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नवभारत विशेष: देश के 32 लाख मुसलमानों को सौगात-ए-मोदी देने में गलत क्या है?

सौगात-ए-मोदी को लेकर सभी विरोधी पार्टियां एक स्वर में कह रही हैं कि भाजपा मदद के बहाने सियासत कर रही है। सवाल है कि सियासत के लिए भी अगर सौहार्द फैलाया जाए, तो इसमें बुराई क्या है?

  • By मृणाल पाठक
Updated On: Mar 28, 2025 | 10:35 AM

नवभारत विशेष (डिजाइन फोटो)

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नवभारत डेस्क: ईद के मौके पर भाजपा ने देशभर के 32 लाख गरीब मुसलमानों को अपने अल्पसंख्यक मोर्चा के कार्यकर्ताओं के जरिए देशभर की 32 हजार मस्जिदों में चुने हुए 100 से ज्यादा जरूरतमंद लोगों को ‘सौगात-ए-मोदी’ किट दे रही है। इस किट में महिलाओं के लिए सूट, पुरुषों के लिए कुर्ता-पायजामा, दाल, चावल, सेवइयां, सरसों का तेल, चीनी, मेवा तथा खजूर शामिल हैं। हर किट की कीमत रु. 600-700 के बीच है।

साथ ही देश के सभी जिलों में ईद मिलन समारोह भी आयोजित किए जाएंगे, सभी विरोधी पार्टियां एक स्वर में कह रही हैं कि भाजपा मदद के बहाने सियासत कर रही है। सवाल है कि सियासत के लिए भी अगर सौहार्द फैलाया जाए, तो इसमें बुराई क्या है? आखिर भाजपा एक राजनीतिक पार्टी है इसलिए वह राजनीति नहीं करेंगी तो क्या करेंगी?

भाजपा का दावा है कि यह कदम सामाजिक समावेश और गरीबी उन्मूलन की दिशा में एक बड़ा प्रयास साबित होगा। कुछ महीनों में ही बिहार में विधानसभा चुनाव होने जा रहे हैं, तो विपक्षी राजनीतिक पार्टियों को यह समूची कवायद सिर्फ मुस्लिम वोट जुटाने का तरीका लग रही है। बिहार से निर्दलीय सांसद पप्पू यादव ने पूछा है- आखिर भाजपा की यह राजनीति है या हृदय परिवर्तन?

पप्पू यादव की पत्नी और कांग्रेस सांसद रंजीत रंजन ने कहा कि बिहार में चुनाव है। ऐसे में भाजपा सौगात नहीं दे रही। बल्कि मुसलमानों से वोट मांग रही है। इसमें सौ फीसदी सच्चाई हो सकती है। बिहार की जातिगत जनगणना के मुताबिक राज्य में 17.7% मुस्लिम और 14.26% यादव आबादी रहती है।

लालू यादव का एम-वाई फार्मूला

पिछली सदी के 90 के दशक में राष्ट्रीय जनता दल के सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव ने सत्ता में काबिज होने के लिए यादवों और मुस्लिमों का एक सुव्यवस्थित फॉर्मूला ही इंजाद किया था, जिसे सियासी गलियारे में एमवाई फॉर्मूला कहा गया था। मुस्लिम और यादव कम्युनिटी को मिलाकर बनने वाले इस समीकरण के इर्द-गिर्द दो दशकों तक राजनीति घूमी है और आने वाले दिनों में भी इस फॉर्मूले को बिहार में कुछ अंदाज में लागू किए जाने की कोशिश हो रही है। क्योंकि लोकनीति संस्थान (सीएसडीएस) के मुताबिक पोस्ट-पोल सर्वे 2020 में राष्ट्रीय जनता दल और कांग्रेस के महागठबंधन को 75% मुस्लिमों ने वोट दिया था।

वहीं, भाजपा और जेडीयू वाले एनडीए को 5% और चिराग पासवान की लोकजनशक्ति पार्टी को 2% मुस्लिम वोट मिले थे। जिस प्रदेश में मुस्लिम सियासत में इतने निर्णायक हों, वहां अगर मुसलामानों को पटाने के लिए भाजपा सियासत कर रही है, तो इसमें आश्चर्य की क्या बात है? आखिर बिहार विधानसभा की 243 में से 32 सीटें पूरी तरह से मुस्लिम मतदाताओं के दबदबे वाली हैं, जहां 30% से ज्यादा मुस्लिम वोटर हैं। इसलिए कोई भी राजनीतिक पार्टी चाहेगी कि बहुमत के जादुई आंकड़े के लिए जरूरी 122 सीटें पाने में उसे मुस्लिमों का मत और समर्थन मिले।

पसमांदा मुस्लिमों को साथ लेने की कोशिश

भाजपा इस किट राजनीति के जरिए बताने की कोशिश कर रही है कि वह सिर्फ हिंदुओं की पार्टी नहीं है, सभी समुदायों की पार्टी है। अपनी इस पहल के जरिए वह विशेषकर पसमांदा मुसलमानों तक पहुंचने की कोशिश कर रही है। जिस तरह हाल के वर्षों में भाजपा ने मुस्लिम महिलाओं के बीच अपनी सकारात्मक छवि तीन तलाक जैसे मुद्दों में उनका साथ देकर बनाई है, वैसी ही पहुंच अब वह पसमांदा मुस्लिमों तक अपनी कल्याणकारी राजनीति की बदौलत बनाना चाह रही है। भाजपा शायद अकेली ऐसी राजनीतिक पार्टी है, जो चौबीसों घंटे चुनाव जीतने के ख्यालों में डूबी रहती है।

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भाजपा को पता है कि मुस्लिम वोटों के एकमुश्त ध्रुवीकरण हमेशा उसके खिलाफ जाता है। भाजपा को यह भी पता है कि एक साथ सारे मुस्लिमों के दिल में तो वह अपनी जगह नहीं बना सकती। इसलिए वह पसमांदा जैसे मुट्ठीभर मुस्लिम वोट भी अपनी तरफ कर सकी, तो मुस्लिम ध्रुवीकरण कमजोर होगा और इस तरह उसकी जीत की बेहतर संभावनाएं बनेंगी। लोकनीति के ही एक पोस्ट पोल सर्वे के मुताबिक 2014 और 2019 के आम चुनावों में भाजपा को करीब 8% मुस्लिम वोट मिला था, जो 2024 के आम चुनाव में घटकर 6% रह गया।

लेख- डॉ. अनीता राठौर के द्वारा

Navbharat special what is wrong in giving gift of modi to 32 lakh muslims of country

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Published On: Mar 28, 2025 | 10:35 AM

Topics:  

  • BJP
  • Congress
  • Indian Politics

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