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नवभारत डेस्क: पड़ोसी ने हमसे कहा, ‘‘निशानेबाज, राजनीति के रेगिस्तान में स्वार्थ और मौकापरस्ती के कंटीले कैक्टस ऊगते हैं। आंखों को सुकून देनेवाली हरियाली का नामोनिशान नहीं है।’’
हमने कहा, ‘‘यह आपका दृष्टिदोष है। ध्यान से देखिए। राजनीति के बाग-बगीचे में बागी पनप रहे हैं। ऐसी कोई पार्टी नहीं है जिसमें बगावत नहीं हुई। जिसे टिकट नहीं मिलता वह तिलमिला जाता है। उसके अरमानों पर पानी फिर जाता है। उसकी शिकायत रहती है- दिल के अरमां आंसुओं में बह गए, हम भरी दुनिया में तन्हां हो गए! ऐसे वक्त पर वह अपनी पार्टी से तलाक लेकर बागी बन जाता है और स्वतंत्र उम्मीदवार के रूप में पर्चा भर देता है।’’
पड़ोसी ने कहा, ‘‘निशानेबाज, अधिकांश बागी जानते हैं कि वो चुनाव जीत नहीं पाएंगे लेकिन पार्टी के अधिकृत उम्मीदवार के वोट काटकर उसे हराने के लिए खड़े हो जाते हैं। उनका ध्येय यही रहता है- हम तो डूबे हैं सनम, तुम्हें भी ले डूबेंगे! पार्टी का अधिकृत प्रत्याशी जानता है कि बागी उसके लिए सत्यानाशी साबित होगा। बागी की बगिया में फूल नहीं बल्कि कांटे ही कांटे हैं। इतने पर भी वह हिम्मत जुटाकर चुनाव लड़ता है और कहता है- इक आग का दरिया है और डूब कर जाना है।’’
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हमने कहा, ‘‘बागी जानता है कि उसे पार्टी का सपोर्ट नहीं है। वह ऐसी नाव पर सवार है जिसमें पतवार नहीं है। वह अपने दिल की भड़ास निकालने के लिए चुनाव लड़ता है। उसके मन में पार्टी के प्रति क्रोध और प्रतिशोध की भावना रहती है। हर बागी दिलजला होता है और पार्टी के लिए व्यर्थ की बला बन जाता है। जब वह अनुशासन तोड़ देता है तो पार्टी उसे अपना चीरहरण करनेवाला दु:शासन मान लेती है।’’
पड़ोसी ने कहा, ‘‘निशानेबाज, हमें यह बताइए कि बागी उम्मीदवार का भविष्य क्या होता है? क्या उसका चुनाव लड़ने का जुनून अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारनेवाला या आत्मघाती नहीं होता?’’
हमने कहा, ‘‘इसे दूसरे तरीके से सोच कर देखिए। कभी-कभी बागी उम्मीदवार ज्यादा लोकप्रिय और प्रभावशाली साबित होता है। वह पार्टी के अधिकृत प्रत्याशी को हरा देता है। तब पार्टी उसके खिलाफ अनुशासन की कार्रवाई वापस लेकर उसे फिर से अपने साथ लेने को उत्सुक हो जाती है और उससे कहती है- तू लौट के आ जा मेरे मीत, तुझे मेरे गीत बुलाते हैं।’’
लेख- चंद्रमोहन द्विवेदी द्वारा