीतर गई, जूती खात पताल! इसका मतलब है कि जीभ किसी पागल या विक्षिप्त के समान कुछ भी बकवास करने के बाद मुंह के भीतर चली जाती है लेकिन उसकी वजह से सिर पर जूते खाने की नौबत आ जाती है।’’
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हमने कहा, ‘‘कुछ लोग जुबान के पक्के होते हैं जो वादा करते हैं, उसे अवश्य निभाते हैं। आपने सुना होगा- रघुकुल रीत सदा चली आई, प्राण जाएं पर वचन न जाही! स्पष्टवादी लोगों की जुबान बहुत तीखी होती है। स्व। हरिशंकर परसाई जैसे व्यंग्यकार के साथ यही बात थी। कमान से निकला तीर और जुबान से निकली बात वापस नहीं आते। किसी ने उद्दंडता पूर्ण बात की तो उसे डांटते हुए कहा जाता है- खामोश रहो आजकल तुम्हारी जुबान कुछ ज्यादा ही लंबी हो गई है। वकीलों का काम ही जुबान चलाना है।’’
हमने कहा, ‘‘इसी से उनकी कमाई होती है। नेताओं की जुबान भी बहुत अच्छी तरह चलती है। इसी के बल पर अटलबिहारी वाजपेयी मंत्रमुग्ध करनेवाला भाषण दिया करते थे। जुबान से ही खाने के स्वाद का पता चलता है। जो गूंगा होता है उसे बेजुबान कहा जाता है। जिसकी जुबान में बहुत ज्यादा मीठापन होता है, वह भरोसेमंद नहीं रहता। कहावत है- खड़ा तिलक मधुरिया वाणी, दगाबाज की यही निशानी! जीभ में हड्डी नहीं होती। वह फ्लेक्सिबल होती है। वह 32 दांतों से घिरी होती है। रामायण के सुंदरकांड में विभीषण हनुमान से कहते हैं- सुनहु पवनसुत रहनी हमारी, जिमि दसन नहीं महुं जीभ बिचारी!’’
लेख- चंद्रमोहन द्विवेदी द्वारा