लापाटा लेडीज (डिजाइन फोटो)
पड़ोसी ने हमसे कहा, “निशानेबाज, आमिर खान की पूर्व पत्नी किरण राव के निर्देशन में बनी फिल्म ‘लापता लेडीज’ को ऑस्कर अवार्ड 2025 में भारत की प्रविष्टि के रूप में भेजा गया है जहां उसका अन्य देशों की फिल्मों के साथ मुकाबला होगा। आपको याद होगा कि आमिर खान की फिल्म ‘लगान’ भी ऑस्कर के लिए भेजी गई थी लेकिन बहुत बढ़िया फिल्म होने पर भी अवार्ड नहीं पा सकी थी।”
हमने कहा, “जहां तक ‘लापता लेडीज’ की बात है, उसमें उत्तरप्रदेश और बिहार जैसे राज्यों के देहाती इलाकों में प्रचलित ‘घूंघट प्रथा’ से होनेवाली गड़गड़ को दिखाया गया है। रेलवे स्टेशन पर लाल साड़ी पहन कर लंबा घूंघट लिए हुए दुल्हनें बदल जाती हैं। इनमें से ‘जया’ नामक दुल्हन अपने पति की बजाय दूसरे दूल्हे के साथ चली जाती है। दूसरी दुल्हन ‘फूल’ को रेलवे स्टेशन पर चाय का स्टाल चलानेवाली बुजुर्ग महिला अपने यहां शरण देती है।”
हमने कहा, “जया को फूल के ससुराल में आसरा मिलता है। फूल को उसका पति तलाश करता है लेकिन वह नहीं मिलती। जया पढ़ी-लिखी है और आर्गेनिक खेती जानती है। वह आगे पढ़ने की इच्छा रखती है। उसका पति दहेजलोभी रहता है। इन दोनों दुल्हनों का क्या हाल होता है, इसे फिल्म में दिखाया गया है।”
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पड़ोसी ने कहा, “निशानेबाज, लगभग 50 वर्ष पहले जैमिनी पिक्चर्स की ‘घूंघट’ नामक फिल्म आई थी। उसमें भी घूंघट प्रथा से होनेवाले नुकसान को दर्शाया गया था। उस फिल्म में भारत भूषण एक डॉक्टर की भूमिका में है जो अपने मित्र की बहन की शादी में जाता है। दहेज की मांग पूरी नहीं होने से बारात वापस लौट जाती है। ऐसी हालत में भारत भूषण उसी मंडप में अपने मित्र की बहन (बीना राय) से चेहरा देखे बिना शादी कर लेता है।”
पड़ोसी ने कहा, “दूसरी ओर प्रदीप कुमार आशा पारेख से प्रेम करता है लेकिन पिता के दबाव से उसे अन्य लड़की से शादी करनी पड़ती है। एक ही ट्रेन में सभी सवार होते हैं तभी ट्रेन एक्सीडेंट हो जाता है। प्रदीप कुमार की पत्नी जीवित नहीं बचती और वह घूंघट लिए हुए बीना राय को अपनी पत्नी समझ कर घर ले आता है। प्रदीप कुमार की प्रेमिका आशा पारेख डाक्टर (भारत भूषण) के अस्पताल में नर्स का काम करने लगती है।”
हमने कहा, “घूंघट प्रथा से होनेवाले दुष्परिणाम की फिल्म हम ऑस्कर में दिखाने जा रहे हैं। इससे विदेशियों को लगेगा कि भारत में कितना पिछड़ापन और कुरीतियां व्याप्त हैं। ऐसी फिल्म क्यों भेजी जानी चाहिए जिससे देश की बदनामी होती है? इस पर विचार किया जाना चाहिए।”
लेख- चंद्रमोहन द्विवेदी द्वारा