5वीं और 8वीं पास होना अब अनिवार्य (डिजाइन फोटो)
नवभारत डेस्क: पांचवी और आठवीं की वार्षिक परीक्षा में फेल होने वाले छात्रों को अगली कक्षा में प्रमोट न करते हुए उसी क्लास में फिर से बिठाने पर मुहर लगाकर केंद्र सरकार ने स्कूली शिक्षा के प्रगतिशील उपक्रम से अपने कदम पीछे हटाए हैं। एक ओर बच्चों के दिमाग पर परीक्षा का तनाव व बोझ होने की शिकायत और दूसरी तरफ उन्हें अनुत्तीर्ण होने पर फिर उसी कक्षा में रोके रखना, क्या दोहरा रवैया नहीं है।
पहले तो शिक्षा नीति में यह कहा गया था कि छात्रों को परीक्षा केंद्रित अभ्यास न करते हुए विषय समझने पर जोर दिया जाए। उसी तरह किसी छात्र को फेल होने पर स्कूल छोड़ने की नौबत न आए। इसीलिए विगत वर्षों से 5वीं तथा 8वीं में छात्रों को अनुत्तीर्ण नहीं किया जाता था। कक्षा पहली से 8वीं तक छात्रों को शिक्षा का अधिकार देने का कानून में प्रावधान किया गया था।
8वीं तक अनुत्तीर्ण न करने का अर्थ यह नहीं था कि परीक्षा न ली जाए या छात्र का आकलन नहीं करते हुए अगली कक्षा में भेज दिया जाए। इसमें कहा गया था कि शिक्षक समर्पित भाव से प्रत्येक छात्र की ओर व्यक्तिगत रूप से ध्यान दें, वह जिस विषय में कच्चा है, उसमें पक्का करें।
विद्यार्थी को फेल करने की बजाय उसके सुधारात्मक शिक्षण (रेमेडियल टीचिंग) पर जोर देने और फिर अगली कक्षा में भेजने की बात कही गई थी। इसमें धक्कागाड़ी जैसी बात नहीं थी लेकिन सुधारात्मक शिक्षण न देते हुए सभी छात्रों को उत्तीर्ण किया जाता रहा।
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खास तौर पर सरकारी स्कूलों में पढ़ाई का बुरा हाल हुआ। पालकों की ओर से शिकायत आने लगी कि फेल होने का भय निकल जाने से बच्चे बिल्कुल पढ़ाई नहीं करते। शिक्षकों के साथ नेताओं ने भी यह मुद्दा उठाया। यह नहीं सोचा गया कि फेल होने पर कितने ही गरीब बच्चे पढ़ाई छोड़ देते हैं।
आखिर केंद्र ने इस संबंध में संविधान संशोधन कर यह प्रावधान बदलने की छूट दी। इसके बाद आधे से अधिक राज्यों ने यह धक्कागाड़ी बंद कर दी। अब केंद्र सरकार ने भी अपने अधिकार क्षेत्र के केंद्रीय विद्यालय, नवोदय विद्यालय, सैनिक स्कूल जैसी लगभग 3,000 शालाओं से यह प्रावधान हटा दिया।
महाराष्ट्र ने पहले ही इसे हटा दिया था। अब पांचवीं और आठवीं के छात्र यदि वार्षिक परीक्षा और 2 माह बाद ली जानेवाली सप्लीमेंट्री परीक्षा में भी अनुत्तीर्ण हुए तो उन्हें उसी क्लास में बैठना पड़ेगा। विश्व में शिक्षा क्षेत्र में नए-नए प्रयोग हो रहे हैं लेकिन भारत में आज भी पास और फेल की पुरानी परिपाटी चल रही है।
लेख- चंद्रमोहन द्विवेदी द्वारा