देशसेवा में PM मोदी बिजी, क्यों पूछते हो उनकी डिग्री
नवभारत डिजिटल डेस्क: पड़ोसी ने हमसे कहा, ‘निशानेबाज, हमारे देश में लोगों को किसी की व्यक्तिगत जिंदगी में ताक-झांक करने और व्यर्थ की पूछताछ करने की बुरी आदत है। दिल्ली हाईकोर्ट ने केंद्रीय सूचना आयोग (सीआईसी) का आदेश रद्द करते हुए कह दिया कि प्रधानमंत्री मोदी की डिग्री दिखाना जरूरी नहीं है। इसी तरह स्मृति ईरानी की शैक्षणिक योग्यता से संबंधित जानकारी देने का सीईसी का आदेश भी रद्द कर दिया गया। अदालत ने कहा कि आरटीआई कानून बनाने का उद्देश्य पारदर्शिता को बढ़ावा देना था। यह कानून सनसनी फैलाने के लिए चारा डालने वाला नहीं है। किसी व्यक्ति का शैक्षणिक रिकार्ड उसकी व्यक्तिगत सूचना के तहत आता है।
इस खबर से हमें वह फिल्मी गीत याद आया- परदे में रहने दो, परदा ना हटाओ, परदा जो हट गया, भेद खुल जाएगा !’ लोग व्यर्थ ही गुल खिलाना चाहते हैं जबकि कुछ चीजें गुलदस्ते में ही अच्छी रहती हैं।’ हमने कहा, ‘जब सरकार ने सूचना का अधिकार दिया है तो लोगों की उत्कंठा बढ़ गई है। वह सब कुछ जानना चाहते हैं। जहां श्रद्धा भावना की कमी है वहीं संदेह उत्पन्न होता है। कौन कितना पढ़ा-लिखा है, यह उसका निजी मामला है। देश में बेरोजगारी इतनी है कि चपरासी के पद के लिए भी पोस्ट ग्रेजुएट आवेदन करते हैं। पीएचडी करने के बाद भी शिक्षण सेवक की नौकरी मुश्किल से मिलती है। डिग्री सिर्फ कागज का टुकड़ा बनकर रह गई है।’
पड़ोसी ने कहा, ‘निशानेबाज, महात्मा गांधी, जवाहरलाल नेहरू, सरदार पटेल सभी बैरिस्टर थे। डॉ। राममनोहर लोहिया ने बर्लिन यूनिवर्सिटी से अर्थशास्त्र में डॉक्टरेट की पदवी ली थी। डॉ। बाबासाहब आंबेडकर के पास इंग्लैंड और अमेरिका की ऊंची-ऊंची डिग्रियां थीं। डॉ। शंकरदयाल शर्मा, कैलाशनाथ काटजू और डॉ। श्रीकांत जिचकार की डिग्रियां गिनते-गिनते लोग थक जाते थे। उन लोगों ने कभी अपनी डिग्री नहीं छुपाई।’ हमने कहा, ‘व्यर्थ की दलीलें मत दीजिए। अलौकिक व्यक्तित्व वाले और खुद को नॉनबायोलॉजिक मानने वाले की डिग्री पूछना बहुत बड़ी गुस्ताखी है। किताबी शिक्षा या पढ़ने-लिखने से कुछ नहीं होता। संत कबीर ने कहा था- पोथी पढ़-पढ़ जग मुआ, भया ना पंडित कोय, ढाई आखर प्रेम का पढ़े सो पंडित होय !’
लेख-चंद्रमोहन द्विवेदी के द्वारा