(डिजाइन फोटो)
पड़ोसी ने हमसे कहा, “निशानेबाज, महाराष्ट्र सरकार के कदमों को लेकर विपक्ष कह रहा है घर में नहीं दाने, अम्मा चली भुनाने! सरकार की तिजोरी ठन-ठन गोपाल है। ऊपर से कर्ज का बोझ लदा है फिर भी उसने लाडली बहीण और लाडला भाऊ योजना शुरू की हैं। मनसे अध्यक्ष राज ठाकरे ने इस योजना पर तंज कसते हुए कहा कि सड़कों के गड्ढे भरने के लिए सरकार के पास पैसा नहीं है और बहन को डेढ़ हजार रुपए देनेवाली है। क्या इसके लिए पैसा है?”
हमने कहा, “जो नेता सरकार चलाते हैं, वे जानते हैं कि पैसे का इंतजाम कैसे किया जा सकता है। वे सब कुछ कुशलता से मैनेज कर लेते हैं। आपने कहावत सुनी होगी रिकामा दूकानदार क्या करे, इस कोठी का धन उस कोठी में भरे ! इसी तरह सरकार एक योजना की रकम निकाल कर दूसरी में डालती रहेगी। जुगाड़ करने का यही तरीका है। हमारे एक परिचित ने 5 मित्र बनाए थे जो एक-दूसरे को नहीं जानते थे। वे एक मित्र से रकम उधार लेकर एक सप्ताह बाद लौटाने का वादा करते थे। फिर किसी दूसरे मित्र से रकम लेकर पहले वाले को सही टाइम पर वापस दे देते थे। इस तरह वे 5 मित्रों में उन्हीं की रकम की रोलिंग या हेराफेरी करते थे। उनके हाथ में हमेशा पराया पैसा खेला करता था। समय पर रकम लौटाने से मित्रों के बीच साख भी बनी रहती थी। यह तो हमने एक व्यक्ति के बारे में बताया। सरकार तो बहुत पावरफुल रहती है। वह कुछ भी कर सकती है। योजनाएं अच्छी हों तो वर्ल्ड बैंक और आईएमएफ भी कर्ज देते हैं। राजनीति में यह गुंजाइश भी होती है कि सुविधाएं देकर मित्रों की मदद करो तो मित्र भी भरपूर मदद करते हैं। राहुल गांधी बार- बार पीएम के मित्रों का जिक्र किया करते हैं।”
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पड़ोसी ने कहा, “निशानेबाज रामायण में भी मित्र का उल्लेख करते हुए लिखा गया है- धीरज, धर्म, मित्र अरू नारी, आपदकाल परखिए चारी। अर्थात संकट की घड़ी में धैर्य, धर्म, मित्र और नारी की सच्ची परख होती है। महाराणा प्रताप के लिए उनके मित्र व शुभचिंतक भामा शाह ने खजाना खोल दिया ताकि वे सेना जुटाकर हल्दी घाटी की लड़ाई लड़ सकें। आज के जमाने में लड़ाई नहीं बल्कि इलेक्शन लड़े जाते हैं।” लेख चंद्रमोहन द्विवेदी द्वारा