राफेल का मरीन वर्जन (डिजाइन फोटो)
नवभारत डिजिटल डेस्क: राफेल के मरीन वर्जन की खरीद सौदे पर लगी सरकारी मुहर, पाकिस्तान को परेशान करने के साथ साथ चीन को भी चिंता में डालने वाली है। सरकार ने बिल्कुल सटीक समय पर इस सौदे पर फैसला करके सामरिक रणनीतिक ही नहीं कूटनीतिक बाजी मारी है। वाकई यह सौदा नौसेना के लिये गेमचेंजर साबित होने वाला है। फ्रांस के राजदूत और रक्षा सचिव की संयुक्त घोषणा के बाद तय हो गया कि मरीन सिरीज के 22 सिंगल सीटर राफेल एम जेट तथा चार ट्विन-सीटर ट्रेनर वायुयान, तय समय पर नौसेना को मिलने शुरू हो जायेंगे।
9 साल पहले 36 राफेल जेट्स के सौदे के बाद यह सौदा भारत-फ्रांस रक्षा संबंधों को और गहरा करेगा। भारतीय वायु सेना 2016 में हुए 60,000 करोड़ रुपये के सौदे के तहत मिलने वाले 36 राफेल जेट का संचालन कर रही है। अब बारी नौसेना की है। इसे मिलने वाले राफेल एम सेना में राफेल ईकोसिस्टम को मजबूत बनायेगा।
फिलहाल नौसेना दो विमानवाहक पोतों का संचालन करती है एक तो रूस से खरीदा गया आईएनएस विक्रमादित्य और दूसरा स्वदेश निर्मित तथा 2022 में कमीशन किया गया आईएनएस विक्रांत। राफेल एम को पहले विक्रांत पर तैनाती की योजना है। बेशक इतने राफेल जेट मिलने से नौसेना की रणनीतिक और मारक क्षमता कई गुना बढ़ जाएगी।
राफेल एम जेट की आपूर्ति लगभग 4 साल में शुरू होगी और 7 साल में पूरी होगी। 2029 से 2032 तक यह प्रक्रिया चलेगी। उससे पहले हमें अपने विमान वाहक पोतों को जो लिफ्ट और अरेस्ट के लिये रूसी मिग-29 के विमानों के अनुरूप बने थे उनको राफेल एम के हिसाब से थोड़ा बदलना होगा।
पहलगाम की घटना के बाद हफ्ते भर के भीतर सरकार से सरकार के दूर से ही दस्तखत ने राष्ट्रीय तथा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अलग तरह का संदेश दिया है। 2019 में वायुसेना ने मिराज से सर्जिकल स्ट्राइक किया था पर उसके तुरंत बाद उससे बहुत बेहतर 36 राफेल खरीदे।
पहलगाम के बाद अब वह नौसेना के लिये बेहतरीन राफेल एम खरीद रहा है। हमारे ज्यादातर लड़ाकू विमानों में लंबी दूरी की मिसाइलें लगी हैं, वे प्रभावी हवाई हमले में अत्यंत सक्षम हैं, इसके अलावा दुश्मन के इलाके में गहरे लक्ष्यों को भेदने की भी क्षमता है।
यह समझौता पाकिस्तान से तनावपूर्ण संबंधों और सरकार की ललकार के बीच देशवासियों के लिए के लिए एक मॉरल बूस्टर की तरह काम करेगा। मिग पुराने पड़ रहे हैं ऐसे में नौसेना को एक ऐसे लड़ाकू विमान की आवश्यकता थी जो विमानवाही पोत से ऑपरेट कर सके बल्कि तकनीकि तौरपर अत्यंत उन्नत श्रेणी का हो। राफेल का मरीन वर्जन वह मांग पूरी करता है।
2200 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से उड़ने वाला यह लड़ाकू विमान उड़ान भरने के बाद 3700 किमी दूर तक हमला करने में सक्षम और परमाणु बम दागने की क्षमता से संपन्न है। लेजर गाइडेड बम, स्कैल्प सरीखी क्रूज प्रक्षेपास्त्र छोड़ने के काबिल विमान में आवश्यकतानुसार शक्तिशाली एंटी शिप मिसाइलें लगाई जा सकती हैं, जो हवा से हवा और हवा से जमीन पर मार करने में सक्षम होंगी।
इसमें ऐसे विशेष रडार और सेंसर हैं जिसके जरिए यह विमान पनडुब्बियां खोजकर ध्वस्त करने में सक्षम है। इसमें 30 एमएम की ऑटो कैनन गन और 14 हार्ड प्वाइंट्स हैं। सिंगल और डबल सीटर, 15 हजार किलो वजनी विमान सिर्फ एक मिनट में 18 हजार मीटर की ऊंचाई तक पहुंचेगा और अधिकतम 52 हजार फीट की ऊंचाई तक जा सकता है।
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राफेल एम में 10 घंटे तक फ्लाइट रिकॉर्ड करने की सुविधा है। इसकी ईंधन क्षमता 11,202 किलो है, जिससे यह ज्यादा देर तक उड़ सकता है। खास बात यह है कि इसकी बीच हवा में रीफ्यूलिंग की जा सकती है। इस विमान के फोल्डिंग विंग्स भी काफी मजबूत हैं साथ ही इसमें पोत पर उतरने के लिए टेलहुक भी मौजूद है। बहुत कम जगह पर भी ‘लैंड’ कर सकने की इसकी क्षमता भी बहुत फायदे की है। राफेल-एम फाइटर जेट से नौसेना की हवा में भी पकड़ मजबूत होगी, बेशक भारतीय समुद्री सीमा की सुरक्षा के लिए ये गेमचेंजर साबित होंगे।
लेख- संजय श्रीवास्तव द्वारा