केंद्रीय मंत्री प्रह्लाद सिंह पटेल (सौ.सोशल मीडिया)
नवभारत डिजिटल डेस्क: मध्यप्रदेश के पंचायत एवं ग्रामीण विकास मंत्री प्रह्लाद पटेल ने मुफ्तखोरी की प्रवृत्ति पर प्रहार करते हुए कहा कि अब तो सरकार से भीख मांगने की लोगों को आदत पड़ गई है। मंच पर माला पहनाएंगे और मांगपत्र पकड़ा देंगे, भिखारियों की फौज इकट्ठा करने से समाज मजबूत नहीं होता. लेने की बजाय देने की मानसिकता बनाइए। मंत्री के विचार प्रेरणादायी और स्वाभिमान जगानेवाले हो सकते हैं लेकिन तस्वीर का दूसरा पहलू यह भी है कि जब समस्याओं का निदान नहीं होगा तो लोग जाएंगे कहां? देश के हर राज्य में लोग बड़ी आशा से मंत्रियों को मांगपत्र या ज्ञापन देते हैं जिनमें उनकी जायज मांग के अलावा प्रशासन के ढीलेपन की शिकायत भी रहती है।
लोकतंत्र में जनता का अपने प्रतिनिधियों से मांग करना गलत नहीं है? कानूनी दायरे में रहकर जनाकांक्षा पूरी करना विधायक, सांसद व मंत्री का दायित्व है।किसी की व्यक्तिगत स्वरूप की मांग हो तो उसकी उपेक्षा की जा सकती है लेकिन जब मांग सार्वजनिक स्वरूप की होने के साथ जनकल्याण से जुड़ी हो तो उस पर अवश्य ध्यान दिया जाना चाहिए। मंत्री को ऐसे मांगपत्रों के माध्यम से ही फीडबैक मिलता है कि किस योजना का पेंच कहां जाकर अटक गया है और कौन सा वैध काम शासकीय निर्देश के बावजूद लंबे समय से रुका पड़ा है।
यदि शासकीय अनुदान जारी होने पर भी कोई विकास कार्य नहीं हो पा रहा है या किसी क्षेत्र को मदद या राहत नहीं मिल पा रही है तो क्या लोगों को शिकायत करने का भी हक नहीं है? मध्यप्रदेश में उद्योग-धंधे की कमी है. अधिकांश ग्रामीण आबादी कृषि पर निर्भर है। इन क्षेत्रों के किसानों को यदि कृषि मौसम में सुधरे बीज, खाद, कीटनाशक व कुछ नकद सहायता उपलब्ध करा दी जाए साथ ही सिंचाई व्यवस्था पर भी ध्यान दिया जाए तो उन्हें मांगपत्र लेकर आने की जरूरत नहीं पड़ेगी। यदि कृषि घाटे का सौदा बन रही है तो किसानों को पशुपालन, कुक्कुटपालन, मधुमक्खी पालन के लिए प्रेरित कर उनकी आय बढ़ाई जा सकती है।
ग्रामीण विकास के तहत विविध योजनाएं आती हैं लेकिन क्या सभी ईमानदारी से लागू हो रही हैं. कुछ दशक पहले ग्रामीण क्षेत्रों में शिक्षा का इतना प्रसार नहीं था लेकिन अब लोग पढ़ लिखकर जागरूक होते जा रहे हैं और अपनी मांगें रखते हैं। जनता पर भीख मांगने का आरोप लगाना उन मतदाताओं का अपमान है जो विधायकों और सांसदों को चुनते हैं. यदि मुफ्तखोरी की आदत पर मंत्री ने प्रहार किया है तो इसका चस्का भी तो नेताओं ने ही अपने चुनावी स्वार्थ की वजह से जनता को लगाया है. रेवड़ी बांटने की खैराती योजना एक बार शुरू कर दी तो फिर उसे बंद करना मुश्किल जाता है. कोई भी पार्टी या प्रदेश इसका अपवाद नहीं है।
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सरकार व उसके मंत्री स्वयं तय करें कि सब्सिडी केवल जरूरतमंदों को ही दी जाए. मांगपत्रों को लेकर मंत्री को बुरा नहीं मानना चाहिए। लोकतंत्र में निवेदन देने का औचित्य है. मांग स्वीकार करने या नकारने का सरकार को अधिकार है।
लेख- चंद्रमोहन द्विवेदी के द्वारा