तेजस लड़ाकू विमान (डिजाइन फोटो)
नवभारत डेस्क: वायुसेना प्रमुख एयर चीफ मार्शल एपी सिंह ने तेजस लड़ाकू विमान की आपूर्ति में विलंब पर चिंता जताते हुए रक्षा सामग्री के विकास और निर्माण में निजी भागीदारी बढ़ाने तथा अनुसंधान व विकास के लिए अधिक रकम देने की मांग की। पश्चिम और उत्तर में 2 दुश्मन देशों से घिरे भारत की रक्षा जरूरतों को पूरा करने में अनावश्यक देर नहीं होनी चाहिए। किसी भी खतरे से निपटने की हमेशा पूरी तैयारी रहनी जरूरी है।
चीन अपनी वायुसेना को लगातार तेजी से अपग्रेड कर रहा है। उसने छठी पीढ़ी का स्टील्थ फाइटर जेट बना लिया है जिसे वह पाकिस्तान को दे सकता है। यह लड़ाकू विमान रडार पर नजर नहीं आता। भारत कब तक रूस से मिले पुराने मिग-29 और सुखोई विमानों पर निर्भर रहेगा? मिग विमान तो प्राय: दुर्घटनाग्रस्त होते रहते हैं जिन्हें आलोचकों ने ‘फ्लाइंग काफिन’ कहा है।
यद्यपि भारत ने फ्रांस से राफेल विमान लिए हैं लेकिन चीन की बड़ी वायुसेना के सामने इनकी तादाद काफी कम है। 1984 में पुराने मिग-21 विमानों की जगह लेने के लिए स्वदेशी जेट फाइटर विमान बनाने का फैसला हुआ था। इसके लिए हिंदुस्तान एरोनाटिक्स लि। (हाल) को 2009-10 में 40 तेजस विमान बनाने का आर्डर दिया गया था लेकिन इसमें असाधारण विलंब हुआ।
पहले तेजस विमान ने 2001 में उड़ान भरी थी। उसे 15 वर्ष बाद 2016 में वायुसेना को सौंपा गया। इससे पता चलता है कि सार्वजनिक उद्योगों में काम कितने विलंब से होता है। जब तक वहां तेजी से उत्पादन व निर्माण नहीं होगा, रक्षा जरूरतें पिछड़ती रहेंगी और खतरा बढ़ता रहेगा। देश के रक्षा क्षेत्र की आवश्यकताओं को देखते हुए निजी इकाइयों में भी उत्पादन हो रहा है।
उनका अधिक सहयोग लेते हुए निर्माण में तेजी लानी होगी। रिसर्च और विकास (आरएंडडी) के लिए भी अधिक फंड जारी किए जाएं ताकि शस्त्रों को आधुनिक और बेहतर बनाया जा सके। रक्षा विभाग की संसदीय स्थायी समिति ने हिंदुस्तान एरोनाटिक्स लि. से तेजस लड़ाकू विमानों के निर्माण में तेजी लाने को कहा है ताकि वायुसेना की स्क्वाड्रनों में कमी न आने पाए।
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वायुसेना के लिए 42 स्क्वाड्रन की मंजूरी है लेकिन फिर भी सक्रिय स्क्वाड्रन की संख्या केवल 31 ही है। अभी तेजस मार्क 2 और एडवांस मध्यम लड़ाकू विमान के निर्माण में कई वर्षों की देरी है। आधुनिक तकनीक वाले नए विमानों की वायुसेना को आवश्यकता है। कुछ वर्ष विलंब होने से तकनीक बदल जाती है।
लेख- चंद्रमोहन द्विवेदी के द्वारा