अदालतें अपराध का फैसला करती हैं, पाप का नहीं! पाप और पुण्य की विचारधारा नैतिकता के सिद्धांतों से जुड़ी है, कानून से नहीं! आस्तिक लोग मानते हैं कि पाप और पुण्य का फैसला मरने के बाद ऊपरवाले की अदालत में होता है. यमलोक में पापी को कैसे-कैसे भयानक दंड दिए जाते हैं, यह गरुड़ पुराण में वर्णित है. फिलहाल यह विषय इसलिए संदर्भ रखता है क्योंकि बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने विधानसभा में कहा कि जो लोग शराब पीते हैं, वो महापापी हैं. वे हिंदुस्तानी भी नहीं हैं. नीतीश ने स्पष्ट किया कि जो लोग मिलावटी शराब पीने से मर गए, उनके परिवारों को कोई आर्थिक सहायता नहीं दी जाएगी.
उन्होंने यह भी कहा कि महात्मा गांधी पूरी तरह मद्यपान के खिलाफ थे. जो बापू की भावनाओं को नहीं समझ सकता, वह हिंदुस्तानी या भारतीय नहीं है. बिहार के 6 बार मुख्यमंत्री रह चुके नीतीश कुमार के लिए बेहतर होता कि वे अपने राज्य की मद्यनिषेध नीति पर चर्चा तक सीमित रहते. यह कहना मुख्यमंत्री का काम नहीं है कि कौन महापापी है! यह तो मॉरल पुलिसिंग हुई. बिहार में मद्यनिषेध नीति बुरी तरह विफल हुई है. वहां पड़ोसी राज्यों से शराब की तस्करी होती है. अवैध मिलावटी शराब पीकर लोगों की मौत हुई या आंखों की रोशनी चली गई है. कानून-व्यवस्था व अदालतों पर भारी बोझ आया है.
जेलखाने ऐसे हजारों लोगों से भरे हुए हैं जो पहली बार शराब पीते पकड़े गए. गरीब आदमी जमानत नहीं दे सकता, न वकील खड़ा कर सकता है. पिछड़े वर्ग और आदिवासी समुदाय में शराब पीना बुरा नहीं माना जाता. नैतिक और स्वास्थ्य की दृष्टि से शराब पीना सही नहीं है लेकिन जो व्यक्ति लंबे समय से शराब का आदी हो गया है, उसका दिमाग और हाथ-पैर बिना पिए चल ही नहीं सकते. इसीलिए स्वास्थ्य के आधार पर उनके लिए परमिट जारी किया जाता है.
इतनी राज्य सरकारें अपना रेवेन्यू बढ़ाने के लिए शराब की बिक्री की अनुमति दे रही हैं तो क्या वे भी नीतीशकुमार की राय में ‘महापापी’ हैं? जो नेता मद्यपान करते हैं, उनके बारे में नीतीश की क्या राय है? जहां भी मद्यनिषेध लागू किया गया, वहां अवैध शराब की बिक्री बढ़ी. यदि कोई व्यक्ति मिलावटी शराब पीकर मर जाए तो उसमें उसके परिवार का क्या कसूर है? उसके बेसहारा परिजनों को मानवीय आधार पर सहायता देना सरकार का कर्तव्य होना चाहिए. वैसे महात्मा गांधी ने यह भी कहा था कि पाप से घृणा करो, पापी से नहीं!