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नगालैंड का नरसंहार निंदनीय, अफस्पा कानून की समीक्षा हो

  • By रंजन सिंह
Updated On: Dec 07, 2021 | 12:52 PM
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पूर्वोत्तर में अफस्पा (सशस्त्र बल विशेषाधिकार) बहुत लंबे अरसे से लागू है. अलगाववादियों से सख्ती से निपटने के लिए इसका प्रावधान किया गया है लेकिन जब इसकी आड़ में दमनकारी कदम उठाए जाए और नरसंहार किया जाए तो इस कानून की समीक्षा होनी चाहिए और इसके औचित्य पर पुनर्विचार किया जाना चाहिए. नगालैंड में सुरक्षा बलों ने बिना जाने-समझे ऐसे ही नरसंहार को अंजाम दिया जो कि अत्यंत निंदनीय हे. एक गुप्त सूचना के आधार पर सुरक्षा बल स्पेशल आपरेशन के तहत नगालैंड के मोन जिले में घात लगाकर तैनात थे. उन्होंने एक वाहन से घर लौट रहे ग्रामीण मजदूरों को एन एस सी एन संगठन को उग्रवादी समझ लिया और गाड़ी रोकने को कहा जब गाड़ी नहीं रुकी तो उन्होंने फायरिंग की. इसमें 13 बेगुनाह लोगों की मौत हो गई.

यदि उस गाड़ी की ओर से कोई गोली नहीं चली थी तो सुरक्षा बलों को फायरिंग करने की क्या जरूरत थी? आखिर ऐसे में वहां आतंक किसका है? क्या यह माना जाए कि पूर्वोत्तर को इसी तरह के बल प्रयोग व दहशत से काबू में रखा जा रहा है? पूर्वोत्तर राज्यों में सुरक्षा बलों के जुल्म के खिलाफ इरोस शर्मिला नामक महिला ने बहुत लंबी भूख हड़ताल की थी. इस समय तो सुरक्षा बलों के सामने महिलाओं के निर्वस्त्र होकर प्रदर्शन किया था ताकि उन्हें अपने अत्याचारों पर लज्जा आए. अफस्पा कानून ने सुरक्षा बलों को असीमित अधिकार दे रखे हैं ताकि वे किसी भी विद्रोह या बगावत को कुचल सकें. इस कानून के तहत सुरक्षा बलों को कहीं भी अभिमान चलाने और किसी को भी बिना वारंट गिरफ्तार करने या घर में घुसकर तलासी का है. इन अधिकारों का दुरुपयोग भी होता रहा है. बेगुनाह मजदूरों को गोलियों से भून डालना इसकी ताजी मिसाल है.

फौज सीमा पर दुश्मन से लड़ने के लिए है

सशस्त्र बलों का प्रयोजन सीमा पर दुश्मन से लड़ने और विदेशी आक्रमण का सामना करने के लिए है, अपने ही देशवासियों को मारने के लिए नहीं. पुलिस और सेना की ट्रेनिंग में बहुत फर्क होता है. आंतरिक सुरक्षा पुलिस संभाल सकती है लेकिन सेना तो सीधे गोली चलाती है. पूर्वोत्तर राज्यों में अशांत मानकर सुरक्षाबलों को वहां बल प्रयोग की छूट दी गई है. क्या इसी तरह पूर्वोत्तर राज्यों को भारत की मुख्य धारा में लाया जा सकता है. क्या लोकतांत्रिक संवाद व सामंजस्य का सिलसिला वहां आगे नहीं बढ़ाया जा सकता? नगा वे लोग हैं जो खुद को स्वतंत्र मानते हैं और ब्रिटिश शासन के काबू में भी नहीं आए थे. आज नगालैंड को भारत के एक राज्य का दर्जा प्राप्त है. कुछ नगा गुटों से शांतिवार्ता के प्रयत्न भी किए गए लेकिन हर बार वार्ता कहीं न कहीं अटक कर रह जाती है. यह एक राजनीतिक मसला है जिसका हल गोली से नहीं निकाला जा सकता.

प्रतिक्रिया तो होनी ही थी

अपने काम के बाद मजदूर एक पिकअप वैन में सवार होकर अपने घर लौट रहे थे. जब वे देर रात तक घर नहीं पहुंचे तो ग्रामीणों ने उन्हें खोजना शुरू किया तब उन्हें घटना की जानकारी मिली. इस पर गुस्साए ग्रामीणों ने सुरक्षा बल की गाड़ियों में आग लगा दी. जवाबी कार्रवाई में 3 और नागरिकों की मौत हो गई. सेना के एक घायल जवान ने भी दम तोड़ दिया इस तरह 17 लोगों की मौत हुई. केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने इस दुर्भाग्यपूर्ण घटना पर दुख जताया है और मृत मजदूरों के परिवारों के प्रति संवेदना व्यक्त करते हुए कहा कि राज्य सरकार इस मामले की हाईलेबल एसआईटी जांच कराएगी.

समझौते की कोशिशें

1997 में एनएससीएन-आईएम और सुरक्षा बलों के बीच समझौता हुआ था. इसके सफल नहीं होने पर नया विद्रोह को खत्म करने के लिए 2015 में समझौते की रूपरेखा बनाई गई. इस दौरान नारा विद्रोहियों को पड़ोसी देश म्यांमार से मदद मिलने लगी. नगालैंड और मणिपुर में हिंसा बढ़ने लगी. पूर्वोत्तर का भूगोल, इतिहास अलगावादियों के लिए अनुकूल है. इतने पर भी वहां शांति स्थापना करने व टकराव टालने के प्रयास होने चाहिए. सेना व उग्रवादियों को संघर्ष की चपेट में जनता पर जुल्म नहीं होने चाहिए.

पिछले 21 वर्षों से हजारों लोग मारे गए

चाहे पूर्वोत्तर हो  जम्मू-कश्मीर, सुरक्षा बलों और उग्रवादियों की मुठभेड़ या आतंकवाद विरोधी अभियानों से बड़ी तादाद में बेगुनाह लोग भी मारे जाते हैं. पिछले 21 वर्षों से जम्मू-कश्मीर में 4,900 तथा पूर्वोत्तर के 7 राज्यों में 4300 नागरिकों को जान गंवानी पड़ी. गत माह राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने असम राइफल्स को मानवाधिकारों की समझ और संवेदनशीलता के लिए पुरस्कृत किया था और अभी इस तरह की घटना हो गई.

India nagaland security forces kill 13 civilians amid ambush blunder

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Published On: Dec 07, 2021 | 12:52 PM

Topics:  

  • Amit Shah

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