नवभारत संपादकीय (डिजाइन फोटो)
नवभारत डेस्क: तेलंगाना विधानसभा में ओबीसी को 42 फीसदी आरक्षण देने का प्रस्ताव सर्वसम्मति से पारित हो गया। तेलंगाना की इस पहल का देश के अन्य राज्यों पर भी प्रभाव पड़ सकता है। पिछले कुछ वर्षों से ओबीसी आरक्षण का मुद्दा जोर पकड़ रहा है। तेलंगाना में यह नौकरी, शिक्षा तथा स्थानीय निकायों व विधानसभा चुनाव में लागू होगा। महाराष्ट्र में ओबीसी अपने आरक्षण में कटौती कर मराठा आरक्षण देने के खिलाफ है। छगन भुजबल को ओबीसी का बड़ा नेता माना जाता है।
महाराष्ट्र में महाविकास आघाड़ी की सरकार के दौरान विधानसभा अध्यक्ष रहते हुए नाना पटोले ने ओबीसी जनगणना का प्रस्ताव सदन में मंजूर करवाया था, जिससे खलबली मची थी। परंतु बाद में इसके आगे कुछ हुआ नहीं। राज्य में ओबीसी विरुद्ध मराठा आरक्षण का विवाद छिड़ने पर दोनों जमातों को शांत करने के लिए महायति सरकार ने अनेक बैठकें की।
29 सितंबर 2023 की बैठक में ओबीसी की जनगणना की मांग स्वीकार की गई, किंत उसे अब तक लागू नहीं किया गया। अब तेलंगाना के पहल करने के बाद अन्य ओबीसी बहुल राज्यों में भी इस मुद्दे के जोर पकड़ने की संभावना है। इस दिशा में राज्यों ने पहल की, तो 50 प्रतिशत आरक्षण को अधिकतम संवैधानिक सीमा आड़े आएगी। इसलिए वह निर्णय अदालत में टिक नहीं पाता।
तेलंगाना की कांग्रेस सरकार ने इस प्रस्ताव को पारित कर केंद्र के पाले में गेंद फेंकी है। इसे दबाव की राजनीति माना जा सकता है। इस तरह का कदम ऐसे राज्य उठा सकते हैं, जहां बीजेपी की सत्ता नहीं है। इसकी वजह से बीजेपी शासित राज्यों में ओबीसी सक्रिय होकर आंदोलन कर सकते हैं। यदि दबाव ज्यादा बढ़ा, तो केंद्र को संविधान संशोधन कर आरक्षण की वर्तमान सीमा 50 प्रतिशत से अधिक करनी होगी।
विभिन्न राज्यों में ओबीसी की आबादी अलग-अलग है। इस विवाद का समाधान निकालना है और आरक्षण में पारदर्शिता लानी है, ती देशव्यापी स्तर पर जाति आधारित जनगणना करानी होगी। इसके लिए संविधान की नवी अनुसूची में संशोधन कर संसद की सहमति लेनी होगी। ऐसा करना बीजेपी के लिए चुनौतीपूर्ण होगा।
नवभारत विशेष से जुड़े सभी रोचक आर्टिकल्स पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता राहुल गांधी काफी समय से देश में जातिगत जनगणना की मांग करते आ रहे हैं। बीजेपी ने इस मुद्दे पर ठोस निर्णय नहीं लिया है, लेकिन तेलंगाना के बीजेपी विधायकों ने ओबीसी आरक्षण प्रस्ताव को बिना शतं समर्थन दिया है। भारत राष्ट्र समिति का भी इसे समर्थन है। अब देखना होगा कि तेलंगाना की इस पहल के बाद केंद्र कौन-सा कदम उठाता है।
लेख- चंद्रमोहन द्विवेदी के द्वारा